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अमेरिका में भारतीयों का वीजा हो रहा खारिज और यहां अपने में मस्त हैं सत्ता पर काबिज लोग- प्रियंका गांधी

प्रियंका गांधी ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि वह अमेरिका में ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम कर रहे हैं जबकि अमेरिकियों ने वहां काम करने की इच्छा रखने वाले भारतीयों को एचबी1 वीजा की संख्या कम कर दी है

Updated on: 07 Nov 2019, 01:52 PM

दिल्ली:

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने गुरुवार को अर्थव्यवस्था की स्थिति पर भारत सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि देश में सत्ता पर काबिज लोग अपने में ही मस्त हैं, जबकि आम लोग हर मोर्चे पर त्रस्त हैं. प्रियंका ने ट्वीट किया, ‘देश में अर्थव्यवस्था की हालत एकदम पतली है. सेवा क्षेत्र औंधे मुंह गिर चुका है. रोजगार घट रहे हैं. शासन करने वाला अपने में ही मस्त है, जनता हर मोर्चे पर त्रस्त है.’

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि वह अमेरिका में ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम कर रहे हैं जबकि अमेरिकियों ने वहां काम करने की इच्छा रखने वाले भारतीयों को एचबी1 वीजा की संख्या कम कर दी है. प्रियंका ने एक और ट्वीट किया, ‘भाजपा सरकार से यह सवाल तो सबको पूछना चाहिए कि उसके कार्यकाल में किसकी भलाई हो रही है. प्रधानमंत्री जी अमेरिका जाकर अपना ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम तो कर आए लेकिन अमेरिका ने वहां काम करने की इच्छा रखने वाले भारतीय लोगों के एच-1बी वीजा खारिज करने में बढ़ोतरी कर दी.’ 

बता दें, हाल ही में एक अमेरिकी थिंक टैंक की तरफ से किए गए रिसर्च में यह बात सामने आई थी कि नामी गिरामी भारतीय आईटी कंपनियों के एच-1बी आवेदन सबसे ज्यादा खारिज किए गए हैं. ये आंकड़ें उन आरोपों को एक तरह से बल देते हैं कि मौजूदा प्रशासन अनुचित ढंग से भारतीय कंपनियों को निशाना बना रहा है.

नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी की ओर से किए गए इस अध्ययन के मुताबिक 2015 में जहां छह प्रतिशत एच-1बी आवेदन खारिज किए जाते थे, वहीं मौजूदा वित्त वर्ष में यह दर बढ़कर 24 प्रतिशत हो गई है. यह रिपोर्ट अमेरिका की नागरिकता और आव्रजन सेवा यानि यूएससीआईएस से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित है.

उदाहरण के लिए 2015 में अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, इंटेल और गूगल में शुरुआती नौकरी के लिए दायर एच-1बी आवेदनों में महज एक प्रतिशत को खारिज किया जाता था. वहीं 2019 में यह दर बढ़कर क्रमश: छह, आठ, सात और तीन प्रतिशत हो गई है. हालांकि एप्पल के लिए यह दर दो प्रतिशत ही बनी रही.

रिपोर्ट में कहा गया कि इसी अवधि में टेक महिंद्रा के लिए यह दर चार प्रतिशत से बढ़कर 41 प्रतिशत हो गई, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के लिए छह प्रतिशत से बढ़कर 34 प्रतिशत, विप्रो के लिए सात से बढ़कर 53 प्रतिशत और इंफोसिस के लिए महज दो प्रतिशत से बढ़कर 45 प्रतिशत पर पहुंच गई.

इसमें कहा गया कि एसेंचर, केपजेमिनी समेत अन्य अमेरिकी कंपनियों को आईटी सेवाएं या पेशेवर मुहैया कराने वाली कम से कम 12 कंपनियों के लिए अस्वीकार्यता दर 2019 की पहली तीन तिमाही में 30 प्रतिशत से अधिक रही. इनमें से ज्यादातर कंपनियों के लिए यह दर 2015 में महज दो से सात प्रतिशत के बीच थी. रोजगार जारी रखने के लिए दायर एच-1बी आवेदनों को खारिज किए जाने की भी दर भारतीय आईटी कंपनियों के लिए सबसे ज्यादा थी. दूसरी तरफ अमेरिका की नामी कंपनियों में नौकरी जारी रखने के लिए दायर आवेदनों को खारिज किए जाने की दर कम रही.

रिपोर्ट के मुताबिक शुरुआती रोजगार के लिए 2015 से 2019 के बीच अस्वीकार्यता दर छह प्रतिशत से बढ़कर 24 प्रतिशत हो गई, वहीं 2010 से 2015 के बीच यह कभी भी आठ प्रतिशत से अधिक नहीं थी. फाउंडेशन ने कहा, 'ट्रंप प्रशासन का मुख्य लक्ष्य यह रहा है कि सुशिक्षित विदेशी नागरिकों के लिए अमेरिका में विज्ञान एवं इंजीनियरिंग क्षेत्र में नौकरी करना ज्यादा मुश्किल बनाया जाए.'