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अलागिरी के विरोध के बावजूद भी स्टालिन ने संभाली डीएमके की कमान

सालों तक भावी युवराज ही बने रहे एम. स्टालिन का आखिरकार द्रमुक का राजा बनना तय हो गया है। दिवंगत द्रमुक नेता एम. करुणानिधि के पुत्र और उनके वास्तविक राजनीतिक वारिस एम. के. स्टालिन का मंगलवार को द्रमुक पद चयन होना लगभग तय है।

Updated on: 28 Aug 2018, 11:26 AM

नई दिल्ली:

करुणानिधि की मौत के बाद आज आखिरकार एम. के. स्टालिन ने डीएमके (द्रविड मुनेत्र कडगम) की कमान संभाल ली। डीएमके की तरफ से उन्हें निर्विरोध पार्टी का अध्यक्ष चुना गया। 

दिवंगत द्रमुक नेता एम. करुणानिधि के पुत्र और उनके वास्तविक राजनीतिक वारिस एम. के. स्टालिन को पार्टी मुख्यालय में द्रमुक की जनरल काउंसिल की बैठक में मंगलवार को औपचारिक तौर पर पार्टी अध्यक्ष नियुक्त किया गया। हालांकि उनके सौतेले भाई अलागिरी ने इसका विरोध किया लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं और अधिकारियों ने उन्हें दरकिनार कर डीएमके की कमान सौंप दी क्योंकि दिवंगत करुणानिधि पहले ही इसका ऐलान कर चुके थे।

द्रमुक के दूसरे अध्यक्ष के रूप में स्टालिन का चुनाव निर्बाध तरीके से हुआ क्योंकि पार्टी के 65 जिलों के सचिवों ने पार्टी के शीर्ष पद के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया था और उनके विरोध में कोई नामांकन नहीं हुआ था। पार्टी अध्यक्ष पद के लिए नामांकन करने वाले वह एकमात्र उम्मीदवार थे।

उनके दिवंगत पिता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री करणानिधि के बीमार रहने के कारण अधिकांश समय घर में ही बिताने पर स्टालिन को जनवरी 2017 में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था।

करुणानिधि के इसी महीने निधन हो जाने के बाद उनको पार्टी अध्यक्ष के रूप में प्रोन्नत करना अनिवार्य हो गया था। करुणानिधि के 65 वर्षीय पुत्र के पास पार्टी के कोषाध्यक्ष का पद भी होगा। वरिष्ठ नेता दुरई मुरुगन का उनकी जगह चुना जाना भी तय है क्योंकि उस पद के लिए कोई अन्य उम्मीदवार नहीं है।

स्टालिन के बड़े भाई एम. के. अलागिरि जिनको उनके नेतृत्व का विरोध करने को लेकर करुणानिधि ने पार्टी विरोधी कार्य में लिप्त रहने के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था वह उपचुनाव में द्रमुक विरोधी कार्य कर सकते हैं।