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महाराणा प्रताप की 479वीं जयंती आज, PM मोदी समेत इन नेताओं ने उनकी वीरता को किया नमन

इतिहास के महान योद्धा और मेवाड़ के महान हिंदू शासक महाराणा प्रताप की आज 479वीं जयंती मनाई जा रही है.आम जनता से लेकर राजनीतिक लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर के उनकी बहादुरी को नमन कर रहे है.

Updated on: 06 Jun 2019, 02:37 PM

नई दिल्ली:

इतिहास के महान योद्धा और मेवाड़ के महान हिंदू शासक महाराणा प्रताप की आज 479वीं जयंती मनाई जा रही है.आम जनता से लेकर राजनीतिक लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर के उनकी बहादुरी को नमन कर रहे है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट करते हुए लिखा, ' महाराणा प्रताप की जीवन-गाथा साहस, शौर्य, स्वाभिमान और पराक्रम का प्रतीक है, जिससे देशवासियों को सदा राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा मिलती रहेगी.'

राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने भी ट्वीट में कर लिखा, ' महाराणा प्रताप त्याग, बलिदान और साहस की प्रतिमूर्ति थे. उनके त्याग को सदैव याद किया जाएगा और वे प्रेरणा देते रहेंगे. '

वहीं पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने कहा, 'वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जैसे प्रखर विचारक के आदर्शों को जीवन में आत्मसात कर राष्ट्र कल्याण में सम्पूर्ण भागीदारी निभाने का संकल्प लें.'

इतिहास के पन्नों में महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच लड़ा गया हल्दीघाटी का युद्ध बहुत चर्चित है. क्योंकि अकबर और महाराणा प्रताप के बीच यह युद्ध महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुआ था. हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पास सिर्फ 20,000 सैनिक थे और अकबर के पास 85,000 सैनिक थे. इसके बावजूद महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे.

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महाराणा प्रताप के भाले का वजन 81 किलो का था. वही उन्होंने अपनी छाती पर जो कवच पहना था उसका वजन 72 किलो का था. दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था. महाराणा प्रताप के पास एक घोड़ा था जो उन्हें सबसे प्रिया था. जिसका नाम चेतक था. बता दें,. उनका घोड़ा चेतक भी काफी बहादुर था.

क्या है हल्दीघाटी युद्ध?

यह मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित युद्ध है, जिसमें मेवाड़ के राणा महाराणा प्रताप और मानसिंह के नेतृत्व वाली अकबर की विशाल सेना का आमना-सामना हुआ था. ये युद्ध 18 जून 1576 में लड़ा गया था.

चार घंटे चला था युद्ध

आज भी इस बात पर लगातार बहस होती रही है कि इस युद्ध में अकबर की जीत हुई या महाराणा प्रताप ने जीत हासिल की? इस मुद्दे को लेकर कई तथ्य और रिसर्च सामने भी आए हैं. कहा जाता है कि लड़ाई में कुछ भी निष्कर्ष नहीं निकला था. हालांकि आपको बता दें कि यह जंग 18 जून साल 1576 में चार घंटों के लिए चली थी. इस पूरे युद्ध में राजपूतों की सेना मुगलों पर बीस पड़ रही थी और उनकी रणनीति सफल हो रही थी.

मुगलों का हो गया था कब्जा

इस युद्ध के बाद मेवाड़, चित्तौड़, गोगुंडा, कुंभलगढ़ और उदयपुर पर मुगलों का कब्जा हो गया था. सारे राजपूत राजा मुगलों के अधीन हो गए और महाराणा को दर-बदर भटकने के लिए छोड़ दिया गया. महाराणा प्रताप हल्दीघाटी के युद्ध में पीछे जरूर हटे थे लेकिन उन्होंने मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके. बल्कि वह एक बार फिर से अपनी शक्ति जुटाकर मुगलों से लौहा लेने की तैयारी में जुट गए थे.