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विवाद के बाद जस्टिस सीकरी ने ठुकराया केंद्र सरकार का प्रस्ताव, CSAT का पद लेने से किया इंकार

विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि सीकरी के नामांकन का निर्णय सुप्रीम कोर्ट से आगामी 6 मार्च को होने वाली उनकी सेवानिवृत्ति को देखते हुए पिछले महीने लिया गया था.

Updated on: 13 Jan 2019, 09:46 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठतम जज जस्टिस ए के सीकरी ने कॉमनवेल्थ सेक्रेटेरिएट आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल (CSAT) का सदस्य बनने के लिए दी अपनी सहमति को वापस ले लिया है. उनकी करीबी सूत्रों के मुताबिक, वो रिटायरमेंट के बाद कोई भी सरकारी पद नहीं लेंगे. हालांकि इस ट्रिब्यूनल में भारत का प्रतिनिधि बनने की सहमति उन्होंने दिसंबर के पहले हफ्ते में ही दे दी थी, लेकिन इसे सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को ट्रांसफर करने का फैसला लेने वाली हाई पावर कमेटी में उनके रहने से जोड़ा गया.

इंदिरा जय सिंह और कुछ वरिष्ठ वकीलों ने सवाल उठाया हुए कहा था कि जस्टिस सीकरी को रिटायरमेंट के बाद कोई सरकारी पद नहीं लेना चाहिये. मीडिया के एक हिस्से में कुछ रिपोर्ट्स के जरिये ऐसा बताने कोशिश की गई, जैसे उन्हें सरकार का साथ देने का इनाम दिया जा रहा हो. माना जा रहा है कि इस वजह से उन्होंने नियुक्ति के लिए दी अपनी सहमति को वापस ले लिया.

नियुक्ति की सहमति दिसंबर में दी थी, वर्मा के बारे में फैसला 11 जनवरी को

सूत्रों के मुताबिक इस पद पर नियुक्ति के लिए जस्टिस सीकरी ने मौखिक तौर पर अपनी मंजूरी पिछले साल दिसंबर के पहले हफ्ते में दी थी। आलोक वर्मा के बारे में फैसला चीफ जस्टिस की बेंच ने 8 जनवरी को लिया. इस फैसले के मुताबिक उनको सीबीआई डायरेक्टर के पद पर बहाल तो कर दिया गया, लेकिन उनके आगे के बारे में फैसला हाई पावर कमेटी को लेने के लिए कह दिया गया था.

चूंकि चीफ जस्टिस खुद उस बेंच के सदस्य थे, लिहाजा उन्होंने हाई पावर कमेटी के प्रतिनिधि के तौर पर सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठतम जज जस्टिस सीकरी को मनोनीत किया था. प्रधानमंत्री, जस्टिस सीकरी और मल्लिकार्जुन खड़गे वाली इस हाई पावर कमेटी ने 2-1 के बहुमत से आलोक वर्मा का ट्रांसफर डीजी फायर सर्विस के तौर पर करने का फैसला लिया था.

CSAT क्या है

सीएसएटी (कॉमनवेल्थ सेक्रेटेरिएट आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल) में रेगुलर बेसिस पर नियुक्ति नहीं होती है, इसके साथ ही इस पद के लिए मासिक कोई सैलरी की व्यवस्था भी नहीं होती क्योंकि सलाना दो या तीन सुनवाई ही इस ट्रिब्यूनल में सम्भव हो पाती है.

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