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AyodhyaVerdict: अयोध्या एक्ट 1993 सुप्रीम कोर्ट में लटका और खारिज हुआ था

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या एक्ट की 1994 में व्याख्या की थी. सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से तय किए फैसले में एक्ट के एक खंड को रद्द कर दिया था जिसमें इस मामले में चल रही सारी सुनवाइयों को खत्म किए जाने की बात कही गई थी.

Updated on: 09 Nov 2019, 10:43 AM

highlights

  • अयोध्या में विवादित जमीन के आसपास दो बार सरकार ने जमीन अधिग्रहित की हैं.
  • विवादित 2.77 एकड़ जमीन के अलावा अगल-बगल की 67.70 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई.
  • 0.313 एकड़ विवादित जमीन पर रामलला विराजमान है.

New Delhi:

अयोध्या में विवादित जमीन के आसपास दो बार सरकार ने जमीन अधिग्रहित की हैं. पहली बार 1991 में राज्य सरकार ने जमीन अधिग्रहित की और दूसरी बार केंद्र सरकार ने अयोध्या कानून के तहत 1993 में विवादित जमीन के पास खाली पड़ी सभी जमीनों को अधिकग्रहित कर लिया. 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने अयोध्या में विवादित ढांचे को तोड़ दिया था. इसके बाद केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार 1993 में राम मंदिर पर एक अध्यादेश लेकर आई. 7 जनवरी 1993 को राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इस अध्यादेश को मंजूरी दी. लोकसभा में मंजूरी के बाद इसे अयोध्या अधिनियम कहा गया था.

1993 की राजनीति
हालांकि उस वक्त बीजेपी ने इसका विरोध किया था. एक रिपोर्ट के मुताबिक बिल को पेश करते हुए तत्कालीन गृहमंत्री एसबी चव्हाण ने कहा था, "देश के लोगों में सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की भावना बनाए रखना जरूरी है." बीजेपी ने उस वक्त प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव का खुलकर विरोध किया था. तत्कालीन बीजेपी उपाध्यक्ष एसएस भंडारी ने इस कानून को पक्षपातपूर्ण, तुच्छ और प्रतिकूल बताते हुए खारिज कर दिया था. बीजेपी के साथ मुस्लिम संगठनों ने भी इस कानून का विरोध किया था.

क्या कहता है कानून
इस कानून के तहत विवादित 2.77 एकड़ जमीन के अलावा अगल-बगल की 67.70 एकड़ जमीन भी अधिग्रहित की गई. तब सरकार ने इस जमीन का अधिग्रहण का मकसद राम मंदिर, मस्जिद और श्रद्धालुओं के लिए जनसुविधाएं, एक लाइब्रेरी और संग्रहालय बनाने का बात बताया था. पूरी जमीन विवादित 2.77 एकड़ और गैरविवादित 67.7 एकड़ जमीन है. यानि कुल जमीन है 70.47 एकड़ है. इसी विवादित 2.77 एकड़ जमीन में 0.313 एकड़ विवादित जमीन पर रामलला विराजमान है.

सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दी थी सलाह
नरसिम्हा राव सरकार ने अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से भी इस मसले पर सलाह मांगी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राय देने से मना कर दिया था. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा था कि क्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की विवादित जमीन पर पहले कोई हिंदू मंदिर या हिंदू ढांचा था? सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों (जस्टिस एमएन वेंकटचलैया, जेएस वर्मा, जीएन रे, एएम अहमदी और एसपी भरूचा) की खंडपीठ ने इन सवालों पर विचार तो किया लेकिन कोई जवाब नहीं दिया.

इस तरह लटका अयोध्या एक्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या एक्ट की 1994 में व्याख्या की थी. सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से तय किए फैसले में एक्ट के एक खंड को रद्द कर दिया था जिसमें इस मामले में चल रही सारी सुनवाइयों को खत्म किए जाने की बात कही गई थी. हालांकि अयोध्या एक्ट रद्द नहीं किया गया था. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने अधिग्रहित जमीन पर एक राम मंदिर, एक मस्जिद और लाइब्रेरी और दूसरी सुविधाओं के इंतजाम की बात का समर्थन किया था, लेकिन इस आदेश को राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं बताया था, जिसके चलते अयोध्या एक्ट लटक गया और व्यर्थ हो गया.