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सर्दी ने रेल के पहियों पर लगाए ब्रेक, घने कोहरे की वजह से 12 ट्रेने लेट

दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत को ठंड ने अपने चादर में समेट लिया है. घने कोहरे और कम दृश्यता की वजह से 12 ट्रेने बेहद लेट चल रही है.

Updated on: 30 Jan 2019, 07:44 AM

नई दिल्ली:

दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत को ठंड ने अपने चादर में समेट लिया है. घने कोहरे और कम दृश्यता की वजह से 12 ट्रेने बेहद लेट चल रही है. गौरतलब है कि मंगलवार को भी दिल्ली और उत्तर भारत के मैदानी इलाकों का तापमान काफी नीचे आ गया था और राजधानी में न्यूनतम पारा 5 ड्रिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था. कोहरे और कम दृश्यता की वजह से बुधवार को भी नई दिल्ली से चलने वाली करीब 16 ट्रेनें देरी से चल रही थी, जिससे यात्रियों को इस कड़ाके की ठंड में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. लोग खुले प्लेटफॉर्म पर रात काटने को मजबूर हैं.

हालांकि बारिश और लगातार चल रही हवाओं की वजह से दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता में सुधार देखने को मिल रहा है. बुधवार को दिल्ली के लोधी रोड में वायु गुणवत्ता का स्तर PM 2.5 के साथ 186 (मध्यम) रहा, जबकि PM 10 पर प्रदूषण का स्तर 159 पर रहा. दोनों ही श्रेणियां मध्यम स्तर पर आती हैं. देखा जाए तो बारिश से पहले के स्तर के मुकाबले अभी दिल्ली में लोगों को प्रदूषण से थोड़ी बहुत राहत जरूर मिल रही है.

दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण स्तर बढ़ने पर एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने बुधवार को कहा कि वर्तमान प्रदूषण के संदर्भ में एन95 मास्क और पॉलिशन मास्क सांस से संबंधित खतरों में लंबे समय तक संरक्षण प्रदान नहीं कर सकते हैं. देश के प्रमुख श्वास-रोग विशेषज्ञों में से एक गुलेरिया ने कहा, 'हम सभी को यह समझने की जरूरत है कि एन 95 मास्क और पॉलिशन मास्क (एयर प्यूरीफायर) लंबे समय तक सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकते और न ही पूरी तरह से प्रभावी हैं.

एन 95 मास्क और एयर प्यूरीफायर की बिक्री पिछले कुछ दिनों में प्रदूषण के कारण बढ़ गई है.' एन95 मास्क एक श्वसन यंत्र (रेस्पिरेशन सिस्टम ) हैं, जो नाक और मुंह को कवर करता है.

प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर पहुंचने के बाद संवाददाताओं से बात करते हुए गुलेरिया ने दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण संबंधी बीमारियों के कारण लगभग 30,000 अनुमानित मौतों का संकेत दिया है.

गुलेरिया ने कहा, 'मैं एक बार फिर चेतावनी देना चाहता हूं कि वर्तमान प्रदूषण के स्तर के कारण मरीजों की मौत हो सकती है खासकर उन लोगों की, जो सांस संबंधी समस्याओं से पीड़ित हैं.'

उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की ओपीडी में सांस के रोग से पीड़ित मरीजों में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. गुलेरिया ने कहा, 'प्रदूषण से बच्चे और वृद्ध सबसे अधिक रूप से प्रभावित हैं. ऐसे प्रदूषण को देखते हुए आज के बच्चे अगले 20 साल में फेफड़े की गंभीर बीमारी से पीड़ित होंगे.'