महाराष्ट्र में पहले भी साथ आई हैं कांग्रेस-शिवसेना, इस बार भी आ गए तो अचरज नहीं
अगर बगैर बीजेपी सूबे में एनसीपी-कांग्रेस के समर्थन से शिवसेना सरकार बना लेती है, तो ऐसा पहली बार नहीं होगा कि विचारधारा के धरातल पर दो विपरीत ध्रुवों पर खड़ी शिवसेना और कांग्रेस एक साथ आती हैं.
highlights
- बाल ठाकरे कई मौकों पर कांग्रेस खासकर इंदिरा गांधी को दे चुके समर्थन.
- 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा थोपे गए आपातकाल को भी सराहा था.
- कांग्रेस के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी को भी दे चुकी है शिवसेना समर्थन.
New Delhi:
राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री (Maharashtra CM) पद पर किसी शिवसैनिक को बैठाने या 50-50 फॉर्मूले पर अड़े शिवसेना (Shivsena) नेता संजय राउत (Sanjay Raut) को भले ही एनसीपी (NCP) सुप्रीमो शरद पवार (Sharad Pawar) ने ठेंगा दिखा दिया है, लेकिन अगर बगैर बीजेपी (BJP) सूबे में एनसीपी-कांग्रेस के समर्थन से शिवसेना सरकार बना लेती है, तो ऐसा पहली बार नहीं होगा कि विचारधारा के धरातल पर दो विपरीत ध्रुवों पर खड़ी शिवसेना और कांग्रेस एक साथ आती हैं. इस कड़ी में कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व सीएम अशोक चव्हाण (Ashok Chavan) का वह बयान महत्वपूर्ण हो जाता है, जिसमें वह बीजेपी पर गठबंधन के साथी दलों को नजरअंदाज करने का आरोप लगा शिवसेना से गठबंधन तोड़ने की बात करते दिख रहे हैं.
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राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस प्रत्याशियों को दिया समर्थन
महाराष्ट्र और केंद्र की कुछ कांग्रेस सरकारें गवाह हैं जब शिवसेना और कांग्रेस एक नहीं बल्कि कई मसलों पर न सिर्फ साथ-साथ आए बल्कि एक साथ खुलकर समर्थन भी दिया. दोनों तरफ से हुए इस समर्थन की बात देखें तो खुद शिवसेना के सुप्रीमो बाल ठाकरे ने कांग्रेसी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा थोपे गए आपातकाल को सराहा था और उसे अपने कार्टूनों के जरिए समर्थन दिया था. इसके बाद कई मौकों पर बाला साहब ठाकरे ने कांग्रेस के कुछ उम्मीदवारों के समक्ष अपनी पार्टी का प्रत्याशी नहीं उतारा, बल्कि कांग्रेस के राष्ट्रपति पद के दावेदार प्रतिभा पाटील और प्रणव मुखर्जी को भी अपना-अपना समर्थन दिया था.
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आपातकाल को सराहा था बाल ठाकरे ने
शिवसेना या कहें कि बाला साहब का कांग्रेस के प्रति हमलावर रहने का अपना एक अलग इतिहास है. 1966 में शिवसेना के गठन के समय से ही वह अपने कार्टूनों के जरिये इंदिरा गांधी के प्रखर आलोचक रहे हैं. यह अलग बात है कि 1975 में भारतीय लोकतंत्र पर काला धब्बा करार दिए गए आपातकाल का उन्होंने खुलकर समर्थन दिया था. यही नहीं, दो साल बाद शिवसेना ने आम चुनाव में कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान किया था, लेकिन विधानसभा चुनाव और वृहन्न मुंबई म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के चुनाव में करारी हार के बाद शिवसेना की यह राजनीतिक बेल मुंडेर नहीं चढ़ सकी.
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कांग्रेस के खिलाफ नहीं उतारे शिवसेना के प्रत्याशी
यही नहीं, 1980 के लोकसभा चुनाव में भी ठाकरे का इंदिरा गांधी प्रेम बरकरार रहा और उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवारों के खिलाफ शिवसेना के प्रत्याशी नहीं उतारे. इसके बाद 1984 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भारी बहुमत हासिल किया था. शिवसेना ने पहली बार बीजेपी से अघोषित गठबंधन किया और अपने दो प्रत्याशी बीजेपी के चुनाव चिन्ह पर मैदान में उतारे. यह अलग बात है कि 1989 आते-आते शिवसेना ने बीजेपी से औपचारिक गठबंधन कर लिया, जो 2014 के विधानसभा चुनाव छोड़ दें तो आज भी जारी है. हालांकि अब इस रिश्ते में पड़ी दरारें चौड़ी होनी शुरू हो गई हैं. फिर भी अशोक चव्हाण सरीखे दिग्गज कांग्रेसी का नेता का हालिया बयान यही जाहिर करता है कि कांग्रेस-एनसीपी अगर शिवसेना का साथ देकर सरकार बनाती है तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए.
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