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उपभोक्ता संरक्षण को मजबूती देने के लिए लोकसभा में विधेयक पारित

उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2019 को पारित करने के लिए सरकार की ओर से केंद्रीय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान ने अपना पक्ष रखा.

Updated on: 30 Jul 2019, 10:29 PM

highlights

  • लोकसभा में उपभोक्ता संरक्षण बिल पारित
  • विपक्ष ने बिल पर कई बार उठाया सवाल
  • बिल में उपभोक्ता के हितो का रखा गया है ध्यान

नई दिल्ली:

उपभोक्ता शिकायतों से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर के नियामक, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) का गठन करने के लिए मंगलवार को लोकसभा में एक विधेयक ध्वनिमत से पारित किया गया. इस दौरान इसके कई प्रावधानों पर विपक्ष द्वारा आपत्ति भी जताई गई. उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2019 को पारित करने के लिए सरकार की ओर से केंद्रीय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान ने अपना पक्ष रखा. उन्होंने उपभोक्ता अधिकारों को मजबूत करने के लिए नया कानून लाने की आवश्यकता पर जोर दिया. पासवान ने कहा कि अगर उपभोक्ता किसी चीज से संतुष्ट नहीं हैं तो यह विधेयक उनका अदालत में जाने का रास्ता साफ करेगा. 

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की जगह लेने वाले विधेयक में सीसीपीए को राष्ट्रीय स्तर के नियामक के रूप में स्थापित करने के लिए कुल 109 खंड हैं. विधेयक में वर्गीय कार्यों, उत्पाद दायित्व, भ्रामक विज्ञापन, सेलिब्रिटी विज्ञापन दायित्व सहित अन्य समस्याओं से निपटने के प्रावधान भी हैं. यह ई-कॉमर्स, डायरेक्ट सेलिंग और टेली-मार्केटिंग जैसी नए युग की चीजों में भी सहायक होगा. सीसीपीए विधेयक उपभोक्ताओं के अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार व्यवहार के साथ झूठे या भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों से निपटेगा जो जनता और उपभोक्ताओं के हितों के लिए जरूरी हैं.

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मंत्री के अनुसार विधेयक में एक महानिदेशक के नेतृत्व में एक जांच शाखा होगी, जिसके पास तलाशी लेने और जब्त करने की शक्तियां होंगी. इसी बीच सत्ता पक्ष के कुछ सदस्यों सहित विपक्षी दल कांग्रेस, मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), एआईएमआईएम, टीडीपी और एनसीपी ने विधेयक पर चिंता व्यक्त करते हुए इसके विभिन्न प्रावधानों पर आपत्ति जताई. कांग्रेस सदस्य शशि थरूर ने कहा कि मध्यस्थता क्लॉज को उपभोक्ता फोरम में अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि यह उपभोक्ता की मदद करने के लिए फोरम की शक्ति को सीमित करता है.

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उन्होंने कहा, "कानून को सीमित दायित्व क्लॉज पर वरीयता लेनी चाहिए. विधेयक में सेवाओं की परिभाषा नि: शुल्क सेवाओं को शामिल नहीं करती है." थरूर ने कहा कि उदाहरण के लिए, सरकारी अस्पताल मुफ्त सेवाएं देते हैं लेकिन उपभोक्ताओं को लापरवाही पर मुआवजा दिया जाता है. भाजपा के राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि अगर बिलों का भुगतान नहीं किया गया तो टेलीफोन कंपनियां फोन कनेक्शन काट देती हैं. लेकिन अगर कॉल ड्रॉप के कारण फोन अपने आप बंद हो जाते हैं, तो कोई यह नहीं कह सकता है कि वह भुगतान नहीं करेगा क्योंकि विभाग कनेक्शन काट देगा. उन्होंने कहा, "इसी तरह अगर बिजली 24 घंटे के अंदर प्रदान नहीं की जाती है तो यह भुगतान न करने के लिए मेरा विशेषाधिकार है. मगर वह विकल्प उपलब्ध नहीं है. हम उन क्षेत्रों में सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम नहीं हैं, जहां एकाधिकार है."

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