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अयोध्या मामला: सुप्रीम कोर्ट में आखिरी सुनवाई आज, जानिए पहले दिन से अब तक क्या हुआ

सुप्रीम कोर्ट में आज यानी 16 अक्टूबर को अयोध्या मामले पर सुनवाई का आखिरी दिन है. सुप्रीम कोर्ट में 17 अक्टूबर से पहले मामले की सुनवाई खत्म होनी है

Updated on: 16 Oct 2019, 11:46 AM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट में आज यानी 16 अक्टूबर को अयोध्या मामले पर सुनवाई का आखिरी दिन है. सुप्रीम कोर्ट में 17 अक्टूबर से पहले मामले की सुनवाई खत्म होनी है. सीजेआई ने संकेत दिया है कि बुधवार को बहस पूरी हो जाएगी और फैसला सुरक्षित रख लिया जाएगा. आज हिंदू पक्ष के वकील को 45 मिनट का वक्त बहस करने के लिए मिलेगा. वहीं, मुस्लिम पक्ष के वकील को 1 घंटे का वक्त मिलेगा. ऐसे में आइए जानते हैं 6 अगस्त से रोजाना शुरू हुई इस मामले की सुनवाई में अब तक क्या-क्या हुआ है.

पहला दिनः 6 अगस्त

निर्मोही अखाड़े की दलील. सबसे पहले निर्मोही अखाड़े ने दलीलें पेश करना शुरू किया. दावा किया कि 1934 से किसी भी मुस्लिम को विवादित ढांचे में प्रवेश नहीं मिला है.

दूसरा दिनः 7 अगस्त

आस्था ही प्रमाण. रामलला विराजमान ने कहा , भक्तों की अटूट आस्था प्रमाण है कि विवादित स्थल ही राम का जन्मस्थान है.

तीसरा दिनः 8 अगस्त

जन्मस्थान वादी हो सकता है ? कोर्ट ने रामलला विराजमान के वकील से पूछा कि देवता के जन्मस्थान को मामले में कानूनी व्यक्ति के तौर पर माना जा सकता है ? वकील ने कहा , जन्मस्थली कानूनी व्यक्ति की तरह है , वह वादी हो सकता है.

चौथा दिनः 9 अगस्त

 रोज सुनवाई में मदद मुश्किल. मुस्लिम पक्षकार के वकील ने कहा , यह संभव नहीं है कि हफ्ते में रोज कोर्ट का सहयोग करें.

पांचवां दिनः 13 अगस्त

· हिंदू पक्ष की दलीलें जारी. कोर्ट ने पूछा , जमीन पर आपका हक मुस्लिम पक्षकार के साथ साझा है , तब एकाधिकार कैसे ? रामलला विराजमान ने कहा , जमीन कुछ समय के लिए बोर्ड के पास जाने से वह मालिक नहीं हो जाता.

छठा दिनः 14 अगस्त

· वेद-पुराण का हवाला दिया. रामलला विराजमान की तरफ से ऐतिहासिक किताबों , विदेशी यात्रियों के यात्रा वृतांतों और वेद एवं स्कंद पुराण की दलीलें कोर्ट में पेश की गईं.

सातवां दिनः 16 अगस्त

· एएसआई रिपोर्ट का दिया हवाला. रामलला विराजमान के वकील ने एएसआई की रिपोर्ट के हवाले से दावा किया कि जिस जगह मस्जिद बनाई गई थी उसके नीचे मंदिर का बहुत बड़ा ढांचा था. कोर्ट ने सवाल किया था कि मस्जिद के नीचे जो ढांचा था वह धार्मिक स्ट्रक्चर ही था , इसे साबित करें.

आठवां दिनः 20 अगस्त

· हाई कोर्ट के फैसले का जिक्र. रामलला विराजमान के वकील ने इलाहाबाद सीएस वैद्यनाथ मामले में हाई कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा , जज ने खुद लिखा है कि भगवान राम का मंदिर ढहाकर मस्जिद बनाई गई.

नौवां दिनः 21 अगस्त

· मंदिर अपने आप में भगवान. रामलला के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा , कोई भी महज मस्जिद जैसा ढांचा खड़ा कर इस पर मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता. विवादित भूमि पर मुस्लिम पक्ष व निर्मोही अखाड़ा का दावा खारिज.

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सुनवाई का 10 वां दिन-22 अगस्त

· गोपाल सिंह विशारद की ओर से वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने अपनी दलीलें शुरू की। उन्होंने कहा मैं उपासक हूं और मुझे विवादित स्थल पर उपासना का अधिकार है. यह अधिकार मुझसे छीना नहीं जा सकता. भगवान राम का उपासक होने के नाते मेरा मेरा वहां पर पूजा करने का अधिकार है. यह मेरा सामाजिक अधिकार है , जिसे हटाया नहीं जा सकता. ये वो जगह है जहां भगवान राम का जन्म हुआ था। मैं यहां पर पूजा करने का अधिकार मांग रहा हूं. इसके बाद वकील रंजीत कुमार ने ट्रायल कोर्ट के सामने पेश किए गए दस्तावेजों को सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा

· (80 साल के अब्दुल गनी की गवाही का हवाला देते हुए) गनी ने कहा था बाबरी मस्जिद जन्मस्थान पर बनी है ब्रिटिश राज में मस्जिद में सिर्फ जुमे की नमाज होती थी। हिन्दू भी वहां पर पूजा करने आते थे. मस्जिद गिरने के बाद मुस्लिम ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया लेकिन हिंदुओं ने जन्मस्थान पर पूजा जारी रखी.

· रंजीत कुमार ने कहा दस्तावेज बताते हैं कि 1858 से पूजा होती रही है. हिंदुत्व और हिंदू में पूजा का अधिकार मिला हुआ है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में ये बात मानी है कि हिंदू 100 साल से वहां पूजा करते रहे हैं. यानी पूजा लगातार होती रही है और तमाम दस्तावेज ये बात साबित करते हैं. जो हलफनामे पेश किए गए हैं उससे साबित होता है कि 1934 के बाद वहां नमाज नहीं पढ़ी गई.

· इसके बाद पीएन मिश्रा की दलीलें शुरू हुईं. उन्होंने कहा कि स्कंद पुराण में बताया गया है कि कहां जन्मस्थान है. इसपर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जस्टिस बोबडे ने कहा कि वह मैप से लोकेशन शेयर करें.

सुनवाई का 11 वां दिन- 23 अगस्त

· निर्मोही अखाड़े की ओर से दलील रख रहे सुशील जैन ने कोर्ट से कहा कि वो विवादित ज़मीन पर मालिकाना हक़ का दावा नहीं कर रहे , सिर्फ पूजा-प्रबन्धन और कब्जे का अधिकार मांग रहे है. अयोध्या बहुत बड़ा है , पर प्रभु राम की तस्वीर सिर्फ रामजन्म भुमि में स्थापित की गई थी.

· सुशील जैन ने कहा कि मेरे सेवादार के अधिकार को छीन कर मुझसे कब्जा लिया गया. सुशील जैन ने ये भी कहा कि रामलला की ओर से जो निकट सहयोगी देवकी नंदन अग्रवाल बनाये गए है , मैं उन्हें नहीं मानता. वो तो पुजारी भी नहीं है.

· इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि जब आप किसी देवता के सेवादार/पुजारी के नाते अपना अधिकार मांगते है तो आप फिर उस देवता ( रामलला विराजमान) की ओर से दायर अर्जी का विरोध कैसे कर सकते हैं. मान लीजिए कि देवता( रामलला) की याचिका खारिज हो गई तो फिर तो अपने आप ही सेवादार होने का आपका दावा भी खारिज हो जाएगा.

· सुशील जैन ने कहा , मैं रामलला और रामजन्मस्थान की याचिका के खिलाफ नहीं हूx. मेरी दलील है कि देवकीनंदन अग्रवाल निकट मित्र की हैसियत नहीं रखते. सुशील जैन ने ये भी दावा किया सिर्फ निर्मोही अखाड़े का नाम नाम गैजेटियर और ऐतिहासिक दस्तावेजो में अंकित है. सिर्फ मैं ही हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर सकता हूँ. जस्टिस बोबडे के पूछने पर सुशील जैन ने अदालत में वो बयान भी पढ़े जिनसे साबित हो कि निर्मोही अखाड़े के मंदिर के प्रबंधन पर कब्जा रहा है.

सुनवाई का 12 वां दिन- 26 अगस्त

· सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की 12 वें दिन सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील कुमार जैन ने दलीलें पेश कीं. उन्होंने कहा कि हम देव स्थान का मैनेजमेंट करते हैं और पूजा का अधिकार चाहते हैं. जन्मस्थान पर अधिकार न तो देवता के नेक्स्ट फ्रेंड को दिया जा सकता है न ही पुजारी को. यह केवल जन्मस्थान का मैनेजमेंट करने वाले को दिया जा सकता है और निर्मोही अखाड़ा जन्मस्थान का मैनेजमेंट देखता है.

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सुनवाई का 13 वां दिन- 27 अगस्त

· 13 वें दिन की सुनवाई में निर्मोही अखाड़ा ने कहा , 1855 से पहले यहां कभी नहीं पढ़ी गई नमाज...उनकी तरफ से वकील सुशील जैन दलीलें दे रहे थे. इसके बाद कोर्ट ने हिंदू पक्ष की दलीलें सुनीं.

· निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने कहा कि विवादित ढांचे में मुस्लिम ने 1934 के बाद से कभी नमाज नहीं पढ़ी है.ये मंदिर ही था जिसकी देखरेख निर्मोही अखाड़ा करता था. उन्होंने आगे कहा कि पूरा का पूरा ढांचा जमीन से घिरा हुआ है और हिंदू देवता वहां थे. मुस्लिम ने स्वीकार भी किया था कि 1855 से पहले वहां नमाज पढ़े जाने का साक्ष्य नहीं है.

सुनवाई का 14 वां दिन - 28 अगस्त

· अयोध्या मामले में 14 वें दिन कोर्ट बाबरी मस्जिद के निर्माण पर बहस हुईवकील पीएन मिश्रा ने कहा कि बाबरी मस्जिद बाबर नहीं , औरंगजेब ने बनवाईमिश्रा ने बाबरनामा , तुजुके जहांगीरी और आईने अकबरी का हवाला दिया

· सुनवाई के दौरान श्रीराम जन्मभूमि पुनरुत्थान समिति की ओर से वरिष्ठ वकील पीएन मिश्रा ने दलीलें देते हुए इस बात का खंडन किया कि मस्जिद बाबर ने बनवाई. उन्होंने इस बात का खंडन किया कि राममंदिर तोड़कर औरंगजेब ने मस्जिद बनाई थी. क्योंकि 1770 से पहले जिसने भी अयोध्या की यात्रा की उसने वहां मस्जिद होने का कोई जिक्र तक नहीं किया.

· पीएन मिश्रा ने सुनवाई की शुरुआत में बाबरनामा के अंश पढ़ते हुए कहा कि कोई भी ऐतिहासिक दस्तावेज़ नहीं हैं जो ये बताएं कि जन्मभूमि पर विवादित ढांचा (बाबरी मस्जिद) 520 AD में बना था. मिश्रा ने बाबरनामा यानी बाबर की रोजनामचा डायरी का हवाला देते हुए कहा कि उसमें मीर बाकी के बारे में जिक्र तक नहीं है. बाकी बेग तशकन्दी और बाकी बेग का जिक्र है. बाकी तशकन्दी 1529 में ताशकन्द से (अयोध्या) बाबर से मिलने आया था. मिश्रा ने तर्क देते हुए कहा कि मंदिर बाबर ने नहीं , औरंगजेब ने तोड़ा था. मीर बाकी जैसा कोई शख्स था ही नहीं.

· जस्टिस बोबड़े ने पूछा- आपसे इसका क्या लेना देना है ? क्योंकि विषय ये है कि जन्मस्थान पर आपका हक कैसे है ? यह स्पष्ट करें.

· मिश्रा ने कहा कि मेरा दावा है , औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी. अगर अदालत इस दावे को स्वीकार करती है तो सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा पूरी तरह से गलत साबित होता है. क्योंकि इनके तर्क ही गलत तथ्य पर आधारित हैं तो फिर इनका जमीन पर दावा कैसा!

· पीएन मिश्रा ने तीन किताबों बाबरनामा , तुजुके जहांगीरी और आईने अकबरी का हवाला दिया. मिश्रा ने कहा कि आईने अकबरी और हुमायूंनामा में बाबर द्वारा बाबरी मस्जिद बनने की बात कहीं नहीं है. तुजुके जहांगीरी में भी बाबरी मस्जिद का नाम तक नहीं है.

· मिश्रा ने कहा कि हमारे मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई. अब वक्फ बोर्ड यह साबित करे कि 100-200 साल से यहां कब नमाज पढ़ी गई ? बाबर इसका सिर्फ वाकिफ था यानी उसने सिर्फ जमीन वक्फ की. मिश्रा ने ब्रिटिश दौर से भी पहले 1770 में भारत भ्रमण पर आए लेखक पर्यटक ट्रैफन थेलर की डायरी वाली किताब का हवाला भी दिया , जिसमें थेलर ने वहां बमुश्किल 30-40 वर्ष पहले बनी इमारत का उल्लेख किया है , जिसे तब के अयोध्यावासी मस्जिद जन्मभूमि के नाम से जानते थे.

सुनवाई का 15 वां दिन - 29 अगस्त

· श्री रामजन्मभूमि पुनरुत्थान समिति ने पेश की दलीलवकील ने कहा- बाबर द्वारा मस्जिद बनाने के सबूत नहीं- श्री रामजन्म भूमि पुनरुत्थान समिति के वकील पी.एन. मिश्रा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को पढ़ते हुए कहा कि कोर्ट ने माना था कि मुस्लिम इस बाबत कोई सबूत पेश नहीं कर पाए कि मस्जिद बाबर ने बनवाई या औरंगजेब ने.

· उन्होंने कहा कि इससे जुड़ा कोई सबूत नहीं है कि 1528 में मस्जिद का निर्माण किया गया और न ही इस बात के सबूत हैं कि इसका निर्माण बाबर ने ही कराया था. वकील पी.एन. मिश्रा ने अपनी दलील में कहा कि हाई कोर्ट ने फैसले में माना था कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को नष्ट करके किया गया था. बाबर के कहने पर मीर बाकी ने मस्जिद बनवाया था.

· इस दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा , इसका मतलब है कि हाई कोर्ट ने बहुमत से ये माना था कि इस बात के सबूत नहीं हैं कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने कराया था ? इसके जवाब में वकील पी.एन. मिश्रा ने कहा कि हां , इस बात के सबूत नहीं हैं कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने कराया था.

· इस बीच जस्टिस बोबड़े ने पूछा , इसका मतलब है कि बाबर जमीन का मालिक नहीं था ? वहीं , पी.एन. मिश्रा ने कहा हाई कोर्ट ने बहुमत से माना था कि इस बात के सबूत नहीं हैं कि बाबर जमीन का मालिक था.

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सुनवाई का 16 वां दिन - 30 अगस्त

· रामजन्म भूमि पुनरुत्थान समिति के वकील की दलील पूरी---श्री रामजन्म भूमि पुनरुत्थान समिति के वकील पी.एन. मिश्रा ने अपनी दलीलें दीं. उन्होंने अपनी दलील पूरी की और उसके बाद हिंदू महासभा के वकील हरिशंकर जैन ने अपनी बातें रखीं. इस दौरान उनकी तरफ से कई ऐतिहासिक तथ्यों का जिक्र किया गया. ... शिया वक़्फ़ बोर्ड ने भी दलील पेश की

· हिंदू महासभा के वकील ने कोर्ट में कहा कि एक बार मंदिर बन गया तो हमेशा मंदिर ही रहता है. राम और कृष्ण हमारे देश की संस्कृति की धरोहर हैं. ये स्थापित दलील है कि बाबर ने मन्दिर तोड़कर मस्जिद का रूप दिया. उन्होंने कहा कि संविधान की मूल प्रति के तीसरे चैप्टर में भी राम की तस्वीर है , राम संवैधानिक पुरुष भी हैं.

· हरिशंकर जैन ने कहा कि राम अयोध्या में महल में पैदा हुए थे. इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ये तो विश्वास की बात है. वकील बोले कि ये विश्वास नहीं , सही है क्योंकि सभी ग्रंथ यही कहते हैं. हिंदू महासभा के दूसरे वकील विरेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि जो मांग याचिका में नहीं थी वो फैसला कैसे किया गया ?

· हिंदू महासभा के वकील हरिशंकर जैन ने कोर्ट में कहा कि ये जगह शुरू से हिंदुओं के अधिकार में रही है. आज़ादी के बाद भी हमारे अधिकार भी सीमित क्यों रहें ? क्योंकि 1528 से 1885 तक कहीं भी और कभी भी मुसलमानों का यहां कोई दावा नहीं था.

· प्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान पुनरुत्थान समिति के वकील पीएन मिश्रा ने बताया कि आखिरी बार 16 दिसंबर 1949 को वहां नमाज़ अदा की गई , इसके बाद ही दंगे हुए और प्रशासन ने नमाज़ बंद करा दी. 1934 से 1949 के दौरान मस्जिद वाली इमारत की चाभी मुसलमानों के पास रहती थी लेकिन पुलिस अपने पहरे में जुमा की नमाज़ के लिए खुलवाती थी , सफाई होती और नमाज़ होती. लेकिन इस पर बैरागी साधु शोर मचाते और नमाज़ में खलल पड़ता था , तनाव बढ़ता था. वकील ने कोर्ट में कहा कि 22-23 दिसंबर की रात जुमा के लिए नमाज़ की तैयारी तो हुई लेकिन नमाज़ नहीं हो पाई.

· शिया वक्फ बोर्ड की ओर से वकील एमसी धींगरा ने कहा कि 1936 में शिया सुन्नी वक्फ बोर्ड बनाने की बात तय हुई और दोनों की वक्फ सम्पत्तियों की सूची बनाई जाने लगी. 1944 में बोर्ड के लिए अधिसूचना जारी हुई. वो मस्जिद शिया वक्फ की संपत्ति थी लेकिन हमारा मुतवल्ली शिया था. गलती से इमाम सुन्नी रख दिया गया. हम इसी वजह से मुकदमा हारे.

· रिकॉर्ड में दर्ज है कि 1949 में मुतवल्ली जकी शिया था. कोर्ट ने कहा कि आप हिन्दू पक्ष का विरोध नहीं कर रहे हैं , बस इतना ही काफी है. सीजीआई ने कहा कि हाईकोर्ट में आपकी अपील 1946 में खारिज हुई और आप 2017 में SLP लेकर सुप्रीम कोर्ट आए. इतनी देरी क्यों ? जिस पर शिया वक्फ बोर्ड की ओर से वकील ने कहा कि हमारे दस्तावेज सुन्नी पक्षकारों ने जब्त किए हुए थे.

सुनवाई का 17 वां दिन - 2 सितम्बर

· सुनवाई के 17 वें दिन मुस्लिम पक्षों ने मस्जिद पर हमले का जिक्र किया। कहा गया कि हिन्दुओं ने 1934 में बाबरी मस्जिद पर हमला किया , फिर 1949 में अवैध घुसपैठ की और 1992 में इसे तोड़ दिया और अब कह रहे हैं कि संबंधित जमीन पर उनके अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए।

सुनवाई का 18 वां दिन - 4 सितम्बर

· मुस्लिम पक्ष ने कहा- मस्जिद में छिपाकर रखी गईं मूर्तियां---मुस्लिम पक्षकारों ने मंगलवार को दावा किया कि 22-23 दिसंबर की रात अयोध्या में बाबरी मस्जिद के अंदर मूर्तियां रखने के लिए सुनियोजित और नजर बचा के हमला किया गया जिसमें कुछ अधिकारियों की हिंदुओं के साथ मिलीभगत थी और उन्होंने प्रतिमाओं को हटाने से इनकार कर दिया।

· धवन ने पीठ को बताया , ' बाबरी के अंदर देवी-देवताओं की प्रतिमा का प्रकट होना चमत्कार नहीं था। 22-23 दिसंबर 1949 की रात उन्हें रखने के लिए सुनियोजित तरीके से और गुपचुप हमला किया गया। '

· राजीव धवन ने कहा अयोध्या विवाद पर विराम लगना चाहिए. अब राम के नाम पर फिर कोई रथयात्रा नहीं निकलनी चाहिए. उनका इशारा बीजेपी द्वारा 1990 में निकाली गई रथयात्रा की ओर था जिसके बाद बाबरी विध्वंस हुआ था. विवादित जमीन के ढांचे के मेहराब के अंदर के शिलालेख पर ' अल्लाह ' शब्द मिला। धवन साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि विवादित जगह पर मंदिर नहीं बल्कि मस्जिद थी. राजीव धवन ने कहा कि बाबरी मस्जिद में भगवान रामलला की मूर्ति स्थापित करना छल से हमला करना है.

· धवन ने हिन्दू पक्ष की दलील का हवाला देते हुए कहा कि मुस्लिम पक्ष के पास विवादित जमीन के कब्जे के अधिकार नहीं है क्योंकि 1934 में निर्मोही अखाड़ा ने गलत तरीके से अवैध कब्जा कर लिया था. धवन के मुताबिक , इसके बाद नमाज अदा नहीं की गई.

सुनवाई 19 वां दिन - 5 सितम्बर

· मुस्लिम पक्ष की दलील- मूर्तियां रखने से मस्जिद का वजूद खत्म नहीं होता. -मुस्लिम पक्षकारों ने दलील दी कि लगातार नमाज ना पढ़ने और मूर्तियां रख देने से मस्जिद के अस्तित्व पर सवाल नहीं उठाए जा सकते. मुस्लिम पक्ष ने कहा कि यह सही है कि विवादित ढांचे का बाहरी अहाता शुरू से निर्मोही अखाड़े के कब्जे में रहा है. झगड़ा आंतरिक हिस्से को लेकर है जिस पर कब्जा किया गया , लेकिन अदालत में किए गए उनके दावों में यह नहीं है. हम प्रतिकूल कब्जा मांग रहे हैं.

· मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि निर्मोही अखाड़े ने पूजा का अधिकार मांगा था. हमने उन्हें राम चबूतरा दे दिया. लेकिन पूरी इमारत और अहाते के प्रबंधन का अधिकार हमारे पास ही था. कई दशकों तक राम चबूतरे पर बनाए गए छोटे से मंदिर में रामलला की पूजा होती रही. लेकिन गवाह बताते हैं कि मूर्ति वहां बाद में रखी गई थी. निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने 1885 में स्वीकार किया था कि उनका बाहरी अहाते में पूजा का अधिकार था. धवन ने जब कहा कि निर्मोही अखाड़े के प्रबंधन अधिकार के दावे पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है. जस्टिस अशोक भूषण ने धवन से सवाल किया कि इसका मतलब है कि आप मान रहे हैं कि मंदिर का अस्तित्व है। जिस पर उन्होंने जवाब दिया , हो सकता है लेकिन सवाल कहां है.

· जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने धवन से पूछा जब आप कहते हैं कि अखाड़े के पास प्रबंधन अधिकार हैं , तो आप स्वीकार कर रहे हैं कि बाहरी आंगन के एक हिस्से में मूर्तियां थीं और इस तरह यह वह हिस्सा नहीं है जिस पर आप मस्जिद का दावा करते हैं. आपका मामला यह है कि मंदिर और मस्जिद दोनों अस्तित्व में हैं.मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा कि हां , मंदिर और मस्जिद सह-अस्तित्व में हैं लेकिन हम पूरी मस्जिद के लिए टाइटल का दावा कर रहे हैं.अखाड़े की लिखित दलील का हवाला देते हुए धवन ने यात्री ट्रैफनथैलर की किताब का हवाला दिया कि तब ऐसी मान्यता थी कि श्रीराम बाहर चबूतरे वाली जगह पर पैदा हुए थे.

सुनवाई का 20 वां दिन - 6 सितम्बर

· अयोध्या में राम जन्मभूमि मामले में 20 वें दिन की सुनवाई में मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा 1734 से अस्तित्व का दावा कर रहा है. लेकिन अखाड़ा 1885 में बाहरी आंगन में था और राम चबूतरा बाहरी आंगन में है जिसे राम जन्मस्थल के रूप में जाना जाता है और मस्जिद को विवादित स्थल माना जाता है.मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के समक्ष धवन ने निर्मोही अखाड़े के गवाहों के दर्ज बयानों पर जिरह करते हुए महंत भास्कर दास के बयान का हवाला दिया.उन्होंने कहा कि उन्होंने माना कि मूर्तियों को दिसंबर 1949 में विवादित ढांचे के बीच वाले गुंबद के नीचे रखा गया था.

· पीठ के जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इन विरोधाभासों के बावजूद आप यह मान रहे हैं कि उन्होंने (निर्मोही अखाड़ा) अपनी सेवत के अधिकार स्थापित कर लिए हैं. धवन ने कहा कि मैं उनको झूठा नहीं कह रहा हूं लेकिन सवाल यह है कि वे खुद को सेवत बता रहे हैं लेकिन उनको नहीं पता कि यह सेवत वे कब से कर रहे हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर आप निर्मोही अखाड़े के अस्तित्व को मान रहे हैं तो उनके सभी साक्ष्य स्वीकार किए जाएंगे. धवन ने कहा कि कुछ लोग अखाड़ा 700 साल पहले का मानते हैं , लेकिन मैं निर्मोही अखाड़े की उपस्थिति सन 1855 से मानता हूं. 1885 में महंत रघुबर दास ने मुकदमा दायर किया.

सुनवाई का 21 वां दिन - 11 सितम्बर

· सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने अपना पक्ष रखा. मुस्लिम पक्ष ने कहा- हिंदू पक्ष के पास जमीन का मालिकाना हक नहीं.

· राजीव धवन ने दलील दी कि 22 दिसंबर 1949 को जो गलती हुई उसे जारी नहीं रखा जा सकता. क्या हिंदू पक्षकार गलती को लगातार जारी रखने के आधार पर अपने मालिकाना हक का दावा कर सकते हैं ?

· राजीव धवन ने कहा संवैधानिक बेंच को दो पहलुओं को देखना है. पहला ये है कि विवादित स्थान पर मालिकाना हक किसका बनता है और दूसरा पहलू ये है कि क्या गलत ऐक्ट को लगातार जारी रखा जा सकता है या नहीं.

· राजीव धवन ने कहा 22 दिसंबर 1949 को मस्जिद के गुंबद के नीचे मूर्ति रख दी गई थी. ये गलत हरकत की गई जो अवैध ऐक्ट है लेकिन इसके बाद मैजिस्ट्रेट ने यथास्थिति बहाल रखने का ऑर्डर पासकर दिया. यानी गलती को लगातार जारी रखा गया. क्या ये किसी को अपना अधिकार बताने का आधार हो सकता है.

· राजीव धवन ने कहा किसी स्थान का गलत तरीके से कब्जा करना उस पर पजेशन का अधिकार नहीं दे सकता.1949 में हिंदुओं गलत एक्ट किया. (विवादित स्थल पर मूर्ति रख दी गई)। बाद में मैजिस्ट्रेट ने यथास्थिति का आदेश बहाल कर दिया. एक गलत ऐक्ट था जिसे यथास्थिति के आदेश से जारी रखा गया और इस आधार पर किसी का अधिकार उत्पन्न नहीं हो सकता.

· राजीव धवन ने का क्या 1950 से पहले उनके पास कोई अधिकार था। उन्हें ये इस बात के सबूत देने होंगे कि उससे पहले उनके पास क्या अधिकार था. उनके पास क्या सबूत हैं। उनके अधिकार और साक्ष्य क्या हैं.एक गलत ऐक्ट लगातार जारी रहा और उसे ही क्या अधिकार कहा जाएगा ?

· राजीव धवन ने कहा निर्मोही अखाड़ा पहले बाहरी आंगन में राम चबूतरे पर पूजा करता था लेकिन अवैध ऐक्ट हुआ और फिर वो अंदर के आंगन में आए। इससे पहले वह भीतरी आंगन में कभी नहीं पूजा के लिए आए थे.

सुनवाई का 22 वां दिन - 12 सितम्बर

मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने किया धमकी का जिक्र..सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा है कि उन्हें फेसबुक पर धमकी मिली है , लेकिन उन्हें फिलहाल सुरक्षा की कोई आवश्यकता नहीं है।सीजेआई बोले- ऐसे कृत्य नहीं होने चाहिए

सुनवाई का 23 वां दिन - 14 सितम्ब

· मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील जफरयाब जिलानी ने बहस शुरू की. उन्होंने कहा कि निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल पर मस्जिद होने की बात मानी थी. 1885 और 1949 में दायर अपनी याचिकाओं में उसने मस्जिद का जिक्र किया था.मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ के समक्ष जिलानी ने कहा , 1885 में निर्मोही अखाड़े ने कोर्ट में जो याचिका दायर की थी , उसमें विवादित जमीन की पश्चिमी सीमा पर एक मस्जिद होने की बात कही गई थी.

· भोजनावकाश के बाद मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने बहस शुरू की. उन्होंने कहा कि पहले हिंदू बाहर के अहाते में पूजा करते थे. 22-23 दिसंबर 1949 को मूर्ति गलत तरीके से मस्जिद के अंदर रखी गई. धवन ने जन्मस्थान को कानूनी व्यक्ति कहे जाने की दलील पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि ?? वेदों में पेड़ , पृथ्वी , सूर्य और चांद को पूजते हैं , लेकिन इसे अपना अधिकार क्षेत्र नहीं कहते। कल यदि चीन मानसरोवर यात्रा रोक दे तो क्या हम उस पर दावा ठोकेंगे ?

धवन ने कहा कि स्वयंभू की धारणा ये है कि ईश्वर खुद को प्रकट करता है। कोई पर्वत या मानसरोवर से यह साबित नहीं होता कि इस तरह के स्वयंभू ईश्वर स्वरूपों का कोई कानूनी व्यक्ति ही हो। जस्टिस बोबड़े ने पूछा , कानूनी व्यक्ति और स्थान की दिव्यता के मामले में काबा स्वयंभू है या किसी व्यक्ति ने बनाया है ? इसके जवाब में मुस्लिम पक्ष के वकील एजाज मकबूल ने कहा कि इस पवित्र स्थल को पैगंबर इब्राहिम ने बनाया था. वहीं , धवन ने कहा कि काबा में जो भी स्वरूप है , उसमें दिव्यता अंतरनिहित है। मामले की सुनवाई सोमवार को भी जारी रहेगी.

सुनवाई का 24 वां दिन - 16 सितम्बर

· मुस्लिम पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से राजीव धवन ने संवैधानिक बेंच के सामने दलील पेश की। धवन ने कहा की हिंदू पक्षकारों ने पूरे इलाके पर दावा कर दिया है। मेरी दलील है कि जन्मस्थान कानूनी व्यक्ति नहीं हैं। दुर्भाग्य से हाई कोर्ट जन्मस्थान वाली दलील में कूद पड़ा था। यहां भी जन्मस्थान वाली दलील में सुप्रीम कोर्ट पड़ गया है. इस मामले में हिंदू पक्षकार (राम लला विराजमान) की तरफ से आस्था व विश्वास के साथ-साथ जन्मस्थान और जन्मभूमि को लेकर दलील दी गई है. अगर हम इसे मूर्ति मानते हैं तो केस को आसानी से निपटाया जा सकता है. लेकिन अगर इसे जन्मभूमि माना जाता है तो फिर कोई कानूनी उपचार ही नहीं बच पाएगा.

· देवता का स्वरूप होता है। हिंदू पक्षकार आस्था के आधार पर अपना दावा पेश कर रहे हैं. लेकिन हमारी दलील है कि मूर्ति हमेशा बाहरी आंगन में थी और वहां पूजा होती रही है. लेकिन 1949 में मूर्ति को भीतरी आंगन में शिफ्ट किया गया और फिर पूरे इलाके पर उन्होंने दावा कर दिया है.

· सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या केस की रोजाना सुनवाई के 24 वें दिन रजिस्ट्री को नोटिस जारी कर पूछा कि आखिर सीधे प्रसारण की व्यवस्था बनाने में कितने दिनों का वक्त लगेगा.आरएसएस के पूर्व विचारक केएन गोविंदाचार्य की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह नोटिस जारी किया था.

सुनवाई का 25 वां दिन - 17 सितम्बर

· सुन्नी वक्फ बोर्ड के लिए पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने जन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति की तरह पेश किए जाने का विरोध किया. उन्होंने कहा , " किसी जगह की परिक्रमा होने के चलते पूरी जगह को पूजास्थल मान लेना गलत है. इस तरह से ये सुनिश्चित किया जा रहा है कि कोर्ट मामले में कोई दखल ही न दे सके. पूरी ज़मीन को पूजास्थल बताना , उसे देवता या न्यायिक व्यक्ति साबित करना सही नहीं है. देवता का विभाजन कोर्ट भी नहीं कर सकता. यही कोशिश की जा रही है."

· धवन ने आगे कहा , " मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान है. उसे तो देवता का दर्जा नहीं दिया गया. अयोध्या में पूरी ज़मीन को पूजा की जगह बताने का मकसद दूसरे पक्ष को बाहर कर देना है. अयोध्या में ही 3 जगहों को भगवान राम का जन्मस्थान बताया जाता है. ऐसे में दावे से कुछ भी नहीं कहा जा सकता."

· सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने विवादित जगह पर मंदिर होने के दावे का भी खंडन किया. उनका कहना था कि इमारत से जिन खंभों के मिलने का दावा किया जाता है , उनमें हिंदू देवताओं की आकृति नहीं बनी थी. कमल जैसी कुछ आकृतियों के आधार पर उसे मंदिर नहीं कहा जा सकता.

सुनवाई का 26 वां दिन - 18 सितम्बर

· सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 18 अक्टूबर तक दलीलें पूरी करें ताकि जजों को फैसला लिखने के लिए 4 हफ्ते का वक्त मिले , इसके लिए सभी को मिलकर सहयोग करना चाहिए। जरूरत पड़ी तो कोर्ट सुनवाई का वक्त एक घंटा बढ़ा सकती है , हम शनिवार को भी सुनवाई के लिए तैयार हैं। कोर्ट ने कहा- पक्षकार मध्यस्थता के जरिए विवाद सुलझा सकते हैं , सुनवाई जारी रहेगी

सुनवाई का 27 वां दिन - 19 सितम्बर

· सुनवाई के 27 वें दिन गर्मागर्म बहस हुई. मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने विवादित इमारत की मुख्य गुंबद के नीचे गर्भ गृह होने के दावे को बाद में गढ़ा गया बताया. इस पर जजों ने उनसे कुछ सवाल किए. धवन ने सवाल कर रहे जज के लहजे को आक्रामक बता दिया. हालांकि , बाद में उन्होंने अपने बयान के लिए माफी मांगी.

· धवन की मुख्य दलील इस पर आधारित है कि विवादित इमारत के बाहर बना राम चबूतरा वह जगह है जिसे भगवान राम का जन्म स्थान कहा जाता था. उनका कहना था कि 1885 में महंत रघुवरदास की तरफ से दाखिल मुकदमे में यही कहा गया था. मुख्य गुंबद के नीचे असली गर्भगृह होने की धारणा को बाद में बढ़ाया गया. इसी वजह से 22-23 दिसंबर , 1949 की रात वहां गैरकानूनी तरीके से मूर्तियां रख दी गई.

· कल कोर्ट ने धवन से सवाल किया था कि 1855 के बाद जब चबूतरा और इमारत के बीच रेलिंग लगा दी गई , तब भी लोग रेलिंग के पास जा कर पूजा क्यों करते थे ? क्या उनका विश्वास इस बात पर था कि रेलिंग के दूसरी तरफ भगवान राम का वास्तविक जन्म स्थान है ? धवन कल इस बात का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे सके थे. उन्होंने कहा कि रेलिंग के पास जाकर लोगों के पूजा करने का कोई प्रमाण नहीं है.

· धवन की दलीलों के दौरान उन्हें रोकते हुए 5 जजों की बेंच के सदस्य जस्टिस अशोक भूषण ने उनका ध्यान राममूरत तिवारी नाम के गवाह के बयान की तरफ दिलाया. तिवारी ने हाई कोर्ट में बयान दिया था कि 1935 में वह 13 साल की उम्र में पहली बार विवादित इमारत में गए थे. वहां उन्होंने इमारत के भीतर एक मूर्ति और भगवान की तस्वीर देखी थी. धवन ने तिवारी की गवाही को अविश्वसनीय बताते हुए कहा कि उस पर चर्चा नहीं होनी चाहिए. उनका कहना था कि गवाह के पूरे बयान को देखें तो ऐसा लगता है उसे बातें ठीक से याद नहीं थी. इसलिए हिंदू पक्ष ने भी उसकी गवाही का हवाला नहीं दिया.

सुनवाई का 28 वां दिन- 20 सितम्बर

· अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के 28 वें दिन सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने विवादित इमारत को मस्जिद साबित करने की कोशिश की.

· उन्होंने बाबर की आत्मकथा बाबरनामा के अलग-अलग संस्करणों का कोर्ट में ज़िक्र किया और कहा , " हर संस्करण में साफ तौर पर यह दर्ज है कि बाबर के हुक्म से अयोध्या में मस्जिद तामीर की गई थी." धवन ने यह भी कहा कि इमारत पर अरबी और फारसी भाषा में कई बातें लिखी थी. इससे भी साबित होता है कि वह इमारत हिंदू मंदिर नहीं थी.

· धवन ने रामलला विराजमान और श्रीराम जन्मस्थान के नाम पर याचिका दाखिल किए जाने पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा , " एक तरफ देवता के अधिकार की बात कही जा रही है. दूसरी तरफ पूरे जन्म स्थान को ही पूजा की जगह बता कर देवता जैसा दर्जा दिया जा रहा है. हिंदू पक्ष की कोशिश यही है कि मुस्लिम पक्ष को जमीन से पूरी तरह से बाहर कर दिया जाए."

· धवन ने आगे कहा , " इलाहाबाद हाई कोर्ट को यह देखना चाहिए था कि जन्मस्थान को याचिकाकर्ता बनाकर याचिका कैसे दाखिल हो सकती है. अभी भी सुप्रीम कोर्ट इस कमी को दूर कर सकता है. जन्म स्थान को न्यायिक व्यक्ति का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए."

सुनवाई का 29 वां दिन - 23 सितम्बर

· मुस्लिम पक्ष के वकील धवन ने कहा , 1528 में बनाई गई मस्जिदमस्जिद में 1528 से 22 दिसंबर 1949 तक लगातार नमाज पढ़ी गई.. कोर्ट में मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि पौने पांच सौ साल पहले 1528 में मस्जिद बनाई गई थी और 22 दिसंबर 1949 तक लगातार नमाज हुई. तब तक वहां अंदर कोई मूर्ति नहीं थी. एक बार मस्जिद हो गई तो हमेशा मस्जिद ही रहेगी.

· राजीव धवन ने अपनी दलील में यह भी कहा कि औरंगजेब ने कई मंदिरों के लिए अनुदान भी दिए थे. नाथद्वारा मंदिर के बारे में भी यही मान्यता है. इसके मौखिक और लिखित प्रमाण भी हैं. बड़ी तादाद में लोग अगर किसी मंदिर में दर्शन पूजन करते हैं तो ये कोई आधार नहीं है उसके ज्यूरिस्टिक पर्सन होने का.राजीव धवन ने हाई कोर्ट के फैसले की खामी यह है कि एक ही जगह के दो ज्यूरिस्टिक पर्सन नहीं हो सकते. ठीक वैसे ही जैसे गुरुद्वारा और गुरुग्रंथ साहिब दो ज्यूरिस्टिक पर्सन नहीं हो सकते. सिर्फ गुरुग्रंथ साहिब जब गुरुद्वारा में होते हैं तभी वो गुरुद्वारा बनता है.

सुनवाई का 30 वां दिन- 24 सितम्बर

· मुस्लिम पक्ष के वकील ज़फ़रयाब जिलानी ने कहा कि रामचरित मानस की रचना मस्जिद बनने के करीब 70 साल बाद हुई लेकिन कहीं ये जिक्र नहीं कि राम जन्मस्थान वहां है , जहां मस्जिद है. यानी जन्मस्थान को लेकर हिंदुओं की आस्था भी बाद में बदल गई.

· इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई या पहले कभी मंदिर था उस जगह मस्जिद बनाई या खाली जगह पर मस्जिद बंसी ? इस सवाल पर जिलानी बोले कि बाबर ने खाली प्लॉट पर मस्जिद बनाई थी. अगर पहले मंदिर रहा होगा तो बाबर को इसकी जानकारी ना हो.

· जफरयाब जिलानी ने कहा कि हिंदू 1886 में पूजा का अधिकार मिलने के बाद ही मंदिर बनाना चाहते थे , लेकिन कोर्ट से इजाजत नहीं मिली. उन्होंने कहा कि एक गवाह ने दशरथ महल में रामजन्म होने का जिक्र किया , लेकिन महल की स्थिति का पता नहीं है.

· इसपर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि गवाहों ने शास्त्रों का हवाला देते हुए सीताकूप के अग्निकोण में 200 कदम दूर राम का जन्मस्थान बताया गया है.

· मुस्लिम पक्ष की ओर से जफरयाब जिलानी ने नक्शा बताते हुए कहा कि जन्मस्थान और सीता कूप के उत्तर दक्षिण का भी ज़िक्र किया गया है लेकिन इसमें जन्मस्थान मन्दिर को माना जा रहा है. फिर हिंदुओं ने अपना विश्वास बदल दिया और दोनों जगहों पर दावा करने लगे.

· सुप्रीम कोर्ट में जफरयाब जिलानी ने रामानंदचार्य , रामभद्राचार्य का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि मानस टीका में अवधपुरी का भी जिक्र है , किसी स्थान का नहीं. दोहा शतक के सबूत को जफरयाब जिलानी ने खारिज करते हुए कहा कि इसके तुलसीकृत होने का सबूत नहीं दिया गया है.

· अदालत में जफरयाब जिलानी ने कहा कि जन्मस्थल पर रामजन्म को लेकर विश्वास तो है , लेकिन सबूत कोई नहीं है. उन्होंने कहा कि दलीलों पर तीन आधार दिए गए हैं , राम चरित मानस , वाल्मिकी रामायण भी इनमें शामिल हैं. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं को साबित करना है कि कौन-कौन सी किताबों में इनका जिक्र किया गया है. जिलानी ने दावा किया कि रामचरित मानस और रामायण में कहीं विशिष्ट तौर पर राम जन्मस्थान का कोई जिक्र नहीं है.

· उन्होंने अदालत में कहा कि 1949 से पहले मध्य गुंबद के नीचे रामजन्म , पूजा का कोई अस्तित्व या सबूत नहीं मिलता है.

· इस पर जस्टिस बोबड़े ने जिलानी से पूछा कि क्या आप ये सबूत भी देंगे कि 1949 से पहले वहां नियमित नमाज़ होती थी ? जिसपर जिलानी ने कहा कि सबूत जुबानी हैं लेकिन लिखित नहीं है. इसपर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि हिंदू पक्ष की दलील में भी रामायण , रामचरित मानस में अयोध्या में दशरथ महल में राम के जन्म का जिक्र है हालांकि स्थान का कोई जिक्र नहीं है.

सुनवाई का 31 वां दिन- 25 सितम्बर

· मुस्लिम पक्ष की ओर से जफरयाब जिलानी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह रामचबूतरे को भगवान राम का जन्मस्थान नहीं मानते हैं. ये हमने स्वीकार नहीं किया है , बल्कि हिंदुओं का विश्वास है. हमने सिर्फ 1886 में दिया गया कोर्ट का आदेश आपके सामने रखा था.

· मुस्लिम पक्ष की तरफ से वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने एएसआई की रिपोर्ट पर सवाल उठाये ....मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि हमारी आपत्ति ये है कि बिना सबूत के रिपोर्ट का क्या मतलब है ? इसपर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वो कोर्ट कमिश्नर है ना कि आपका गवाह. मीनाक्षी अरोड़ा ने जवाब दिया किया कि हमने आपत्ति की थी क्योंकि हम उनकी रिपोर्ट के सारांश पर बात करना चाहते थे लेकिन कोर्ट ने हमे इजाज़त नहीं दी. ASI की ओर से मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि हाईकोर्ट ने भी इस मामले में कुछ नहीं कहा कि मस्जिद बाबर ने बनाई या औरंगजेब ने , मैं भी इसमें नहीं पड़ूंगीं.

सुनवाई का 32 वां दिन

· अयोध्या पर हो रही सुनवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि 18 अक्टूबर को बाद किसी भी तरह की काई भी जिरह नहीं होगी।

· ASI रिपोर्ट पर मुस्लिम पक्षकारों की ओर से मीनाक्षी अरोड़ा ने अपनी दलील रखी ...अयोध्या मामले में ASI की रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि वहां पर हाथी और किसी जानवर की मूर्ति मिलने से ये नहीं कहा जा सकता कि वहां पर मंदिर ही होगा. क्योंकि उस समय में वो खिलौना भी हो सकता है , जिसको किसी धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता.

· अरोड़ा ने कहा कि वहां पर 383 आर्किटेक्चर अवशेष मिले थे , जिसमेँ से 40 को छोड़कर कोई भी मंदिर का हिस्सा नहीं कहा जा सकता. शिलाओं पर बने कमल के निशान पर अरोड़ा ने कहा कि ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वह मंदिर ही है क्योंकि वह जैन , मुस्लिम बौद्ध और हिंदू धर्मों के भी पवित्र चिन्ह हो सकते है.

· इस पर जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि क्या मस्जिदों में भी कमल के निशान होते हैं ? इस सवाल का मीनाक्षी अरोड़ा ने सीधा जवाब नहीं दिया. उन्होंने कहा कि हो सकता है. इसके बाद जस्टिस बोबड़े ने अपने साथ बेंच में बैठे जज जस्टिस नजीर से इसका जवाब जानना चाहा कि क्या मस्जिदों में भी कमल के निशान होते हैं. जस्टिस नजीर ने कहा कि मेरी जानकारी में ऐसा नहीं है. मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि कमल के चित्र को हिंदू , मुस्लिम , बुद्ध सभी इस्तेमाल करते रहे है. इसका इस्तेमाल मुस्लिम और इस्लामिक आर्किटेक्ट में होता रहा है.

· मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि जिन 85 खंभों की बात की जा रही है उन पर कई इतिहासकारों और पुरातत्वविदों में मतभेद हैं. खंभे अलग आकार और ऊंचाई के हैं. अगर वो एक ही सतह वाले आधार पर थे तो ऊंचाई अलग-अलग होने का क्या मतलब ? उन्होंने कहा कि वो पश्चिमी दिशा वाली दीवार ईदगाह की क्यों नहीं हो सकती ? ऐसा मानने में क्या हर्ज है ? क्योंकि वो दीवार बिल्कुल अलग और अकेली है और खंभे बिल्कुल अलग हैं. वो खंभे खोखली जगह पर ईंटों की जमावट से भी बनाए गए हो सकते हैं.

· इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम ASI रिपोर्ट के लेखकों के निष्कर्ष से उलट कोई निष्कर्ष नहीं निकाल सकते. खंभों की ऊंचाई और आकार पर भी CJI ने कहा कि इससे आप ये बताना चाहती हैं कि ये अलग-अलग फ्लोर अलग अलग समय मे बने थे .

अयोध्या केस का 33 वां दिन

· मुस्लिम पक्ष की ओर से ASI की रिपोर्ट पर दलील

· सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया है कि मामले की सुनवाई 18 अक्टूबर तक खत्म होनी चाहिए.

· मुस्लिम पक्ष की ओर से ASI की रिपोर्ट पर बहस कर रहीं मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि पुरातत्व विभाग ( ASI) की रिपोर्ट में कहीं पर भी राम मंदिर का स्थान नहीं बताया गया है , जबकि राम चबूतरे को वाटर टैंक बताया गया है. मुस्लिम पक्ष की ओर से मीनाक्षी अरोड़ा ने इसपर कहा कि ASI की रिपोर्ट की जांच होनी चाहिए क्योंकि कई एक्सपर्ट ने उसपर सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट से कहीं साबित नहीं होता कि वहां गुप्त काल का भी निर्माण था. जिस महल की बात की जा रही है , उसका निर्माण मध्यकाल का है. ऐसे में उसे 12वीं सदी का मंदिर बताना गलत है , उसे दिव्य कहना भी उचित नहीं है.

· जस्टिस बोबड़े ने कहा कि ये काफी प्राचीन दौर की बात है , इसलिए कोई राय बनाना कठिन है. दोनों पक्षों के तर्क अनुमानों पर आधारित हैं. हमें इन अनुमानों की पुष्ट‍ि करने की जरूरत है.

अयोध्या केस 34 वां दिन

· मुस्लिम पक्षकार के वकील शेखर नाफडे --- वहां मस्जिद थी और उस पर कोई विवाद नहीं हो सकता क्योंकि उस पर किसी दूसरे पक्ष का कोई पहले दावा नहीं था। मस्जिद की मौजूदगी को स्वीकारा जा चुका है और उसे साबित करने की जरूरत नहीं है. राम चबूतरे पर छोटी सी मंदिर थी। बाकी पूरा इलाका मस्जिद का था और उस पर दूसरे पक्षकार का दावा नहीं था. वह उस एरिया को मस्जिद के तौर पर स्वीकार करते थे. इस बात को साबित करने की जरूरत नहीं है। जूडिशियल कमिश्नर की रिपोर्ट में भी इस बात का जिक्र है.अब हिंदू अपने दावे के क्षेत्र को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.

· मुस्लिम पक्षकार के वकील मोहम्मद निजाम पाशा: निर्मोही का मतलब बिना किसी मोह का होना है. ऐसे में निर्मोही को तो किसी भी संपत्ति से कोई मोह होना ही नहीं चाहिए। लेकिन फिर भी वह पोजेशन का दावा कर रहे हैं। हमारा कहना है कि हमें धार्मिक पहलू पर बहस के बजाय कानूनी पहलू को देखना चाहिए.

· हिंदू पक्षकार के वकील के. परासरण: विवादित जगह पर मूर्ति थी या नहीं थी। ये उतना महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है.पूजा तमाम तरह से होते हैं। कहीं मूर्ति होती है कहीं मूर्ति नहीं होती है। दरअसल पूजा का मकसद होता है कि देवत्व की पूजा हो। मूर्ति नहीं होने के आधार पर जन्मस्थान पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. इस तरह का सवाल उठाना उचित नहीं है। हिंदू धर्म के मुताबिक एक गॉड सुप्रीम हैं उनके अलग-अलग रुपों की मंदिरों में पूजा होती है.

अयोध्या मामले की सुनवाई का 35 वां दिन

· रामलला के वकील के परासरन ने की दलील ---जन्म स्थान पर मनाया जाए राम का जन्मदिन , रामजन्म भूमि को एक न्यायिक व्यक्ति के तौर पर देखा जाए

· मुस्लिम पक्ष के वकील राजिव धवन ने कहा पहले ये साबित करें की वहां मंदिर था और लोग पूजा करते थे.

सुनवाई का 36 वां दिन - 3 अक्टूबर

· निर्मोही अखाड़ा बोला- अब सुनवाई 20-20 की तरह , खफा SC ने पूछा- क्या पहले टेस्ट था ?

· हिन्दू पक्षकार श्रीराम जन्मस्थान पुनरुत्थान समिति के पीए मिश्रा ने भूमि की व्याख्या करते हुए कहा कि इमारत भी भूमि की श्रेणी में आता है , लेकिन स्थान का मतलब देवता का भवन या धाम भी होता है. इस पर राजीव धवन ने कहा कि इस दलील का कोई मतलब नहीं है , क्योंकि भूमि की हिन्दू व्याख्या और शब्दकोश अलग हैं और मुस्लिम डिक्शनरी अलग.

· निर्मोही अखाड़ा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सुशील जैन ने कहा कि हमारा दावा आंतरिक अहाते को लेकर है , क्योंकि बाहर तो हमारा अधिकार और कब्ज़ा पहले से ही था. हमने बाहर के कब्जे के लिए अर्जी नहीं लगाई है. जैन ने कहा कि हम तो सदियों से रामलला के सेवायत रहे हैं. हमारे सेवा के अधिकार को किसी ने चुनौती नहीं दी है. हमें मन्दिर से बेदखलकर बाहर किया गया. पर हमारी सेवा चलती रही. अब कोर्ट हमारी बजाय बाकी पक्षकारों को कब्जा साबित करने को कहे.

· जैन की लंबी होती दलीलों से आजिज जस्टिस बोबड़े ने सुशील जैन से कहा कि आपकी दलीलें हम समझ गए हैं. आपकी बहस हमें आपका पक्ष समझाने के लिए ही होनी चाहिए , ना कि अपनी दलील हमें सहमत कराने के लिए.

· सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान नरसिंहम ने स्कन्दपुराण के अयोध्या महात्यम के श्लोक को पढ़ा , उन्होंने इस दौरान कहा कि अयोध्या में राम जन्मस्थान की यात्रा मोक्षदाई है और मोक्ष हिन्दू दर्शन के चार पुरुषार्थों में से आखिरी है. उन्होंने कहा कि सिर्फ यही जगह नहीं कि जहां पर मंदिर के साथ मस्जिद बनाई गई , उनका मकसद रहा है कि हम अपनी श्रद्धा भूल जाएं लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

· इसके बाद निर्मोही अखाड़ा की ओर से सुशील जैन ने दलील शुरू की. उन्होंने अदालत में कहा कि अयोध्या मामले की सुनवाई अब 20-20 की तरह हो गई है. इससे कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि आपको हमने साढ़े चार दिन दिए , अब आपको जवाब देना है तो अब आप इसे 20-20 कह रहे हैं ? तो क्या आपकी पिछली बहस टेस्ट मैच थी ?

· अदालत में सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि यह हिंदुओं के लिए महत्व का स्थान है , यह बौद्धों का पवित्र स्थान कभी नहीं रहा है. इसलिए यह एक उचित अनुमान है कि यह एक हिंदू मंदिर था. वकील की दलील पर जस्टिस चंद्रचूड ने पूछा कि क्या यह दावा करने के लिए उन विशेषताओं का हवाला दिया जा सकता है कि यह एक हिंदू मंदिर है जो बौद्ध विहारों में भी मौजूद है ? दूसरे शब्दों में सबूत का बोझ आप पर यह साबित करने के लिए है कि यह एक हिंदू मंदिर है.

· हिंदू पक्ष के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि कुरान में यह कहा गया है कि रसूल के विचारों को स्मृति में रखने के लिए उनसे सुनकर उन्हें लिखा गया. मेरा ये कहना है कि परंपरा और धर्मग्रन्थों को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में माना है.

· इस दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आस्था-विश्वास पूरी तरह से अलग दलीलें हैं. बेशक आस्था-विश्वास के लिए कोई सबूत नहीं हो सकते , लेकिन हम मुख्य साक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं.

सुनवाई का 37 वां दिन —4 OCTOBER

· पहले सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सुनने के लिए 18 अक्टूबर तक की तारीख तय की थी , लेकिन अब इसमें बदलाव कर दिया है. अब सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर तक मामले की बहस पूरी करने का निर्देश दिया है. मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन ने अदालत में अपनी दलीलें रखीं. SC में मुस्लिम पक्ष बोला- बाबर नहीं था विध्वंसक , मीर बाकी ने बनाई मस्जिद

· सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या इस बात का कोई सबूत है कि बाबर ने बाबरी मस्जिद को कोई इमदाद दी हो ? इसपर राजीव धवन ने कहा कि उस दौर में इसका कोई सबूत हमारे पास नहीं है , सबूत मंदिर के दावेदारों के पास भी नहीं है.

· राजीव धवन ने कहा कि 1855 में एक निहंग वहां आया और उसने वहां गुरु गोविंद सिंह की पूजा की और निशान लगा दिया था , बाद में सारी चीजें हटाई गईं.

· ब्रिटिश हुकूमत के गवर्नर जनरल और फैज़ाबाद के डिप्टी कमिश्नर ने भी पहले बाबर के फरमान के मुताबिक मस्जिद की देखभाल और रखरखाव के लिए रेंट फ्री गांव दिए फिर राजस्व वाले गांव दिए. आर्थिक मदद की वजह से ही दूसरे पक्ष का एडवर्स पजिशन नहीं हो सका.

· उन्होंने कहा कि 1934 में मस्जिद पर हमले के बाद नुकसान की भरपाई और मस्जिद की साफ-सफाई के लिए मुस्लिमों को मुआवजा भी दिया गया. उन्होंने कहा कि 10 दिसंबर 1884 में भी एक बैरागी फकीर मस्जिद की इमारत में घुस कर बैठ गया था , प्रशासन की चेतावनी पर वो बाहर नहीं निकला तो उसे जबरन निकाला गया और उसका लगाया झंडा भी उखाड़ा गया.

· सुप्रीम कोर्ट में राजीव धवन ने कहा कि 1934 में दंगा-फसाद के बाद ही ये तय हो गया था कि हिंदू बाहर पूजा करेंगे , तो 22/23 दिसंबर 1949 की रात हिंदू इमारत में कैसे गए ? संविधान के अनुच्छेद 12 के जरिए देश भर के सार्वजनिक संस्थान भी नियमित किए गए. उन्होंने कहा कि 1934 में दंगों के दौरान इमारत को नुकसान पहुंचा और धारा 144 लगाई गई.

· राजीव धवन ने कहा कि ये बाबर पर मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने का इल्जाम लगाते हैं , बाबर कोई विध्वंसक नहीं था. मस्जिद तो मीर बाकी ने बनाई , एक सूफी के कहने पर. इस दौरान उन्होंने पढ़ा कि ‘ है राम के वजूद पर हिन्दोस्तां को नाज़ अहले नज़र समझते हैं उसको इमाम ए हिन्द! ’

· मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने अदालत में कहा कि सांप्रदायिक विभाजन का आरोप मुसलमानों पर लगाया जाता है लेकिन ये उनपर (हिंदू पक्ष) पर भी लागू होता है जब उन्होंने बाबरी मस्जिद को ढहाया था. इसके पहले 1934, 1949 में भी ऐसा ही किया गया था.

· मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन ने अपनी दलीलें शुरू कीं. सुनवाई के दौरान जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि क्या इस्लाम में देवत्व को किसी वस्तु पर थोपा जाता है ? इस पर मुस्लिम पक्ष की ओर से जवाब दिया कि दोनों धर्मों में ऐसा ही होता है , इस्लाम में मस्जिद इसका उदाहरण है.

· जस्टिस बोबड़े ने कहा कि हम हमेशा सुनते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है , आप अल्लाह की पूजा करते हैं ना कि किसी वस्तु की. हम देखना चाहते हैं कि क्या किसी संस्था ने मस्जिद को पूज्य माना है , क्योंकि सिर्फ अल्लाह को पूजे जाने की बात आती है.

· मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन ने कहा कि हम (मुस्लिम) पांच बार अल्लाह की पूजा करते हैं , नमाज़ मस्जिद में अदा की जाती है. उन्होंने कहा कि इस मामले में मस्जिद पर जबरन कब्जा किया गया , लोगों को धर्म के नाम पर उकसाया गया , रथयात्रा निकाली गई , लंबित मामले में दबाव बनाया गया.

· मुस्लिम पक्ष की ओर से कहा गया कि मस्जिद ध्वस्त की गई और उस समय मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह ने एक दिन कि जेल अवमानना के चलते काटी. अदालत से गुजारिश है कि तमाम घटनाओं को ध्यान में रखें.