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इसी सत्र में आएगा नागरिकता संशोधन बिल, सरकार ने पूरी की तैयारी

केंद्र सरकार ने शीतकालीन सत्र में नागरिकता संशोधन बिल पेश करने की तैयारी कर ली है. सूत्रों के मुताबिक सरकार इसी सत्र में इस बिल को पेश करेगी.

Updated on: 29 Nov 2019, 12:30 PM

नई दिल्ली:

केंद्र सरकार ने शीतकालीन सत्र में नागरिकता संशोधन बिल पेश करने की तैयारी कर ली है. सूत्रों के मुताबिक सरकार इसी सत्र में इस बिल को पेश करेगी. नागरिकता संशोधन बिल का पूर्वोत्तर के राज्य विरोध कर रहे हैं. पूर्वोत्तर के लोग इस बिल को राज्यों की सांस्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक विरासत से खिलवाड़ बता रहे हैं.

तीन तलाक और कश्मीर मसले का हल करने के बाद अब केंद्र की बीजेपी सरकार के लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) तैयार करने की चुनौती है. सरकार ने इसका फाइनल ड्राफ्ट तैयार बी कर लिया है. केंद्र सरकार इसी सत्र में इस बिल को संसद में लेकर आएगी. माना जा रहा है कि सत्र के आखिरी दिनों में बिल को संसद के सामने पेश किया जाएगा.

बिल का फाइनल ड्राफ्ट आने के बाद से ही असम में विरोध-प्रदर्शन भी हुए थे. हालांकि इसमें जिन लोगों के नाम नहीं हैं, उन्हें सरकार ने शिकायत का मौका भी दिया. सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी से बाहर हुए लोगों के साथ सख्ती बरतने पर रोक लगा दी थी. अब, जबकि सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक लाने जा रही है, विरोध एक बार फिर मुखर होने लगा है.

क्या है नागरिकता संशोधन बिल
नागरिकता संशोधन बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया जा रहा है. इसमें नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नियमों में बदलाव होगा. नागरिकता बिल में इस संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा.

कम हो जाएगी निवास अवधि
भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए देश में 11 साल निवास करने वाले लोग योग्य होते हैं. नागरिकता संशोधन बिल में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शरणार्थियों के लिए निवास अवधि की बाध्यता को 11 साल से घटाकर 6 साल करने का प्रावधान है.

इसिलए हो रहा है विरोध
इस बिल को सरकार की ओर से अवैध प्रवासियों की परिभाषा बदलने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. गैर मुस्लिम 6 धर्म के लोगों को नागरिकता प्रदान करने के प्रावधान को आधार बना कांग्रेस और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट धार्मिक आधार पर नागरिकता प्रदान किए जाने का विरोध कर रहे हैं. नागरिकता अधिनियम में इस संशोधन को 1985 के असम करार का उल्लंघन भी बताया जा रहा है, जिसमें सन 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी धर्मों के नागरिकों को निर्वासित करने की बात थी.

बीजेपी के सहयोगी दल भी कर रहे विरोध
असम में बीजेपी के साथ सरकार चला रहा असम गण परिषद (अगप) भी नागरिकता संशोधन बिल को स्थानीय लोगों की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान के खिलाफ बताते हुए इसका विरोध कर रहा है. असम में एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया भी जारी है. ऐसे में नागरिकता संशोधन बिल लागू होने की स्थिति में एनआरसी के प्रभावहीन हो जाने का हवाला देते हुए लोग विरोध कर रहे हैं.