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'कंप्यूटर निगरानी' पर सियासी संग्राम, कानून मंत्री ने कहा- राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में यह फैसला

कंप्यूटर डेटा पर निगरानी के लिए जांच और खुफिया एजेंसियों को अधिकार देने के फैसले का विपक्षी पार्टियां जोरदार विरोध कर रही है.

Updated on: 21 Dec 2018, 05:38 PM

नई दिल्ली:

कंप्यूटर डेटा पर निगरानी के लिए जांच और खुफिया एजेंसियों को अधिकार देने के फैसले का विपक्षी पार्टियां जोरदार विरोध कर रही है. इस आदेश को जारी करने के बाद कांग्रेस और अन्य पार्टियों ने कड़ा एतराज जताया. कांग्रेस ने इस कदम को निजता और नागरिकों के अधिकारों पर हमला बताया. इस मामले पर विपक्ष के हमले का जवाब देते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का बयान सामने आया है. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में ये फैसला लिया गया है. 2009 में मनमोहन सरकार द्वारा बनाये गए कानून के अंतर्गत यह किया गया है. उन्होंने कहा कि इसमें हस्तक्षेप के हर मामले और निर्णय को केंद्रीय गृह सचिव को मंजूरी देनी है. 

इससे पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि इस फैसले से आम आदमी के जीवन पर कोई असर नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा कि 2009 में यह नियम बनाया गया था. यह आदेश आईटी एक्ट के सेक्शन 69 के तहत जारी किया गया है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा का जिक्र है, ऐसे में आम आदमी कि निजता में दखल का सवाल नहीं उठता है.

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बता दें कि गृह सचिव राजीव गौबा की ओर से जारी आदेश के अनुसार, 'सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना के इंटरसेप्शन, निगरानी और डिक्रिप्टेशन के लिए प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय) नियम, 2009 के नियम 4 के साथ पठित सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 69 की उपधारा (1) की शक्तियों का प्रयोग करते हुए उक्त अधिनियम के अंतर्गत संबंधित विभाग, सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर में आदान-प्रदान किए गए, प्राप्त किए गए या संग्रहित सूचनाओं को इंटरसेप्ट, निगरानी और डिक्रिप्ट करने के लिए प्राधिकृत करता है।'

यह 10 एजेंसियां खुफिया ब्यूरो, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व खुफिया निदेशालय, कैबिनेट सचिव (रॉ), डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटिलिजेंस (केवल जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर और असम के सेवा क्षेत्रों के लिए) और दिल्ली पुलिस आयुक्त हैं। इस आदेश के तहत दस सुरक्षा एजेंसियों को कंप्यूटर निगरानी का आदेश दिया गया है. अगर कोई भी व्यक्ति या संसथान ऐसा करने से मना करता है तो उसे सात साल की सज़ा भुगतनी पड़ सकती है.