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ऐसा रहा डीएमके प्रमुख करुणानिधि का फिल्म से लेकर राजनीति तक का सफर

द्रविड़ मुनेत्र कडगम (DMK) प्रमुख एम करुणानिधि का आज लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उन्होंने चेन्नई के कावेरी अस्पताल में शाम 6 बजकर 10 मिनट पर अंतिम सांस ली।

Updated on: 07 Aug 2018, 07:14 PM

नई दिल्ली:

द्रविड़ मुनेत्र कडगम (DMK) प्रमुख एम करुणानिधि का आज लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उन्होंने चेन्नई के कावेरी अस्पताल में शाम 6 बजकर 10 मिनट पर अंतिम सांस ली। करुणानिधि ने तमिल फिल्म उधोग में एक पटकथा लेखक के रूप में अपने करियर की शुरूआत की थी लेकिन जल्‍द ही व्‍यवहारिक समझ और अपने भाषण कौशल के माध्यम से 14 साल की उम्र में एक राजनेता बन गए।

1937 में जब स्कूलों में हिन्दी को अनिवार्य कर दिया गया था तब दक्षिण भारत में हिंदी विरोध पर मुखर होते हुए करुणानिधि ने भी 'हिंदी-हटाओ आंदोलन' में भाग लिया था। इसके बाद उन्होंने तमिल भाषा को अपना हथियार बनाया और तमिल में ही नाटक, अखबार और फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखने लगे।

तमिल भाषा के प्रति उनका प्यार देखते हुए पेरियार और अन्नादुराई ने उन्हें 'कुदियारासु' का संपादक बना दिया। हालांकि जब पेरियार और अन्नादुराई के बीच मतभेद पैदा हुआ तो करुणानिधि ने अन्नादुराई के साथ चुना।

1957 में हुए चुनाव में वो पहली बार विधायक चुने गए। 1967 के चुनावों में पार्टी ने बहुमत हासिल किया और अन्नादुराई तमिलनाडु के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने।

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तमिलनाडु में डीएमके के सत्ता में आने के बाद कांग्रेस आज तक वहां एक सहयोगी से ज्यादा का अस्तित्व नहीं बना पाई है।

तमिलनाडु में सामाजिक स्तर पर सुधार आंदोलनों की एक लंबी परंपरा होने के नाते करुणानिधि ईवी रामास्‍वामी पेरियार के द्रविड़ आंदोलन से जुड़े थे और उस आंदोलन के प्रचार में उन्‍होंने अहम भूमिका अदा की थी।

1969 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बनने के बाद करुणानिधि के राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए।

करुणानिधि साल 1971, 1989, 1996 और 2006 में पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने। प्रतिबंधित संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी एलटीटीई के साथ संबंधों को लेकर भी करुणानिधि चर्चा में रहे हैं।

एलटीटीई वहीं संगठन है जिसने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या करवाई थी। करुणानिधि पर एलटीटीई को बढ़ावा देने का आरोप लगा था। यह आरोप राजीव गांधी की हत्या की जांच करने वाले जस्टिस जैन कमीशन की रिपोर्ट में लगाया गया था।

1989 के लोकसभा चुनाव में डीएमके पार्टी को एक भी सीट जीत हासिल नहीं होने के बावजूद भी करुणानिधि ने वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनाने में चौधरी देवीलाल के साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

संसदीय दल की बैठक में देवीलाल को नेता चुना गया था, लेकिन देवीलाल ने नेता चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री पद को अस्वीकार करके वीपी सिंह को नेता बनाने का प्रस्ताव पेश कर दिया था, जिसका करुणानिधि ने समर्थन किया था।

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बता दें 93 वर्षीय करुणानिधि को बढ़े रक्तचाप के चलते 28 जुलाई को कावेरी अस्पताल में भर्ती कराया गया था।