logo-image

10 Points में जानें, अयोध्‍या मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में क्‍या हुआ

राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में 4 जनवरी को महज 60 सेकंड से भी कम समय में सुनवाई हुई.

Updated on: 10 Jan 2019, 09:02 AM

नई दिल्ली:

राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में 4 जनवरी को महज 60 सेकंड से भी कम समय में सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने इस मामले को 10 जनवरी तक के लिए टाल दिया. अब 10 जनवरी को बेंच और स्पीड ट्रायल को लेकर सुनवाई होगी.

1- सुप्रीम कोर्ट में आज अयोध्या मामले की सुनवाई 60 सेकेंड भी नहीं चली.

2- CJI रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एसके कौल की पीठ ने कहा, 'एक उपयुक्त पीठ मामले की सुनवाई की तारीख तय करने के लिए 10 जनवरी को आगे के आदेश देगी.'

3- सुनवाई के लिए मामला सामने आते ही CJI ने कहा, यह राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामला है और इसपर आदेश पारित किया.

4- अलग-अलग पक्षों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और राजीव धवन को अपनी बात रखने का कोई मौका नहीं मिला.

5- सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में तत्काल और रोजाना सुनवाई को लेकर दायर की गई PIL को खारिज कर दिया. यह PIL वकील हरीनाथ राम ने नवंबर 2018 को दाखिल की थी.

6- तीन जजों की पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई करेगी. हाईकोर्ट ने इस विवाद में दायर चार दीवानी वाद पर अपने फैसले में 2.77 एकड़ भूमि का सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच समान रूप से बंटवारा करने का आदेश दिया था.

7- अब तक अयोध्या मामले की सुनवाई 3 जजों की बेंच ने की है. आज मामला 2 जजों की बेच के सामने लगा था. ऐसे में बेंच ने सिर्फ अगली तारीख का ऐलान किया, सुनवाई कैसे होगी, यह तय नहीं किया.

8- सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 29 अक्तूबर को कहा था कि यह मामला जनवरी के प्रथम सप्ताह में उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध होगा, जो इसकी सुनवाई का कार्यक्रम तय करेगी. बाद में अखिल भारत हिंदू महासभा ने एक अर्जी दायर कर सुनवाई जल्द करने का आग्रह किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था.

9- इससे पहले, 27 सितंबर, 2018 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 2:1 के बहुमत से 1994 के एक फैसले में की गई टिप्पणी पांच जजों की पीठ के पास नए सिरे से विचार के लिए भेजने से इंकार कर दिया था.

10- उस फैसले में टिप्पणी की गई थी कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है.