नई दिल्ली:
सीबीआई निदेशक पद से हटाए गए आलोक वर्मा ने डीजी फायर सर्विसेज का पदभार ग्रहण करने से इन्कार कर दिया है. साथ ही नाैकरी से इस्तीफा देते हुए उन्होंने कहा, इस पूरे मामले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत को कुचल दिया गया है. ऐसा इसलिए किया गया, ताकि वैधानिक रूप से निदेशक पद पर मौजूद व्यक्ति को हटाया जा सके. दूसरी ओर, आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक पद से हटाए जाने के बाद देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई उनके खिलाफ जांच कर सकती है. पीटीआई ने उनके इस्तीफे की खबर की पुष्टि की है. उन्होंने अपना इस्तीफा गृह मंत्रालय को भेज दिया है.
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सूत्रों के मुताबिक सीबीआई मीट कारोबारी मोईऩ कुरैशी मामले में आलोक वर्मा के बौतर सीबीआई निदेशक रहते ही संदिग्ध भूमिका की जांच कर सकती है. वर्मा को लेकर जो सीवीसी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को दी थी उसमें उनपर कई गंभीर आरोप लगे थे. CVC रिपोर्ट में रिसर्च और एनालिसिस विंग (रॉ Research and Analysis Wing) ने एक फोन कॉल इंटरसेप्ट किया था, जिसमें ‘सीबीआई के नंबर वन अफसर को पैसे सौंपे जाने’ की चर्चा हुई थी.
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प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC सीवीसी) की इस रिपोर्ट पर गौर किया कि मीट कारोबारी मोइन कुरैशी के खिलाफ सीबीआई के नंबर-2 अफसर राकेश अस्थाना हैदराबाद के कारोबारी सतीश बाबू सना को आरोपी बनाना चाहते थे पर आलोक वर्मा ने मंजूरी ही नहीं दी. मोइन कुरैशी के खिलाफ जांच को प्रभावित करने की कोशिश की गई थी. दो करोड़ रुपए की रिश्वत लिए जाने के भी सबूत थे. इस मामले में वर्मा की भूमिका संदेहास्पद थी. प्रथम दृष्टया उनके खिलाफ मामला बन रहा था. वहीं सना ने एक शिकायत दर्ज कराकर आरोप लगाया था कि कैसे उसने बिचौलियों के जरिए अस्थाना को रिश्वत दी थी.
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