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ममता बनर्जी का सिर फोड़ने वालेे मुस्लिम नेता को कोर्ट ने किया रिहा, देखती रह गईं 'दीदी'

यह मामला लगभग 29 साल पुराना था. रोचक बात यह है कि चार्जशीट में जिन-जिन का नाम दर्ज था, उनमें से कुछ मर चुके हैं और कई आज भी भगोड़े बताए जाते हैं.

Updated on: 13 Sep 2019, 10:41 AM

highlights

  • 1990 में लालू आलम ने ममता बनर्जी का हॉकी स्टिक से फोड़ा था सिर.
  • सिर में आए गहरे घाव और कई फ्रैक्चर के इलाज के लिए हफ्तों रही थीं भर्ती.
  • गुरुवार को अदालत ने सबूतों के अभाव में मुख्य आरोपी को किया रिहा.

नई दिल्ली:

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर जानलेवा हमला करने वाले लालू आलम को हत्या के प्रयास के मुकदमे से अदालत ने गुरुवार को बरी कर दिया. आरोपी पर ममता बनर्जी का सिर फोड़ने का इल्जाम था. उस वक्त ममता दी बंगाल में युवा कांग्रेस की अध्यक्ष हुआ करती थीं. यह मामला लगभग 29 साल पुराना था. रोचक बात यह है कि चार्जशीट में जिन-जिन का नाम दर्ज था, उनमें से कुछ मर चुके हैं और कई आज भी भगोड़े बताए जाते हैं. इसके बाद अदालत ने आरोपी लालू आलम को आरोपमुक्त करार दे दिया.

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मुकदमा सिर्फ पैसे और समय की बर्बादी
अंततः राज्य सरकार को समझ आ गया कि इस मामले में निष्कर्ष नहीं निकलने वाला है. ऐसे में वर्तमान में राज्य की सीएम पर लगभग तीन दशक पहले हुए जानलेवा हमले के मामले को अदालत में लंबा खींचने से सिर्फ समय औऱ पैसे की ही बर्बादी होगी. सरकारी वकील राधाकांत मुखर्जी के मुताबिक चार्जशीट में जिनके नाम थे, उनमें से कुछ मर चुके हैं और कुछ का आज भी कोई अता-पता नहीं है. ऐसे में इस मामले में कुछ बचा नहीं है. हालांकि उन्होंने यह आरोप लगाया कि वाम मोर्चा सरकार ने इस मामले को 21 साल तक दबाए रखा.

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दोषमुक्त होने पर आरोपी ने ली चैन की सांस
इधर ममता बनर्जी पर हत्या के प्रयास मामले से बरी हुए लालू आलम ने गुरुवार को रिहा होने पर चैन की सांस ली. उन्होंने कहा कि आज मेरे पास इस खुशी को बयान करने के लिए शब्द नहीं हैं. इस दौरान मुझे हर रोज यही डर सताता रहा कि जिस शख्स का सिर फोड़ने का आरोप मुझ पर है, वह आज राज्य की मुख्यमंत्री हैं. मैं यही सोचता रहा कि मुझे सजा से कोई नहीं बचा सकता. हालांकि सरकार ने आज जो फैसला लिया अगर वह फैसला 2011, जब ममता बनर्जी ने पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बतौर कमान संभाली थी, में लिया होता तो मैं अपने काम पर ध्यान केंद्रित कर सकता था.

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वीडियो कांफ्रेंसिंग से गवाही देने को तैयार थीं ममता दी
ऐसी स्थिति में सबूतों के अभाव में अलीपोर की अदालत ने लालू आलम को गुरुवार को रिहा कर दिया. लालू के वकील के मुताबिक इस बात के आसार भी बेहद कम थे कि अब कोई गवाह लालू आलम के खिलाफ सामने आकर गवाही देगा. हालांकि अभियोजन पक्ष के वकील राधाकांत मुकर्जी का कहना है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये गवाह बतौर पेश होना चाहती थीं, लेकिन ऐसी व्यवस्था नहीं हो सकी. बताते हैं कि इस मामले के मुख्य आरोपी 62 साल के लालू आलम उस वक्त सत्तारूढ़ वाम मोर्चा सरकार की युवा ईकाई के नेता थे, जो पार्क सर्कस इलाके में रह कर छोटा-मोटा कारोबार करते थे.

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यह था मामला
बात 16 अगस्त 1990 की है. ममता बनर्जी के कालीघाट स्थित घर के पास हाजरा क्रॉसिंग पर लालू आलम ने हॉकी स्टिक से उनका सिर फोड़ दिया था. उस वक्त ममता बनर्जी 35 साल की थीं और इस घटना में उनके सिर में गहरे घाव समेत कई फ्रैक्चर आए थे. बाद में कई सप्ताह तक उन्हें अस्पताल में भर्ती रहकर अपना इलाज कराना पड़ा था. इस मामले में ममता दी बतौर गवाह अलीपोर अदालत में 1994 में पेश भी हो चुकी हैं. जून 2011 में सीएम बनने के बाद ममता बनर्जी ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि 16 अगस्त 1990 का वह दिन उनके जीवन का एकमात्र दिन है, जब वह अपनी मां को बगैर बताए घर से बाहर निकली थीं. गौरतलब यह है कि 34 साल तक मजबूती से खड़े लाल किले को ध्वस्त करने के बाद ममता बनर्जी जब राज्य में सत्तारूढ़ हुई थीं, तो लालू आलम ने उनसे अपने किए के लिए माफी भी मांगी थी.