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कंप्यूटर निगरानी विवाद: राहुल गांधी पर अमित शाह ने ली चुटकी, कहा- क्या डर है जिसे छुपा रहे हो?

कंप्यूटर डेटा पर निगरानी के लिए जांच और खुफिया एजेंसियों को अधिकार देने के फैसले को लेकर सियासत गर्माती हुई नज़र आ रही है.

Updated on: 22 Dec 2018, 06:58 AM

नई दिल्ली:

कंप्यूटर डेटा पर निगरानी के लिए जांच और खुफिया एजेंसियों को अधिकार देने के फैसले को लेकर सियासत गर्माती हुई नज़र आ रही है. राजनीतिक खेमे में विपक्षी पार्टियां इस फैसले का कड़ा विरोध जताया. इस आदेश के आने के बाद बीजेपी-कांग्रेस में वार-पलटवार का सिलसिला जारी है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर पीएम मोदी पर निशाना साधा. कांग्रेस अध्यक्ष ने पीएम मोदी पर भारत को एक पुलिस स्टेट में तब्दील करने का आरोप लगाया. राहुल के वार पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पलटवार किया. अमित शाह ने पूर्व पीएम इंदिरा गांधी का बिना नाम लिए इशारों-इशारों में निशाना साधा. एक ट्वीट में शाह राहुल गांधी को टैग करते हुए लिखा, 'भारतीय इतिहास में दो इन्सेकयूर तानाशाह रहे हैं- एक जिसने इमरजेंसी लगाई और दूसरा आम नागरिकों की चिट्ठियां पढ़ने की कोशिश की थी. '

एक अन्य ट्वीट में बीजेपी ने राहुल गांधी पर राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ राजनीति करने का आरोप लगाया. उन्होंने लिखा, 'यूपीए ने गैरकानूनी निगरानी पर कोई रोक नहीं लगाई थी लेकिन जब मोदी सरकार आम नागरिकों के लिए सेफगार्ड ला रही है तो राहुल षडयंत्र का आरोप लगा रहे हैं. तुम इतना क्यों झुठला रहे हो, क्या डर है जिसको छुपा रहे हो!'

अमित शाह से पहले रविशंकर प्रसाद और अरुण जेटली का बयान भी सामने आया था. जेटली ने कहा था कि 2009 में यह नियम बनाया गया था. यह आदेश आईटी एक्ट के सेक्शन 69 के तहत जारी किया गया है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा का जिक्र है, ऐसे में आम आदमी कि निजता में दखल का सवाल नहीं उठता है. वहीं कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में ये फैसला लिया गया है.

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बता दें कि गृह सचिव राजीव गौबा की ओर से जारी आदेश के अनुसार, 'सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना के इंटरसेप्शन, निगरानी और डिक्रिप्टेशन के लिए प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय) नियम, 2009 के नियम 4 के साथ पठित सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 69 की उपधारा (1) की शक्तियों का प्रयोग करते हुए उक्त अधिनियम के अंतर्गत संबंधित विभाग, सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर में आदान-प्रदान किए गए, प्राप्त किए गए या संग्रहित सूचनाओं को इंटरसेप्ट, निगरानी और डिक्रिप्ट करने के लिए प्राधिकृत करता है.'

यह 10 एजेंसियां खुफिया ब्यूरो, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व खुफिया निदेशालय, कैबिनेट सचिव (रॉ), डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटिलिजेंस (केवल जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर और असम के सेवा क्षेत्रों के लिए) और दिल्ली पुलिस आयुक्त हैं. इस आदेश के तहत दस सुरक्षा एजेंसियों को कंप्यूटर निगरानी का आदेश दिया गया है. अगर कोई भी व्यक्ति या संसथान ऐसा करने से मना करता है तो उसे सात साल की सज़ा भुगतनी पड़ सकती है.