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SC ने 17 साल बाद बिलकिस बानो केस में दिया फैसला, मिलेगा मुआवजा, घर और सरकारी नौकरी

पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को बिलकिस बानो को 50 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया था.

Updated on: 01 Oct 2019, 09:57 AM

highlights

  • बिलकिस बानो को 17 सालों के बाद SC से मिला न्याय
  • अप्रैल में ही SC ने दिया था मुआवजा और नौकरी का आदेश
  • गुजरात दंगों में बिलकिस बानो के साथ हुआ था गैंगरेप

नई दिल्ली:

गुजरात दंगों के दौरान दुष्कर्म पीड़िता बिलकिस बानो को आखिरकार 17 सालों के बाद न्याय मिल ही गया. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2002 में हुए गुजरात दंगों के दौरान दुष्कर्म पीड़िता बिलकिस बानो की याचिका पर फैसला सुनाते हुए गुजरात सरकार को उसे 50 लाख रुपये मुआवजा, नौकरी और घर देने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को दो यह मुआवजा, सरकारी नौकरी और घर 2 सप्ताह के भीतर देने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट में बिलकिस बानो की ओर से कहा गया है कि अभी तक सरकार ने उन्हें कुछ भी नहीं दिया है.

आपको बता दें, पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को बिलकिस बानो को 50 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया था. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से यह भी कहा था कि नियमों के मुताबिक बिलकिस बानो को एक सरकारी नौकरी और आवास भी मुहैया कराए. आपको बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2019 में गुजरात सरकार को दंगा मामले की पीड़िता बिलकिस बानो को ये मुआवजा देने के आदेश दिया था. जिसके जवाब में गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि दोषी अधिकारियों, जिन्होंने बिलकिस गैंगरेप मामले में सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की, उनमें से कई को पूरे पेंशन लाभ से हटा दिया गया. एक IPS अधिकारी को दो रैंकों में डिमोट किया गया है, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस वालों पर कार्रवाई पर मुहर लगा दी थी.

ये है पूरा मामला
साल 2002 में गुजरात दंगों के दौरान लगभग 20 वर्षीय बिलकिस बानो के साथ सामूहित दुष्कर्म हुआ था. इन दंगों के दौराान में बिलकिस की दो साल की मासूम बेटी की हत्या कर दी गई थी दंगाइयों ने उनकी बेटी का सर काटकर धड़ से अलग कर दिया था. 3 मार्च 2002 को गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस का परिवार ट्रक से सुरक्षित स्थान की तलाश में जा रहा था कि तभी 30 से 35 लोगों ने उस ट्रक पर धावा बोल  दिया और दंगाइयों के इस हमले में 14 लोगों की हत्या कर दी गई जिसमें कुछ बच्चों समेत 4 महिलाएं शामिल थी. वहीं 20 साल की बिलकिस याकूब रसूल के साथ सामूहिक दुष्कर्म कर उन्हें वहीं मरने के लिए छोड़ दिया गया. जिसके बाद जैसे तैसे उनकी जान बच गई और उन्होंने अपने न्याय के लिए लंबी जंग लड़ी.

मुंबई हाई कोर्ट ने सुनाई थी आरोपियों को सजा
गुजरात दंगो के इस मामले को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय ने साल 2017 में बिलकिस बानो गैंगरेप और उनके परिवार की हत्या के सभी 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. मुंबई के उच्च न्यायायल ने इस गंभीर अपराध में शामिल  सातों आरोपियों जिनमें डॉक्टर से लेकर पुलिसवाले सभी शामिल थे. निचली कोर्ट के फैसले को रद्द कर सबको उम्र कैद की सजा दी थी. निचली कोर्ट ने इन आरोपियों को बरी करने का फैसला सुनाया था. आपको बता दें इन सभी आरोपियों पर सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप था.

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गोधरा कांड के बाद हुआ था गुजरात दंगा
साल 2002 में हुए गोधरा कांड के कुछ दिनों के बाद ही पूरे गुजरात में गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा फैल गई थी. दंगाइयों ने पूरे गुजरात में कोहराम मचा दिया था. इन दंगाइयों से बचने के लिए हजारों हिंदू और मुस्लिम परिवार सुरक्षित स्थानों पर जा रहे थे. इसमें से ही एक परिवार बिलकिस बानो का भी था परिवार में 17 लोग थे जो ट्रक में बैठकर जा रहे थे. उसी दौरान लगभग 30-35 हमलावरों ने उन पर हमला कर दिया. इन दंगाइयों ने एक घंटे के अंदर ट्रक में मौजूद सभी लोगों की हत्या कर दी. इतना ही नहीं दंगाइयों ने बिलकिस बानो और उसकी मां के साध सामूहिक दुष्कर्म भी किया था. बिलकिस ने दोषियों के नाम गोविंद नाई, जसवंत नाई और शैलेष भट्ट बताए थे. अपनी घिनौनी हरकत के बाद हमलवारों ने उन्हें वहीं मरने के लिए छोड़ दिया.

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जानिए क्या था गोधरा कांड 
27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन में सवार 59 लोगों की आग में जलकर मौत हो गई. ये सभी 'कारसेवक' थे, जो अयोध्या से लौट रहे थे. 27 फरवरी की सुबह जैसे ही साबरमती एक्सप्रेस गोधरा रेलवे स्टेशन के पास पहुंची, उसके  S-6 कोच से आग की लपटें उठने लगीं और धुएं का गुबार निकलने लगा. इस आग ने इस कोच में सवार अधिकांश लोगों को अपनी चपेट में ले लिया जिसके बाद 59 कारसेवकों की मौत हो गई. ये कारसेवक राम मंदिर आंदोलन के तहत अयोध्या में एक कार्यक्रम से वापस लौट रहे थे. इस घटना ने गुजरात के माथे पर एक अमिट दाग लगा दिया. ट्रेन की आग को साजिश माना गया. ट्रेन में भीड़ द्वारा पेट्रोल डालकर आग लगाने की बात गोधरा कांड की जांच कर रहे नानवती आयोग ने भी मानी. मगर, गोधरा कांड के अगले ही दिन मामला अशांत हो गया. 28 फरवरी को गोधरा से कारसेवकों के शव खुले ट्रक में अहमदाबाद लाए गए. ये घटना भी चर्चा का विषय बनी. इन शवों को परिजनों के बजाय विश्व हिंदू परिषद को सौंपा गया. जल्दी ही गोधरा ट्रेन की इस घटना ने गुजरात में दंगों का रूप ले लिया.

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