पाकिस्तान जा रहे पानी रोकने के लिए ये है मोदी सरकार का फुलप्रूफ प्लान
भारत सिंधु के अपने अधिकार के जल के उपयोग को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है और सिन्धु जल संधि (IWT) का जिम्मेदार हस्ताक्षरकर्ता है.
नई दिल्ली:
भारत सिंधु के अपने अधिकार के जल के उपयोग को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है और सिन्धु जल संधि (IWT) का जिम्मेदार हस्ताक्षरकर्ता है. सिन्धु जल आयुक्त पीके सक्सेना ने ये बातें कही हैं. पीके सक्सेना का ये बयान पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के उस बयान के एक दिन बाद आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान (Pakistan) को नदी का पानी रोक देंगे.
सिन्धु जल आयुक्त ने मीडिया को बताया कि जल शक्ति मंत्रालय सिन्धु के अपने अधिकार के जल का उपयोग करने के लिए प्रतिबद्ध है और भारत सिन्धु जल संधि
(आईडब्लूटी) का जिम्मेदार हस्ताक्षरकर्ता है. उन्होंने आगे कहा, भारत एक जिम्मेदार देश है, जो संधि के प्रावधानों को लेकर प्रतिबद्ध है. हम पश्चिमी नदियों और पूर्वी नदियों के पानी पर अपने अधिकार की बात कर रहे हैं. ये सब संधि में निहित है.
पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों हरियाणा के चरखी दादरी में चुनावी सभा में कहा था कि बीते 70 साल से जो पानी भारत और हरियाणा के किसानों का था, वो पाकिस्तान बह कर जा रहा था. पीएम मोदी इसे (पाकिस्तान पानी जाने को) रोकेगा और आपके घरों तक लाएगा.
उन्होंने आगे कहा कि हमने 2016 से इस पर फास्ट ट्रैक पर काम करना शुरू किया है. हमने इस प्लान के तहत रावी नदी पर केंद्रीय सहायता से शाहपुरकंडी बांध का निर्माण शुरू कर दिया है. ये 2021 तक पूरा हो जाएगा. हम अन्य प्रोजेक्टों के लिए भी प्लान कर रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि शीघ्र ही उन पर काम शुरू करेगा. ऐसे प्रोजेक्ट पर कुछ वक्त लगता है
क्योंकि इनके लिए समुचित प्लानिंग की ज़रूरत होती है.
सिंधु जल आयुक्त ने आगे कहा कि पूर्वी नदियां जैसे कि रावी, ब्यास और सतलेज पूर्ण रूप से हमारी हैं, वहीं झेलम, चेनाब और सिंधु पाकिस्तान की हैं लेकिन सिन्धु जल संधि के तहत उन पर भी हमारा कुछ हक है.
जानें क्या हुआ है सिन्धु जल संधि में?
जल शक्ति मंत्रालय ने संधि और भारत के इसमें अधिकारों को समझाने को एक प्रेजेंटेशन वीडियो तैयार किया है. इसके मुताबिक, 59 साल पहले भारत और पाकिस्तान ने सिंधु
जल संधि पर हस्ताक्षर किए. सिन्धु बेसिन में तीन पश्चिमी नदियां (सिन्धु, चेनाब, झेलम) और तीन पूर्वी नदियां (रावी, ब्यास, सतलुज) हैं. विभाजन के बाद पाक की तरफ बहने
वाली इन नदियों का नियंत्रण भारत में रहा है. सिन्धु जल को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद शुरू होने पर 1954 में विश्व बैंक ने मध्यस्थता की पेशकश की. छह साल के विमर्श के
बाद 19 सितंबर 1960 को सिन्धु जल संधि पर दोनों देशों ने हस्ताक्षर किए.
भारत-पाकिस्तान सन्धि के तहत, पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों का अधिकार दिया गया और भारत को पूर्वी नदियों के जल पर पूर्ण अधिकार दिया गया. निर्धारित शर्तों के मुताबिक भारत सिंचाई, बिजली उत्पादन, पेय जल आपूर्ति, जल परिवहन के लिए पश्चिमी नदियों का इस्तेमाल कर सकता है. भारत पूर्वी नदियों के जल का पूरा इस्तेमाल भाखड़ा नांगल बांध, रंजीतसागर बांध, पोंग बांध और लंबे नहरों के नेटवर्क के जरिए कर रहा है. जल शक्ति मंत्रालय सिन्धु जल के अपने हिस्से के पूरे इस्तेमाल के लिए भी प्रयास कर रहा है.
पंजाब में रावी नदी पर शाहपुरकंडी बांध के निर्माण को केंद्रीय सहायता के तहत दोबारा शुरू किया गया है और ये 2021-22 तक पूरा हो जाएगा. इससे सिंचाई और बिजली को लेकर
पंजाब और जम्मू-कश्मीर को लाभ मिलेगा. जलशक्ति मंत्रालय की ओर से रावी पर उझ बांध की कार्ययोजना और दूसरे रावी-ब्यास लिंक की प्लानिंग अग्रिम चरण पर हैं. इन प्रोजेक्टों
से भारत को अपने हिस्से के पानी का पूरा उपयोग करने में मदद मिलेगी. जल शक्ति मंत्रालय जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सिचाई योजनाओं को वित्तीय सहायता उपलब्ध करा रहा
है.
तमाम कानूनी अड़चनों के बावजूद किशनगंगा प्रोजेक्ट को पूरा किया गया. इसका उद्घाटन मई 2018 में हुआ. यहां अब 330 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. जल शक्ति
मंत्रालय की ओर से चेनाब पर भी कई हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को फास्ट ट्रैक मंजूरी दी गई.
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