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योग को वैज्ञानिक मान्यता दिलाने के लिए एम्स में चल रहा शोध, दवाओं के साथ बना रहे तालमेल

मॉडर्न मेडिसिन के साथ योग को वैज्ञानिक मान्यता दिलाने के लिए एम्स के कई विभाग रिसर्च में जुटे हुए हैं। कार्डियक, रेस्पिरेटरी, न्यूरो, डायबिटीज के साथ ज्यादा ध्यान लाइफ स्टाइल डिसीज़ और उसपर पड़ने वाले योग के प्रभाव को लेकर है।

Updated on: 21 Jun 2017, 07:01 PM

नई दिल्ली:

मॉडर्न मेडिसिन के साथ योग को वैज्ञानिक मान्यता दिलाने के लिए एम्स के कई विभाग रिसर्च में जुटे हुए हैं। कार्डियक, रेस्पिरेटरी, न्यूरो, डायबिटीज के साथ ज्यादा ध्यान लाइफ स्टाइल डिसीज़ और उसपर पड़ने वाले योग के प्रभाव को लेकर है।

एम्स के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया का कहना है कि अध्ययन और शोध के जरिये मॉडर्न मेडिसिन की दुनिया मे यह साबित करना अभी बाकी है कि बीमारियों के इलाज में दवाओ के साथ साथ योग बड़ी भूमिका निभाता है।

पल्मोनरी मेडिसिन के क्षेत्र में लंबे समय से चिकित्सा और शोध से जुड़े डॉ गुलेरिया ने बताया कि मेडिसिन के साथ-साथ योग अपनाने से मरीज की सेहत में तेजी से सुधार के सैकड़ो उदाहरण है लेकिन अंतररास्ट्रीय मॉडर्न मेडिसिन में इसकी स्वीकरोक्ति तब तक संभव नहीं जब तक समूचे मैकेनिज्म यानी योग से शरीर के भीतर होने वाले अंदुरुनी बदलाव से पर्दा नही उठाया जाता।

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इसके लिए एम्स में लाइफ स्टाइल डिजीज से जुड़े अधिकांश विभाग एविडेंस बेस्ड रिसर्च में जुटे हुए हैं। साथ ही किस बीमारी में किस तरह के योग से फायदा होगा और उसका मानक क्या होगा इस प्रोटोकॉल को तय करने के लिए भी एम्स काम कर रहा है।

एम्स के डायरेक्टर के मुताबिक अगले एक साल में एम्स दुनिया के सामने चिकित्सा के क्षेत्र में योग का वैज्ञानिक आधार और उसके प्रोटोकॉल को रखेगा।

योग को लेकर एम्स में होने वाले रिसर्च का इतिहास वैसे बेहद पुराना है। योगियों के ज्ञानेन्द्रियो पर विजय पाने को लेकर पहला शोध 1957 में शुरू हुआ था जो 61-62 में पब्लिश भी हुआ जिसमें अतिशयोक्ति को दरकिनार करते हुए वैज्ञानिकों ने ये बताया कि योग के जरिये योगी अपने धड़कनों को रोक तो नही सकते लेकिन योग्याभ्यास से उसपर एक हदतक काबू जरूर पा सकते है।

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इतना ही नही एम्स में 1990 के एक शोध में यह भी पाया गया की योग के जरिये मस्तिष्क को रिलैक्स और नॉन रिलैक्स दोनों ही किया जा सकता है।

एम्स के डिपार्टमेंट ऑफ फिजियोलॉजी के डायरेक्टर डॉ केके दीपक का बताते है कि योगिक क्रिया से रक्त में हानिकारक पदार्थों की बढ़ी मात्रा पर नियंत्रण होता है जिससे रक्त में शुद्धता आती है और उसका सकारात्मक प्रभाव शरीर के सभी वाइटल ऑर्गन्स के काम काज पर पड़ता है। इंफ्लामेशन पर कंट्रोल से बीमारियों पर नियंत्रण संभव हो जाता है।

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योग और मायग्रेन को लेकर रिसर्च कर रहे एम्स के न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर डॉ रोहित भाटिया पिछले 3 महीनों से 140 मरीजों पर शोध कर रहे हैं जिसमें दवा के साथ-साथ आधे मरीजों को योग और आधे को सामान्य एक्सरसाइज की सलाह दी गयी। अगले 9 महीनों तक इनपर हो रहे शोध से यह तय हो जाएगा कि योग माइग्रेन पर कंट्रोल करने में कितना कारगर है।

एम्स में पिछले साल ही योग का एक अलग डिपार्टमेंट भी स्थापित किया गया है जिससे योग के क्षेत्र में शोध को एक नई दिशा मिली है। शोधकर्ताओं के मुताबिक अब तक के नतीज़े सकारात्मक हैं।