फेक न्यूज फैलाने पर केंद्र सरकार स्थाई तौर पर रद्द कर सकती है पत्रकारों की मान्यता, सेंसरशिप का डर बढ़ा
फर्जी खबरों (फेक न्यूज) का प्रचार-प्रसार करने या किसी भी तरह से फैलाने पर अब भारत सरकार कड़े कदम उठाते हुए पत्रकारों की मान्यता को स्थाई तौर पर खत्म कर सकती है।
highlights
- फेक न्यूज फैलाने पर पत्रकारों की मान्यता को स्थाई तौर पर खत्म हो सकती है
- पीसीआई और एनबीए एजेंसियों के द्वारा जांच 15 दिनों के भीतर पूरी की जाएगी
- कांग्रेस ने कहा कि पत्रकारों को परेशान करने के लिए गलत तरीके से इस्तेमाल हो सकता है
नई दिल्ली:
फर्जी खबरों (फेक न्यूज) का प्रचार-प्रसार करने या किसी भी तरह से फैलाने पर अब भारत सरकार कड़े कदम उठाते हुए पत्रकारों की मान्यता को स्थाई तौर पर खत्म कर सकती है।
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने पत्रकारों की संशोधित गाइडलाइंस जारी की है जिसके मुताबिक अगर फेक न्यूज के प्रकाशन या प्रसारण में किसी को पाया जाता है तो पहली बार उल्लंघन करने पर 6 महीने के लिए उसकी मान्यता रद्द की जाएगी।
वहीं दूसरी बार फर्जी खबरों को किए जाने पर पत्रकार की मान्यता एक साल तक के लिए निलंबित कर दी जाएगी। मंत्रालय के अनुसार तीसरी बार ऐसा किए जाने पर पत्रकार की मान्यता स्थाई तौर पर खत्म कर दी जाएगी।
गाइडलाइंस के मुताबिक फर्जी खबरों की जांच के लिए प्रिंट मीडिया के मामले प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मामले न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) के पास भेजा जाएगा।
मंत्रालय ने कहा है कि इन एजेंसियों के द्वारा जांच 15 दिनों के भीतर पूरी की जाएगी।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि एक बार शिकायत दर्ज हो जाने के बाद जब तक उसकी जांच होगी तो जिसने उसे चलाया या फैलाया, उसकी मान्यता तब तक के लिए रद्द की जाएगी।
केंद्र सरकार के इस फैसले पर कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने सवाल उठाते हुए कहा है कि क्या सरकार का फेक न्यूज को जांचने का यह प्रयास उन पत्रकारों पर रोक लगाना तो नहीं है जो सत्ता विरोधी रिपोर्टिंग करते हैं।
उन्होंने कहा कि किसी न्यूज रिपोर्ट को 'फेक' कौन बताएगा। और कहा कि ये नियम पत्रकारों को परेशान करने के लिए गलत तरीके से इस्तेमाल भी हो सकता है।
वहीं सरकार के इस फैसले पर कई पत्रकार भी इस नए नियम का विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि पत्रकारों की आवाज को दबाने के लिए सरकार अपने तरीके से इसे इस्तेमाल करेगी।
कुछ पत्रकारों का मानना है कि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया को पत्रकार संगठनों की इस मुद्दे पर मदद करनी चाहिए।
और पढ़ें: मलेशिया में फ़ेक न्यूज़ से निपटने के लिए कानून ड्राफ्ट, मीडिया सेंसरशिप का खतरा बढ़ा
बता दें कि केंद्र सरकार के अंदर आने वाली संस्था प्रेस इंफॉर्मेशन ऑफ ब्यूरो (पीआईबी) किसी पत्रकार को 5 साल के अनुभव के बाद फुल टाइम जर्नलिस्ट की मान्यता देती है।
हाल ही में मलेशिया सरकार ने भी फेक न्यूज को रोकने के लिए नया एंटी-फेक न्यूज कानून ड्राफ्ट किया, जिसके बाद लोगों में मीडिया सेंसरशिप का भय बन गया है।
मलेशिया के प्रस्तावित एंटी फेक न्यूज बिल 2018 सरकार को पूरी तरीके से अधिकारिक शक्ति देगा कि वह फेक न्यूज फैलाने या लिखने वाले को दोषी पाए जाने पर 6 साल की जेल और 1,30,000 डॉलर की सजा देगी।
मलेशिया के अलावा पड़ोसी देश सिंगापुर भी फेक न्यूज से निपटने के लिए नए कानून को लाने का विचार कर रही है।
बता दें कि 2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रंप के 'फेक न्यूज' शब्द के इस्तेमाल के बाद दक्षिण-पूर्व एशिया में भी इसका चलन बढ़ गया।
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