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Ayodhya Verdict: इलाहाबाद हाई कोर्ट से इस तरह अलग रहा सुप्रीम कोर्ट का फैसला

हिन्‍दुओं (Hindu) के सबसे बड़े आराध्‍य श्रीराम (SriRam) का अयोध्‍या में मंदिर बनने का रास्‍ता सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है.

Updated on: 09 Nov 2019, 08:22 PM

नई दिल्ली:

हिन्‍दुओं (Hindu) के सबसे बड़े आराध्‍य श्रीराम (SriRam) का अयोध्‍या में मंदिर बनने का रास्‍ता सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है. अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को विवादित पूरी 2.77 एकड़ जमीन रामलला को दे दी. कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि नई मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ का भूखंड मुहैया कराया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा विवादित जमीन को तीन पक्षों में बांटने के फैसले को अतार्किक करार दिया. आखिरकार में सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया.

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सीजेआई रंजन गोगोई (CJI Ranjan Gogai) की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील 134 साल से भी अधिक पुराने इस विवाद का पटाक्षेप कर दिया. वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड ने साफ कर दिया है कि हम इस मामले में कोई भी रिव्यू फाइल नहीं करेंगे. हम इस फैसले का स्वागत करते हैं.

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं. संविधान पीठ ने अपने 1045 पन्नों के फैसले में कहा कि नई मस्जिद का निर्माण प्रमुख स्थल पर किया जाना चाहिए. उस स्थान पर मंदिर निर्माण के लिए तीन माह में एक ट्रस्ट गठित किया जाना चाहिए, जिसके प्रति हिन्दुओं की यह आस्था है कि भगवान राम का जन्म यहीं हुआ था.

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बता दें कि इस स्थान पर 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद थी, जिसे कारसेवकों ने छह दिसंबर 1992 को गिरा दिया था. विवादित स्थल गिराए जाने की घटना के बाद देश में सांप्रदायिक दंगे भड़के थे. पीठ ने कहा कि 2.77 एकड़ की विवादित भूमि का अधिकार रामलला विराजमान को सौंप दिया जाए, जो इस मामले में एक वादकारी हैं. हालांकि यह भूमि केंद्र सरकार के रिसीवर के कब्जे में ही रहेगी.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनाया था ये फैसला

सुप्रीम कोर्ट से पहले इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में अपना फैसला सुनाया था. हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि करार दिया था. हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया था. कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माही अखाड़ा और रामलला के बीच जमीन बराबर बांटने का आदेश दिया था.

केस से जुड़ी तीनों पार्टियां निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड और रामलला विराजमान ने यह फैसला मानने से मना कर दिया था. हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपील दायर की गई. यह मामला पिछले 9 वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित था. इस मामले की 6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई शुरू हुई जो 16 अक्टूबर को खत्म हुई. सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.