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अयोध्या विवाद: मध्यस्थता पैनल सुप्रीम कोर्ट में 1 अगस्त को सौंपेगा अपनी रिपोर्ट, 2 अगस्त को होगी सुनवाई

रामजन्म भूमि से जुड़े अयोध्या विवाद मामले में मध्यस्थता पैनल सुप्रीम कोर्ट में कल अपनी रिपोर्ट सौंपेगी.

Updated on: 01 Aug 2019, 06:20 AM

नई दिल्ली:

करीब 500 साल पुराना मामले में...करीब 150 साल से जारी तकरार पर... करीब दो दशक से चली आ रही कानूनी आजमाइश अब अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचती दिख रही है. हम बात कर रहे हैं अयोध्या के राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की, जिसे सुलझाने के लिए हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सुनवाई हुई पर अब तक नतीजा नहीं निकला. रामजन्म भूमि से जुड़े अयोध्या विवाद मामले में मध्यस्थता पैनल सुप्रीम कोर्ट में 1 अगस्त को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा. 

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दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने बातचीत से समाधान के लिए गठित मध्यस्थता पैनल से 31 जुलाई तक इस मामले में हुई प्रगति की अंतिम रिपोर्ट मांगी थी, लेकिन पैनल आज अपनी रिपोर्ट कोर्ट में नहीं सम्मिट कर पाया है. बताया जा रहा है कि मध्यस्थता पैनल कल यानि एक अगस्त को सीलबंद कवर में अपनी स्टेट्स रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में सौंपेगा. इसके बाद मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई में सप्रीम कोर्ट की एक बेंच इस मामले की सुनवाई 2 अगस्त को करेगी.

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रिपोर्ट देखने के बाद मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ये तय करेगी कि इस मामले का निपटारा कैसे किया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए 2 अगस्त की तारीख मुकर्रर की है. उस दिन ओपन कोर्ट में सुनवाई होगी, जिसके बाद अदालत ये फैसला लेगी कि इस मामले का हल मध्यस्थता से निकाला जाएगा या रोजाना की सुनवाई से. यानी जस्टिस कलीफुल्ला की अध्यक्षता वाली मध्यस्थता कमेटी के पास अब कल का वक्त बचा है. उसके बाद गेंद एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के पाले में होगी.

मध्यस्थता कमेटी के इम्तिहान की घड़ी

अयोध्या मामले का हल ढूंढने के लिए चार महीने पहले जिस मध्यस्थता कमेटी का गठन किया गया था उसका अंतिम इम्तिहान करीब आ चुका है. एक अगस्त को जब इस कमेटी के अध्यक्ष कलीफुल्ला सुप्रीम कोर्ट में अपनी फाइनल रिपोर्ट दाखिल करेंगे तो सिर्फ अदालत ही नहीं पूरा देश ये जानना चाहेगा कि आखिर 145 दिन की जद्दोजहद का नतीजा क्या निकला. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यों वाली संविधान पीठ ने मध्यस्थता कमेटी की प्रगति रिपोर्ट देखने के बाद 31 जुलाई तक अंतिम रिपोर्ट देने को कहा था. इस मामले में 2 अगस्त को ओपन कोर्ट में सुनवाई होगी और फिर ये तय होगा ये मुद्दा मध्यस्थता से सुलझेगा या अदालती सुनवाई से.

मंदिर पर मध्यस्थता की मियाद पूरी?

बता दें कि जस्टिस एफ एम इब्राहिम कलीफुल्ला सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज हैं. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने कलीफुल्ला को मध्यस्थता कमेटी का अध्यक्ष बनाया था. तीन सदस्यों वाली इस कमेटी में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू भी शामिल हैं. इसी साल मार्च में बनाई गई इस कमेटी को रिपोर्ट देने के लिए पहले 8 हफ्तों का वक्त दिया गया था. फिर कमेटी को 13 हफ्तों का अतिरिक्त समय दिया गया. अब सवाल है कि सालों पुराने जिस मुद्दे को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने खुद मध्यस्थता पैनल का गठन किया और फिर फाइनल रिपोर्ट के लिए 15 अगस्त तक की तारीख मुकर्रर की थी. उसकी मियाद घटाकर दो हफ्ते कम क्यों कर दी. क्या सुप्रीम कोर्ट को भी लग रहा है कि ये मामला मध्यस्थता या आपसी बातचीत से नहीं सुलझने वाला?

अयोध्या पर बेनतीजा रही मध्यस्थता?

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट का ये नया निर्देश तब आया जब अयोध्या मामले के एक पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने एक याचिका दायर कर ये कहा कि मध्यस्थता कमेटी के नाम पर विवाद सुलझने के आसार काफी कम हैं. इससे सिर्फ समय बर्बाद हो रहा है इसलिए कमेटी खत्म कर सुप्रीम कोर्ट स्वयं इस मामले की सुनवाई करे. उनकी दलील थी कि अयोध्या मामले का का विवाद 69 सालों से अटका पड़ा है. सुप्रीम कोर्ट की बनाई मध्यस्थता कमेटी ने विवाद को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के 11 संयुक्त सत्र बुलाए पर बातचीत का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला. गोपाल सिंह विशारद के पिता राजेंद्र सिंह ने ही अयोध्या मामले पर 1950 में पहला मुकदमा दाखिल किया था. जिसमें बिना रोक-टोक रामलला की पूजा का हक मांगा गया था. उसके बाद फैजाबाद जिला अदालत से होते हुए ये मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट तक पहुंचा था. अब ताजा हालात में ये माना जा रहा है कि अगर मध्यस्थता कमेटी की रिपोर्ट से कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला तो 2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट खुद इस मामले की रोजाना सुनवाई करने का फैसला ले सकता है.