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CBI vs CBI: आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली

जस्टिस फली नरीमन ने कहा कि आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के आदेश का कोई आधार नहीं है. अगर कोई गलत हुआ जिसकी जांच की जरूरत है तो कमेटी के पास जाना चाहिए था.

Updated on: 29 Nov 2018, 04:02 PM

नई दिल्ली:

सीबीआई बनाम सीबीआई मामले (CBI vs CBI) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में गुरुवार को सुनवाई टल गई है. अब इस मामले में अगली सुनवाई 5 दिसंबर को अगली सुनवाई होगी. इससे पहले सुनवाई करते हुए जस्टिस फली नरीमन ने कहा कि आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के आदेश का कोई आधार नहीं है. अगर कोई गलत हुआ जिसकी जांच की जरूरत है तो कमेटी के पास जाना चाहिए था. सरकार को इस मामले में कम से कम कमेटी के पास जाना चाहिए था. अगर किसी कारण से उनका तबादला करना था तो कमेटी की मंजूरी जरूरी है. इसके बिना सरकार का आदेश कानून में खड़ा नहीं होता. सरकार को कमेटी को बताना था.

उन्होंने कहा, 'सीबीआई निदेशक की नियुक्ति की सिफारिश प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और नेता प्रतिपक्ष करते हैं. दो साल का कार्यकाल नियम के मुताबिक है. कानून खुद कहता है कि सीबीआई निदेशक इस तरह ट्रांसफर नहीं होगा. आलोक वर्मा को कमेटी ने चुना था. उसकी मंजूरी जरूरी है. कानून में कहीं नहीं है कि इस तरह निर्वासित में भेजा जाए.'

उन्होंने नियुक्ति की प्रक्रिया बताते हुए कहा, 'CBI निदेशक को कमेटी ही नियुक्त कर सकती है, कमेटी की सिफारिश पर ही नियुक्त किया जाता है. कमेटी तय करती है. इसमे प्रधानमंत्री, cji और विपक्ष के नेता भी होते हैं. विपक्ष के नेता ना हों तो सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को सदस्य बनाया जाय. ना ही कानून में निदेशक की शक्तियों को हल्का करने का प्रावधान हैं. अगर इस दौरान आसाधारण हालात में सीबीआई निदेशक का ट्रांसफर किया जाना है तो कमेटी की अनुमति लेनी होगी.'

बाद में जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि अगर सीबीआई निदेशक घूस लेते हुए रंगे हाथ पकड़े जाते तो क्या होता? इस पर नरीमन ने कहा कि तो फिर उनको कोर्ट में या फिर कमेटी के सामने जाना होता. जोसेफ ने कहा, 'हम सिर्फ फिलहाल फली की कमेटी की दलीलों को सुनना चाहते हैं.'

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कहा- पहले कोर्ट में आलोक वर्मा की याचिका पर सुनवाई होने दे। वो उसके outcome का इंतजार करेंगी

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इसी बीच CBI डीआईजी मनीष सिन्हा की ओर से पेश वकील इन्दिरा जंय सिंह ने कहा कि वो अभी अपने केस को जिरह नहीं करना चाहती।

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चीफ जस्टिस ने पूछा- क्या क़ानूनी प्रावधान ऐसे है कि बिना selection panel की मंजूरी के सीबीआई डायरेक्टर को टच भी नही किया जा सकता.


सिब्बल, दुष्यत दवे , नरीमन सब ने कहा- ऐसा ही है

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कोर्ट ने सीवीसी पर आरोप लगा रहे सिब्बल को टोका। नसीहत दी कि सिर्फ क़ानूनी बिंदु पर बहस करे

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चीफ जस्टिस ने एक बार फिर कहा कि वो आलोक वर्मा या राकेश अस्थाना के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप में नहीं जाएगा


 

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आज ये सीबीआई डारेक्टर के साथ हो रहा है, कल कैग और खुद CVC के साथ भी हो सकता है, क्योंकि प्रावधान एक जैसे है- सिब्बल 

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सीबीआई डायरेक्टर की Selection पैनल द्वारा नियुक्ति का अधिकार ही पैनल को उनको ससपेंड या डिसमिस करने का अधिकार भी देता है। ये ही प्रकिया आलोक वर्मा के केस में भी अपनायी जानी चाहिये। उन्हें छुट्टी पर भेजने जा फैसला पैनल को लेना चाहिए था


 

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सीबीआई पर सीवीसी का सुपरविजन सिर्फ करप्शन के मामलों को लेकर है लेकिन ये सीवीसी को ये अधिकार नहीं देता कि वो सीबीआई डायरेक्टर का ऑफिस सीज करे या उसे छुट्टी पर भेजे- सिब्बल 

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अब सिब्बल ,कांग्रेस नेता खड़गे की ओर से जिरह कर रहे है।

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दुष्यंत दवे ने भी नरीमन की दलीलों को दोहराया। कहा-बिना सेलेक्शन पैनल की मंजूरी के CBI डायरेक्टर को छुट्टी पर भेजे जाने का फैसला नहीं लिया जा सकता।


 

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प्रशांत भूषण के एनजीओ कॉमन कॉज के लिए अपना पक्ष रख रहे दुष्यंत दवे जैसे ही राकेश अस्थाना के खिलाफ कुछ बोलने गए, सीजेआई रंजन गोगोई ने उन्हें रोक दिया. मामले की सुनवाई कर रही बेंच लंच ब्रेक पर चली गई है. 2 बजे से फिर से सुनवाई को आगे बढ़ाया जाएगा.


 

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सुप्रीम कोर्ट ने वकील दुष्यंत दवे को सीबीआई स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ जिरह करने से मना कर दिया है.

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अब वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे एनजीओ कॉमन कॉज के लिए अपना पक्ष रख रहे हैं.