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हिन्दी दिवस : 5 साहित्यकार जो माने जाते हैं हिन्दी भाषा के स्तंभ

हिंदी भाषा के देशव्यापी प्रसार और स्वीकार्यता को देखते हुए 14 सितंबर, 1949 को इसे देश की राजभाषा का दर्जा दिया गया था।

Updated on: 14 Sep 2017, 12:34 PM

नई दिल्ली:

हिंदी भाषा के देशव्यापी प्रसार और स्वीकार्यता को देखते हुए 14 सितंबर, 1949 को इसे देश की राजभाषा का दर्जा दिया गया था। इस दिवस की स्मृति में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। आइए आज इस दिवस के खास मौके पर जानते है ऐसे 5 हिन्दी साहित्यकारों के बारे में जिन्होंने हिन्दी को पूरे विश्व में पहचान दिलाई

रामचंद्र शुक्ल
रामचंद्र शुक्ल

रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य के कीर्ति स्तंभ हैं। हिंदी में वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात उन्हीं के द्वारा हुआ| हिन्दी निबंध के क्षेत्र में शुक्ल जी का स्थान बहुत ऊंचा है। वे श्रेष्ठ और मौलिक निबंधकार थे। उन्होंने जिस रूप में भावों को पिरोया वह सर्वश्रेष्ट है।

फणीश्वर नाथ
फणीश्वर नाथ

फणीश्वर नाथ का जन्म बिहार के अररिया जिले के फॉरबिसगंज के निकट औराही हिंगना ग्राम में हुआ था । प्रारंभिक शिक्षा फॉरबिसगंज तथा अररिया में पूरी करने के बाद इन्होने मैट्रिक नेपाल के विराटनगर के विराटनगर आदर्श विद्यालय से कोईराला परिवार में रहकर की । उन्होने हिन्दी में आंचलिक कथा की नींव रखी ।
मैला आंचल, परती परिकथा, जूलूस, दीर्घतपा, कितने चौराहे, पलटू बाबू रोड आदि उनकी श्रेष्ट रचना है।

प्रेमचंद
प्रेमचंद

भारत के उपन्यास सम्राट माने जाते हैं जिनके युग का विस्तार सन् 1880 से 1936 तक है। यह कालखण्ड भारत के इतिहास में बहुत महत्त्व का है। इस युग में भारत का स्वतंत्रता-संग्राम नई मंज़िलों से गुज़रा। प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ नहीं थीं फिर भी इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ।

जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद

प्रेम, सौंदर्य, देशप्रेम, रहस्यानुभूति, दर्शन, प्रकृति-चित्रण, धर्म आदि विविध विषयों को अपनी विविध साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाने वाले जयशंकर प्रसाद हिन्दी नाटक के सम्राट है। नाटक के क्षेत्र में उन्होंने कई प्रयोग किए। नाटक की विकास प्रक्रिया में भारतेंदु के बाद जो अवरोध पैदा हो गया था उसे प्रसाद ने तोड़ा।
उनके नाटकों का शरीर साहित्यिक और मनोवैज्ञानिक है पर मन ऐतिहासिक और आत्मा विशुद्ध सांस्कृतिक है। इसलिए समसामयिक इतिहास ने जो प्रश्न उठाए उनका समाधान भी उन्होंने नाट्य साहित्य के माध्यम से दिया है।करुणालय, प्रायश्चित, राज्यश्री, अजातशत्रु , स्कंदगुप्त, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी आदि उनकी महानतम रचना है।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता है। भाषा को लेकर उन्होंने कहा था-'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल'।
उन्‍हें मॉर्डन हिन्दी राइटिंग का ट्रेंड सेटर भी माना जाता है। सामाजिक मुद्दों को साहित्‍य से जोड़ने की परंपरा की शुरूआत हरिश्‍चंद्र जी के ही दौर की देन है। आइये जाने भारतेंदु हरिश्चन्द्र की जिंदगी की कहानी इन दस अनजाने तथ्‍यों की जुबानी।
उन्होंने 'हरिश्चंद्र पत्रिका' 1867, 'कविवचन सुधा' 1873 और 1874 में स्त्री शिक्षा के लिए 'बाल विबोधिनी' जैसी पत्रिकाओं का संपादन भी किया। वे कवि, व्यंग्यकार, नाटककार, पत्रकार और कहानी लेखक होने के साथ ही संपादक, निबंधकार और कुशल वक्ता भी थे।