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Nirbhaya Case: एक बार फिर आधी रात के बाद न्याय के सबसे बड़े मंदिर के कपाट खुले

इसके पहले याकूब मेमन को फांसी देने के समय, रंगा बिल्ला को फांसी देते समय, 1992 में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद भी रात में खुला था सुप्रीम कोर्ट.

Updated on: 20 Mar 2020, 05:46 PM

नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने एक बार फिर जीने के अधिकार से जुड़े मसले पर विचार के लिये आधी रात के बाद अपनी इजलास लगाई और निर्भया सामूहिक बलात्कार एवं हत्याकांड (Nirbhaya Gang Rape and Murder Case) के मुजरिमों में से एक की याचिका पर सुनवाई की. यह दीगर बात है कि न्यायालय ने शुक्रवार के भोर पहर मे की गयी इस सुनवाई में दोषी पवन गुप्ता की याचिका को विचार योग्य नहीं पाया और इसे खारिज कर दिया. इसके बाद, सवेरे साढ़े पांच बजे बर्बरतापूर्ण इस अपराध के लिये चारों दोषियों को फांसी पर लटका दिया गया. न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की तीन सदस्यीय पीठ ने शुक्रवार की भोर में ढाई बजे पवन गुप्ता की याचिका पर सुनवाई की. इसके पहले याकूब मेमन को फांसी देने के समय, रंगा बिल्ला को फांसी देते समय, 1992 में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद भी रात में खुला था सुप्रीम कोर्ट.

पवन गुप्ता ने राष्ट्रपति द्वारा दुबारा उसकी दया याचिका खारिज करने के फैसले को चुनौती दी थी. यह याचिका खारिज होने के तीन घंटे के भीतर ही मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह को16 दिसंबर, 2012 को 23 वर्षीय निर्भया से सामूहिक बलात्कार और हत्या के जुर्म में तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया गया. शीर्ष अदालत ने इसी तरह से 29 जुलाई, 2015 को 1993 के मुंबई बम विस्फोटों के मामले में मौत की सजा पाने वाले याकूब मेमन को फांसी के फंदे से बचाने के लिये अंतिम क्षणों में किये गये प्रयासों को निष्फल करते हुये उसकी याचिका खारिज कर दी थी.

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याकूब मेमन को फांसी देने के समय भी रात में खुला था सुप्रीम कोर्ट
याकूब मेमन को 30 जुलाई को सवेरे छह बजे यर्वदा जेल में फांसी दी जानी थी. इसी तरह, न्यायालय ने नोएडा के निठारी में कई हत्याओं के सिलसिले में दोषी सुरिन्दर कोली की मौत की सजा के अमल पर रोक लगाने के लिये दायर याचिका पर 2014 में देर रात सुनवाई की थी. न्यायालय ने 2014 में ऐसे ही एक अन्य मामले में 16 व्यक्तियों की मौत की सजा पर अमल के खिलाफ रात साढ़े ग्यारह बजे के आसपास सुनवाई की और दोषियों की सजा के अमल पर रोक लगाने का आदेश दिय. शीर्ष अदालत ने नौ अप्रैल, 2013 को हत्या के मामले में दोषी मगन लाल बरेला की मौत की सजा के अमल पर रोक लगा दी थी. ऐसा नहीं है कि शीर्ष अदालत ने जीने के अधिकार को लेकर दायर याचिकाओं पर ही देर रात सुनवाई की है.

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 के बाद रात में खुला था सुप्रीम कोर्ट
न्यायालय ने राजनीतिक और दूसरे तरह के प्रकरणों की भी देर रात सुनवाई करके न्याय देने का प्रयास किया है. कर्नाटक में 2018 की विधान सभा चुनाव के बाद राज्यपाल द्वारा सबसे बड़े दल के रूप में भाजपा को आमंत्रित करने के प्रयास को विफल करने के कांग्रेस के प्रयासों के तहत दायर याचिका पर देर रात सुनवाई की थी. इसी तरह, 1985 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश ई एस वेंकटरमैया द्वारा देर रात उद्योगपति एल एम थापर की जमानत याचिका पर सुनवाई करके उन्हें राहत दी थी. शीर्ष अदालत के इस कदम की बहुत आलोचना हुयी थी.

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रंगा-बिल्ली को फांसी दिए जाने के समय भी रात को खुला था सुप्रीम कोर्ट
थापर को भारतीय रिजर्व बैंक की शिकायत के आधार पर फेरा कानून के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. अयोध्या में राम जन्म भूमि - बाबरी मस्जिद विवाद के दौरान कारसेवकों द्वारा छह दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा गिराये जाने की घटना से उत्पन्न स्थिति पर न्यायमूर्ति एम एन वेंकटचलैया, जो बाद में प्रधान न्यायाधीश भी बने, के आवास पर विशेष सुनवाई हुयी थी. शीर्ष अदालत ने न्यायमूर्ति वाई वी चन्द्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सनसनीखेज गीता और संजय चोपड़ा अपहरण और हत्याकांड के मुजरिम रंगा बिल्ला को फांसी दिये जाने के खिलाफ दायर याचिका पर देर रात सुनवाई की थी.

जगदंबिका पाल के एक दिन के सीएम बनने के समय भी रात को खुला था सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति वाई वी चन्द्रचूड़ बाद में 22 फरवरी, 1978 से 11 जुलाई, 1985 तक देश के प्रधान न्यायाधीश रहे. इसी तरह, उत्तर प्रदेश में राज्यपाल रोमेश भंडारी द्वारा कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली बहुमत की सरकार को बर्खास्त करके जगदम्बिका पाल को मुख्यमंत्री बनाये जाने का मामला भी 1998 में शीर्ष अदालत पहुंचा था. न्यायालय ने देर रात सुनवाई करके संयुक्त रूप से शक्ति परीक्षण का आदेश दिया था.