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Women Rights: भारत की महिलाएं जान लें ये जरूरी कानूनी अधिकार, इसके बाद नहीं होंगी अन्याय का शिकार

आज हम आपको यहां ऐसे ही 10 महत्वपूर्ण कानू के बारें में बताने जा रहे है, जिसे जानकार आप अपने को न्याय दिला सकती है साथ ही अपने अधिकार की बात कर सकती है.

Updated on: 04 Dec 2019, 06:47 AM

नई दिल्ली:

हमारे संविधान को स्थापित हुए कल यानी कि 26 नवंबर को पूरे 70 साल हो गए हैं. लेकिन आज भी हमें अपने अधिकार औऱ कर्तव्यों की पूरी तरह से जानकारी नहीं होती है. हमारे संविधान में कई ऐसे कानून है, जिसे जानना हर नागरिक के लिए जरूरी है. संविधान में कई कानून पिछड़े और शोषित लोगों को ध्यान में रखकर बनाया गया था. जिनमें महिलाओं का स्थान सबसे ऊपर आता है. पितृसत्ता समाज के युग में महिलाओं का सदियों से शोषण होता रहा है.

अभी भी समय तो बदल गया है लेकिन लोगों की सोच अभी भी पुरुषवादी सोच से भरी हुई है. महिलाओं को जगह-जगह पर शोषण और हिंसा का शिकार होना पड़ता है लेकिन कानून का पता नहीं होने के आभाव में वो सालों साल शोषित होती रहती है. ऐसे में हमारे देश की महिलाओं को कुछ जरूरी कानून की जानकारी जरूर मालूम होनी चाहिए, जो कि उनके हित के लिए ही बनाया गया है.

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चाहे दहेज विरोधी कानून की बात करें या घरेलू हिंसा, सामान वेतन और उत्पीड़न के खिलाफ ऐसे कई जरूरी कानून है जो महिलाओं के हित को देखते हुए बनाया गया है. लेकिन आज भी हम में से कई महिलाओं को अपने अधिकार और कानून की जानकारी नहीं होती है. नतीजन वो अपने प्रति हो रहे अपराध और अन्याय को चुपचाप सहती रहती है. आज हम आपको यहां ऐसे ही कई महत्वपूर्ण कानून के बारें में बताने जा रहे है, जिसे जानकार आप अपने को न्याय दिला सकती है साथ ही अपने अधिकार की बात कर सकती है.

1. संपत्ति पर अधिकार (Right To Property)

बहुत सी लड़की और महिला को आज भी नहीं पता है कि शादी के बाद भी वो अपने माता-पिता के संपत्ति पर बराबर का अधिकार रखती है. सालों से बेटियों को पराया धन बोल-बोलकर उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा था. लेकिन अब ऐसा नहीं है वर्षों पुराने उस नियम को तोड़ दिया गया है. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर अब पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष दोनों का बराबर हक है.

हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 के अधिनियम की नई धारा 6 के मुताबिक बेटे और बेटियों को संपत्ति पर बराबरी का अधिकार है.

2. कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ का अधिकार (Right against female feticide)

अक्सर हमने अपने आसपास ऐसे कई किस्से सुने और घटनाएं देखी होगी, जहां बेटे की चाह में बेटियों को गृभ में ही मार दिया जाता है. लेकिन बता दें कि हमारा कानून एक भ्रूण को भी जीने का अधिकार देते है, जिसका इस्तेमाल कर के आप ऐसे हजारों न जन्में बच्चे को बता सकते है. भारत का संविधान हर नागरिक को 'जीने का अधिकार' देता है ऐसे में अजन्में भ्रूण को भी जीने और जन्म लेने का अधिकार है. गर्भाधान और प्रसव से पूर्व पहचान करने की तकनीक(लिंग चयन पर रोक) अधिनियम (PCPNDT) कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार देता है.

3. घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार (Domestic Violence ) 

एक तरफ भारत की महिलाएं पूरी दुनिया में अपनी कामयाबी का परचम लहरा रही है. वहीं दूसरी तरफ कई घरों में उनकी स्थिति जस की तस बनी हुई है. आज भी ग्रामीण से लेकर शहर की महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार है. कभी दहेज, सुरक्षा के नाम पर अब भी कई महिलाएं घर के पुरूषों द्वारा हिंसा का शिकार हो रही है. शादी-शुदा महिलाएं ही नहीं बल्कि प्रेम में पड़ी या लिव इन रिलेशनशिप में रह रही युवतियां भी अपने पार्टनर के हिंसा से ग्रस्त है. अनपढ़ से लेकर पढ़ा लिखा महिलाओं का वर्ग तक घरेलू हिंसा का सामना कर रहा है. तो बता दें कि घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाकर आप अपने आप को इस घुटन भरे रिश्ते से आजाद कराकर खुद को न्याय दिला सकती है. यही नहीं बल्कि अपने आसपास हो रही इस तरह की घटना के खिलाफ भी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है.

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आईपीसी की धारा 498-ए दहेज संबंधित हत्या की निंदा करती है. इसके अलावा दहेज अधिनियम 1961 की धारा 3 और 4 में न केवल दहेज देने या लेने, बल्कि दहेज मांगने के लिए भी दंड का प्रावधान है. इसके साथ ही घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भी महिलाओं को उचित स्वास्थ्य देखभाल, कानूनी मदद, परामर्श और आश्रय गृह संबंधित मामलों में मदद करता है.

4. काम पर हुए उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार (Against Sexual Harassment)

महिलाएं अब घर ही नहीं बल्कि बाहर ऑफिस की भी कमान संभाल रखी है, अब वो सिर्फ किचन तक सीमित नहीं रह गई है. वो हर क्षेत्र में पुरुष के साथ बराबर कदम से कदम मिलाकर उन्हें टक्कर दे रही हैं. शायद इसलिए अब उन्हें सुरक्षा के नाम पर डर दिखाकर पीछे धकेलने की कोशिश की जा रही है. इसका अंदाजा आप महिलाओं के प्रति हो रहे बढ़ते अपराध के ग्राफ को देख के लगा सकते हैं. महिलाओं खिलाफ हो रहे अपराध का डर दिखाकर उनके पैरों में जंजीरे बांधने की दोबारा कोशिश की जा रही है.

कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ शोषण के कई मामले सामने आ चुके है. ऐसे में आप कानून की मदद से ऐसे लोगों से छुटकारा और न्याय पा सकती है. काम पर हुए यौन उत्पीड़न अधिनियम के मुताबकि, आपको यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का पूरा अधिकार है. कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 इस बारे में उचित प्रावधान करता है.

5. मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार (Maternity Benefit)

मातृत्व लाभ (Maternity Benefit) कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा नहीं बल्कि ये उनका अधिकार है. मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक नई मां के प्रसव के बाद 12 सप्ताह(तीन महीने) तक महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती और वो फिर से काम शुरू कर सकती हैं.

6. रात में नहीं हो सकती है गिरफ्तारी (Right To Arrest)

बता दें कि किसी भी महिला को पुलिस सूरज डूबने के बाद और सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नहीं कर सकती है. किसी खास मामले में एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही ये संभव है.

7. नाम न छापने का अधिकार (Right To Anonymity )

अक्सर कई महिलाएं लोगों के सामने इसिलए नहीं आती है क्योंकि उन्हें अपनी पहचान उजागर होने का डर लगा रहता है. लेकिन हम आपको बता दें कि हमारे कानून में महिलाओं को इस चीज का भी अधिकार दिया गया है कि वो चाहे तो अपना नाम छिपाए रख सकती है. यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को नाम न छापने देने का अधिकार है. अपनी गोपनीयता की रक्षा करने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिला अकेले अपना बयान किसी महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में या फिर जिलाधिकारी के सामने दर्ज करा सकती है.

8. मुफ्त कानूनी मदद के लिए अधिकार (Right to free Legal Aid)

कानूनी लड़ाई में समय, पैसे दोनों लगता है इसलिए कई पीड़ित और उसका परिवार अपनी आर्थिक स्थिति वजह से पीछे हट जाता है. लेकिन कानून में बलात्कार की शिकार हुई किसी भी महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार दिया गया है. स्टेशन हाउस आफिसर(SHO) के लिए ये ज़रूरी है कि वो विधिक सेवा प्राधिकरण(Legal Services Authority) को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करें.

9. गरिमा और शालीनता के लिए अधिकार (Right To Dignity And Decency)

महिला की गरिमा को हर स्थिति में बनाएं रखना हर किसी का फर्ज है. ऐसे में अगर अगर महिला किसी मामले में आरोपी हो तो उसपर की जाने वाली कोई भी चिकित्सा जांच प्रक्रिया किसी महिला द्वारा या किसी दूसरी महिला की उपस्थिति में ही की जानी चाहिए.

10. समान वेतन का अधिकार (Equal pay for equal)

महिलाएं भला आज पुरुषों के बराबर या उनसे ज्यादा ही काम कर रही है लेकिन वेतन के लिहाज से वो आज ही उनसे दूर है. अधिकत्त जगह महिलाओं को पुरुष कर्मचारी की तुलना में बहुत कम वेतन दिया जाता है. ऐसे में आप समान पारिश्रमिक अधिनियम कानून की मदद ले सकते है. इस कानून के मुताबिक,
अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता.

 11. इंटरनेट पर सुरक्षा का अधिकार (Right to Internet)

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 67 और 66-ई बिना किसी भी व्यक्ति की अनुमति के उसके निजी क्षणों की तस्वीर को खींचने, प्रकाशित या प्रसारित करने को निषेध करती है. आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 की धारा 354-सी के तहत किसी महिला की निजी तस्वीर को बिना अनुमति के खींचना या शेयर करना अपराध माना जाता है.