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अयोध्या मसले पर बैठक में मुस्लिम संगठन दो फाड़, पक्षकारों ने किया बहिष्कार

अयोध्या मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने को लेकर मुस्लिम पक्षों में मदभेद की बात सामने आई है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की रविवार को आयोजित की गई बैठक में सुन्नी वक्फ बोर्ड को आमंत्रण भेजा गया

Updated on: 17 Nov 2019, 04:29 PM

लखनऊ:

अयोध्या मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने को लेकर मुस्लिम पक्षों में मदभेद की बात सामने आई है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की रविवार को आयोजित की गई बैठक में सुन्नी वक्फ बोर्ड को आमंत्रण भेजा गया था लेकिन उसकी तरफ की कोई बैठक में शामिल नहीं हुआ. वहीं पक्षकार इकबाल अंसारी ने भी बैठक का बहिष्कार कर दिया है. नदवा कॉलेज में होने वाली इस बैठक की जगह को भी अचानक बदल दिया गया. जबकि सभी पक्ष इस बैठक में पहुंच चुके थे.

दशकों से चल रहे अयोध्या मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है. यह मामला एक बार फिर कोर्ट की दहलीज पर जा सकता है. सूत्रों के मुताबिक मुस्लिम पक्ष और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने फैसले के खिलाफ पुनर्विचार अर्जी दाखिल करने का फैसला किया है.

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मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन पर भी होगी चर्चा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन देने का फैसला सुनाया. रविवार को होने वाली बैठक में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस पर भी चर्चा करेगा कि 5 एकड़ जमीन लेनी है या नहीं. शनिवार को लखनऊ के नदवा कॉलेज में हुई मुस्लिम पक्ष की बैठक में रिव्यू पीटिशन दायर करने पर रजामंदी हो चुकी है.

पुनर्विचार याचिका पर मुस्लिम पक्ष में असमंजस
इस मामले में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने को लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सभी सदस्य एकमत नहीं हैं. मौलाना कल्बे जव्वाद कह चुके हैं कि देश को दोबारा इस मसने में डालना वाजिब नहीं है. दूसरी तरफ शनिवार को हुई बैठक में मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने हिस्सा नहीं लिया. दोनों पहले ही यह साफ कर चुके हैं कि इस मसले पर कोई पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं करेंगे. हालांकि इस मामले में एम आई सिद्दीकी समेत बाकी तीन पक्षकारों ने याचिका दायर करने को लेकर सहमति दे दी है.

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पुनर्विचार याचिका का विकल्प
सूत्रों की मानें तो जफरयाब जिलानी के साथ उनके कुछ समर्थक सदस्य रिव्यू पिटीशन दाखिल करने के पक्ष में हैं. उनका तर्क है कि कानूनी रूप से जब रिव्यू पिटीशन का विकल्प मिला हुआ है तो हमें इसका इस्तेमाल करना चाहिए. दूसरी तरफ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में एक बड़ा तबका है, जिनके तर्क हैं कि एक बड़ी समस्या का अंत हो गया है. ऐसे में हमें अब इस मामले को यहीं खत्म कर देना चाहिए.

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जमीन ना लेने पर 90 फीसदी सदस्य राजी
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सूत्रों ने बताया कि वे मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन स्वीकार नहीं करेंगे, क्योंकि हमारी लड़ाई कानूनी रूप से इंसाफ के लिए थी. ऐसे में हम वह जमीन लेकर पूरी जिंदगी बाबरी मस्जिद के जख्म को हरा नहीं रख सकते हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में दी गई पांच एकड़ जमीन को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड नहीं स्वीकारेगा. बोर्ड के तकरीबन 90 फीसदी सदस्य इस बात पर राजी हैं. सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी साफ कर दिया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में क्या फैसला होता है, उसके बाद वह जमीन लेने पर अपनी राय रखेगा.