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अयोध्या केस का 33वां दिनः यूं ही ASI रिपोर्ट को खारिज नहीं कर सकते हैं, बोले जस्टिस अब्दुल नज़ीर

आप यूं ही एएसआई (पुरातत्व विभाग) की रिपोर्ट की प्रमाणिकता पर सवाल नहीं उठा सकते हैं.

Updated on: 28 Sep 2019, 06:12 AM

नई दिल्ली:

"आप यूं ही एएसआई (पुरातत्व विभाग) की रिपोर्ट की प्रमाणिकता पर सवाल नहीं उठा सकते हैं. कमिश्नर की रिपोर्ट की किसी साधारण राय से तुलना नहीं की जा सकती है. उन्होंने कोर्ट की ओर से मिले अधिकार का इस्तेमाल कर खुदाई का काम किया था." जस्टिस अब्दुल नज़ीर ने ये टिप्पणी तब की, जब मुस्लिम पक्ष की वकील मीनाक्षी अरोड़ा एएसआई रिपोर्ट के निष्कर्षों को महज एक राय बताकर खारिज करने की कोशिश कर रही थी.

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मीनाक्षी अरोड़ा का कहना था कि एएसआई की रिपोर्ट पुरातत्वविदों के अनुमान उनकी धारणाओं पर आधारित है. ये बस उनकी राय भर है. पुरातत्व फिजिक्स, केमिस्ट्री की तरह कोई विज्ञान नहीं है. किसी खोज पर पुरातत्वविदों की राय अलग-अलग हो सकती है. ये रिपोर्ट अपने आप में कोई ठोस सबूत नहीं है. इसके जरिये किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए अतिरिक्त सबूत चाहिए.

इस पर जस्टिस अशोक भूषण ने उन्हें टोकते हुए कहा कि कमिश्नर की रिपोर्ट की किसी साधारण राय से तुलना नहीं की जा सकती. उन्होंने कोर्ट की ओर से मिले अधिकार का इस्तेमाल कर खुदाई का काम किया था. हम उसे यूं ही खारिज नहीं कर सकते हैं. बेंच के दूसरे सदस्य जस्टिस चन्दचूड़ ने भी कहा- एएसआई रिपोर्ट में व्यक्त की गई राय, पढ़े लिखे लोगों की एक्सपर्ट राय है.

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'कोई सीधा सबूत नहीं, देखना होगा, कौन सा पक्ष ज्यादा विश्वसनीय'

पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट के निष्कर्षों पर मीनाक्षी अरोड़ा की आपत्तियों के बीच जस्टिस एसए बोबडे ने अहम संतुलित टिप्पणी की. जस्टिस बोबड़े ने कहा- इस मामले में घटनाओं को कोई गवाह नहीं है. कोई सीधा सबूत नहीं है. हमें भी इसका पता है. दोनों पक्ष अपने अनुमान अपने निष्कर्षों के आधार पर जिरह कर रहे हैं. ये हमें देखना है कि किसका पक्ष ज्यादा विश्वसनीय है.

मीनाक्षी अरोड़ा ने दलील दी कि 2003 की पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट का ये निष्कर्ष है कि वहां विवादित ढांचे के नीचे विशालकाय ढांचा मिला है, अपने आप में वहां मन्दिर की मौजूदगी को साबित करने के लिए कोई ठोस निष्कर्ष नहीं है. इस नतीजे तक पहुंचने के लिए दूसरे ठोस सबूत भी होने चाहिए. ASI की रिपोर्ट में जिस नक्काशी का जिक्र है, वो हिंदू, जैन, बौद्ध और इस्लामिक इमारतों में तक इस्तेमाल होती है, फिर कैसे ये कहा जा सकता है कि वो इमारत मन्दिर ही थी. जस्टिस बोबडे ने फिर दोहराया कि हम यही बात कह रहे हैं. हमे ये देखना होगा कि किस पक्ष का अनुमान, निष्कर्ष ज्यादा विश्वनीय है, क्योंकि इस मामले में सीधा सबूत नहीं है.'

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'श्रीरामजन्मस्थान का मंदिर होने के सवाल का रिपोर्ट में जवाब नहीं'

मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि ASI के सामने सवाल था कि क्या विवादित जगह पर श्रीरामजन्मस्थान का मंदिर था या नहीं. इस सवाल का जवाब इस रिपोर्ट में नहीं है. ASI की रिपोर्ट से किसी भी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता. इस पर जस्टिस एसए बोबड़े ने उनसे पूछा कि क्या कोई पुरातत्व विभाग के कोई ऐसे एक्सपर्ट है, जिन्होंने ASI की रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं. मीनाक्षी अरोड़ा ने जवाब दिया कि हां, कुछ लोगों ने ASI की रिपोर्ट पर अपनी आपत्ति जाहिर की है. कुछ पुरातत्वविद के अपने अनुमान हैं, जबकि उनके खुद के गवाहों की राय अलग है. यहां तक कि हमारे कुछ एक्सपर्ट की राय एकदम अलग है. लिहाजा कोर्ट को ASI की रिपोर्ट को भी सिर्फ एक राय की तरह ही लेना चाहिए.

1886 के फैसले के बाद केस की दोबारा सुनवाई ठीक नहीं

मीनाक्षी अरोड़ा की दलीलों के बाद मुस्लिम पक्ष के एडवोकेट शेखर नाफड़े ने दलीलें रखी हैं. शेखर नाफड़े की दलील का आधार था कि इस मामले में 1886 में फैजाबाद कोर्ट ने मंहत रघुवर दास की याचिका पर सुनवाई करते हुए विवादित रामचबूतरे पर मन्दिर निर्माण की मांग को ठुकरा दिया था. ऐसे में इस फैसले के 70 साल बाद फैजाबाद कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट को फिर से इस मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए थी.

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मुस्लिम पक्ष की दलील कानूज के 'रेसज्युडिकेटा' सिद्धान्त पर आधारित है. इस सिद्धांत के मुताबिक, किसी संपति विवाद का एक बार निपटारा होने के बाद कोर्ट में वो मामला फिर से नहीं उठाया जा सकता है. हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट इसको लेकर मुस्लिम पक्ष की आपत्ति खारिज कर चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने आज भी शेखर नाफड़े से पूछा कि मंहत रघुवरदास की याचिका को कैसे हिंदू धर्म की ओर से दायर प्रतिनिधि याचिका माना जा सकता है. क्या रामचबूतरे पर पूजा का हक मांग रही उनकी याचिका को व्यक्तिगत याचिका नहीं माना जा सकता. शेखर नाफड़े ने जवाब दिया कि उनके नाम के आगे मंहत था, वो अखाड़े के मुखिया थे. लिहाजा उनकी याचिका को महज व्यक्तिगत हैसियत से दायर की गई अर्जी के तौर पर नहीं देखा जा सकता.

चीफ जस्टिस ने डेडलाइन की दिलाई याद

वकील शेखर नाफड़े की करीब डेढ़ घंटे दलीलें सुनने के बाद चीफ जस्टिस ने पूछा कि उनको जिरह पूरी करने में कितना समय लगेगा. नाफड़े ने कहा उनको जिरह पूरी करने के लिए दो घंटे का समय और लगेगा. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि अब पहले से तय शेड्यूल में बदलाव नहीं होगा. आप तय समयसीमा में अपनी बात रखे. कोर्ट के रुख को देखते हुए नाफड़े ने कहा कि वह सिर्फ 30 मिनट अपनी जिरह पूरी कर लेंगे, लेकिन चीफ जस्टिस ने इस बारे में कोई आश्वासन नहीं दिया और नाराजगी जताते हुए कहा कि सुनवाई तय शेड्यूल के हिसाब से नहीं चल रही है.

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पहले से तय शेड्यूल के मुताबिक सोमवार से हिंदू पक्ष की मुस्लिम पक्ष की दलीलों पर जवाब देना है, लेकिन मुस्लिम पक्षकारों के वकील शेखर नाफड़े ने न्यूज नेशन को बताया कि वो सोमवार को महज तीस मिनट अपनी बात और रखने की गुजारिश कोर्ट से करेंगे.