logo-image

अयोध्या भूमि विवाद : मध्यस्थता पैनल के अध्यक्ष जस्टिस इब्राहिम खलीफुल्ला के बारे में जानें

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्‍या में राम जन्‍मभूमि-बाबरी मस्‍जिद भूमि विवाद केस को मध्‍यस्‍थता के लिए भेज दिया है.

Updated on: 08 Mar 2019, 12:05 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्‍या में राम जन्‍मभूमि-बाबरी मस्‍जिद भूमि विवाद केस को मध्‍यस्‍थता के लिए भेज दिया है. मध्‍यस्‍थता की नियुक्‍ति सुप्रीम कोर्ट के माध्‍यम से होगी और उसकी निगरानी भी सुप्रीम कोर्ट ही करेगा. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यों का पैनल गठित कर दिया है. इस पैनल की अध्यक्षता जस्टिस जस्‍टिस एफएम खलीफुल्‍ला करेंगे. एक हफ्ते में मध्‍यस्‍थता की प्रक्रिया फैजाबाद से शुरू करनी होगी.

यह भी पढ़ें ः राम जन्‍मभूमि बाबरी मस्‍जिद भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, मध्‍यस्‍थता के लिए ये पैनल बनाया

जस्टिस इब्राहिम खलीफुल्‍ला का जन्म तमिलनाडु के कराईकुड़ी जिले में सन् 23 जुलाई 1951 को हुआ था. जस्टिस इब्राहिम खलीफुल्ला ने 20 अगस्त 1975 को एक वकील के रूप में दाखिला लिया था. इसके बाद उन्होंने लॉ फर्म में पैक्टिस शुरू कर दी. इस दौरान उन्हें मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था. फरवरी 2011 में, वह जम्मू और कश्मीर के उच्च न्यायालय के सदस्य बने और उन्हें दो महीने बाद कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया. सितंबर 2011 में उन्हें जम्मू और कश्मीर के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया. 2 अप्रैल 2012 को उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय में नामित किया गया. मुख्य न्यायाधीश सरोश होमी कपाड़िया ने उन्हें शपथ दिलाई थी. न्यायमूर्ति कलीफुल्ला 22 जुलाई 2016 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त हुए थे.

यह भी पढ़ें ः जानें अयोध्या भूमि विवाद की मध्यस्थता के लिए बने पैनल के बारे में

गौरतलब है कि अयोध्या जमीन विवाद बरसों से चला आ रहा है. मान्यता है कि विवादित जमीन पर ही भगवान राम का जन्म हुआ. हिंदुओं का दावा है कि 1530 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मंदिर गिराकर मस्जिद बनवाई थी. 90 के दशक में राम मंदिर के मुद्दे पर देश का राजनीतिक माहौल गर्मा गया था. 6 दिसंबर 1992 को कार सेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया था.

यह भी पढ़ें ः अयोध्‍या भूमि विवाद : बीजेपी के ये वरिष्‍ठ नेता तो मध्‍यस्‍थता को बता चुके हैं व्‍यर्थ का अभ्‍यास

इलाहाबाद हाई कोर्ट का क्या है फैसला
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तीन हिस्सों में 2.77 एकड़ जमीन बांटी थी. राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा रामलला विराजमान को मिला, राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को मिला. जमीन का तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का फैसला सुनाया गया.

सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुंचा मामला
इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश से कोई भी पक्ष संतुष्ट नहीं हुआ. पहले रामलला विराजमान की तरफ से हिन्दू महासभा और फिर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. बाद में कई और पक्षों ने अर्जी दायर की. अभी कुल 16 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं.

मध्यस्थता से क्या हल होगा
अयोध्या विवाद की मध्यस्थता के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा. कोर्ट ने सभी पक्षों को सलाह दी है कि बातचीत से मामले को सुलझाया जाए. निर्मोही अखाड़े को छोड़कर रामलला विराजमान समेत हिंदू पक्ष के बाकी वकीलों ने मध्यस्थता का विरोध किया. मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए तैयार है. कोर्ट ने कहा है कि जल्द ही फैसला देंगे. सभी पक्षकारों से मध्यस्थ के नाम मांगे हैं.