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अयोध्या भूमि विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने अनुवाद के लिए दिया तीन महीने का समय, 5 दिसंबर को होगी अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सारे पक्षों में जमकर गहमागहमी हुई

Updated on: 11 Aug 2017, 06:22 PM

नई दिल्ली:

अयोध्या में विवादित भूमि मसले पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई अब 5 दिसम्बर तक टाल दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस केस से जुड़े संबंधित काग़जात का अनुवाद करने के लिए तीन महीने का समय दिया है।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सारे पक्षों में जमकर गहमागहमी हुई। जिसके बाद जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि वो सारे पक्षों की बात सुनेंगे। पहले काग़जातों का अनुवाद होगा और इसलिए तीन महीने का समय दिया जा रहा है। उसके बाद ही आगे की सुनवाई होगी।

बता दें कि इस मामले से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत, अरबी सहित विभिन्न भाषाओं में दर्ज हैं, जिस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से इन दस्तावेज़ों को अनुवाद कराने की मांग की थी।

शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'पहले आठ भाषाओं में मौजूद संबंधित कागजातों का अंग्रेजी में अनुवाद होना चाहिए। इसके लिए कोर्ट तीन महीने का समय दे रहा है।'

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अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में दाखिल करीब 20 याचिकाओं पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस मामले से जुड़े पक्षकारों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है।

जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच इस मामले की सुनवाई हुई। दरअसल कुछ दिन पहले ही बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी के जल्द सुनवाई के अनुरोध पर CJI खेहर ने कहा था कि वो सोच रहे हैं कि जल्द सुनवाई के लिए बेंच का गठन कर दिया जाए।

क्या है इलाहाबाद हाइकोर्ट का फैसला?

30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाइकोर्ट ने अपने फैसले में विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बाटने का आदेश दिया था, जिसका एक हिस्सा रामलला को ,दूसरा सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड और तीसरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाने की बात फैसले में कही गई थी।

* इलाहाबाद हाइकोर्ट ने अपने फैसले में एएसआई (पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ) की रिपोर्ट को आधार मानते हुए माना कि विवादित जगह पर बाबरी मस्जिद से पहले राम मंदिर था। कोर्ट ने इस मान्यता को तरजीह दी कि रामलला कई सालों से मुख्य गुम्बद के नीचे स्थापित था और वहीं प्रभु श्री राम का जन्म हुआ था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जिस जगह रामलला की मूर्ति विराजमान है, वो जगह रामलला विराजमान को दे दी जाए।

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* कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के इस दावे को मान्यता दी कि बाबरी मस्जिद से पहले बने वहाँ के मंदिर पर उसका अधिकार रहा है। इसी के चलते कोर्ट ने राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी।

*अयोध्या से जुडी हिंदू आस्था को फैसले में मान्यता देने के साथ साथ कोर्ट ने ये भी माना कि इस ऐतिहासिक तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती की वहां साढ़े चार सौ सालों तक एक ऐसी इमारत थी जिसे मस्जिद के रूप में बनाया गया था। कोर्ट ने बाकी बचा हिस्सा सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को दे देने का निर्देश दिया।

जमीन बंटवारे के जरिये सतुंलन कायम रखने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से कोई भी पक्ष सन्तुष्ट नहीं हुआ और सभी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2011 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी और विवादित जगह पर यथा स्थिति बनाने का आदेश दिया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी टिप्पणी की कि जब किसी पक्ष ने जमीन बंटवारे की बात नहीं की तो हाईकोर्ट ने बंटवारे को लेकर ऐसा फैसला क्यों दिया?

शिया वक़्फ़ बोर्ड का पेंच

इस मामले में जुड़ा एक पक्ष शिया सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड का भी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी उसने शुरुआती दौर में जमीन पर दावा ठोंका था। हालांकि दलील पेश करने के लिए वहां उसकी ओर से कोई पेश नहीं हुआ था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले इस मामले से जुड़े शिया वक़्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा और याचिका दायर कर नया मोड़ ला दिया।

बोर्ड ने हलफनामे में कहा कि वो विवादित जगह से हट कर मस्ज़िद बनाने को तैयार है क्योंकि एक ही जगह पर मंदिर और मस्ज़िद होने से भविष्य में भी विवाद की आशंका रहेगी। इससे बचने के लिए मस्ज़िद दूसरी जगह पर बनाना बेहतर होगा। वहीं दूसरी ओर शिया बोर्ड ने विवादित ज़मीन पर सुन्नियों के दावे को गलत बताया। हलफनामे में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा कि कि बाबरी मस्जिद बनवाने वाला मीर बाकी शिया था। इसलिए, विवादित जमीन पर उसका है ना कि सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड का ।

हलफनामे के अलावा शिया बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर फैजाबाद की जिला अदालत के 1946 में दिए गए उस फैसले को भी चुनौती दी है जिसके तहत ट्रायल कोर्ट ने जमीन पर शिया वक़्फ़ बोर्ड के दावे को ठुकरा दिया था।

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इस याचिका में अपने दावे के पक्ष में दलील रखते हुए शिया बोर्ड ने माना है कि शिया से ताल्लुक रखने वाले मीर बाकी ने मंदिर का विध्वंश कर बाबरी मस्जिद बनाई थी। ये देखना अहम होगा कि जमीन पर शिया बोर्ड के दावे को सुप्रीम कोर्ट कितनी गम्भीरता से लेता है।