दलीलः श्रीराम जन्मस्थान को लेकर अटूट आस्था, शरीयत के लिहाज़ से विवादित ढांचा मस्ज़िद नहीं
हिंदू पक्ष की तरफ से रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा ने अपना पक्ष रखा था. आइए जानते हैं कि हिंदू पक्ष ने अब तक अपनी दलीलों में क्या कहा
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर अयोध्या विवाद पर सोमवार से मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलीलें रखनी शुरू कर दी हैं. राजीव धवन ने मुस्लिम पक्ष की ओर से दलीलें रखनी शुरू की हैं. उनके साथ कपिल सिब्बल भी हैं. मामले की सुनवाई लगभग आधी पूरी हो चुकी है. इससे पहले कोर्ट ने 16 दिन तक हिंदू पक्ष की दलीलें सुनी थीं. हिंदू पक्ष की तरफ से रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा ने अपना पक्ष रखा था. आइए जानते हैं कि हिंदू पक्ष ने अब तक अपनी दलीलों में क्या कहा
अयोध्या मामले में जिरह के दौरान हिंदू पक्षकारों ने करोड़ों रामभक्तों की श्रीराम जन्मस्थान को लेकर सैकड़ों साल से अटूट आस्था का हवाला दिया. रामलला की ओर से 92 साल के के परासरन ने 11 घण्टे खड़े होकर जिरह की.हालांकि चीफ जस्टिस ने आग्रह किया कि वो चाहे तो बैठकर अपनी बात रख सकते है लेकिन परासरन ने ये कहते हुए विनम्रता से इंकार कर दिया कि परंपरा इसकी इजाजत नहीं देती और मैं खड़े होकर ही अपनी बात रखूंगा.
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के परासरन ने श्रीराम जन्मस्थान को लेकर अगाध आस्था का हवाला देते हुए कहा कि भगवान राम के समय में लिखी गई बाल्मीकि रामायण में उनका जन्म अयोध्या में बताया गया है. जन्म का वास्तविक स्थान क्या था, इसको लेकर अब हजारों सालों के बाद सबूत नहीं दिए जा सकते. लेकिन करोड़ों लोगों की आस्था है कि जहां अभी रामलला विराजमान हैं, वही उनका जन्म स्थान है और करोड़ों लोगों की इस आस्था को पहचानना और उसे मान्यता देना कोर्ट की ज़िम्मेदारी है."
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रामलला की ओर के परासरन ने कोर्ट को इस बात के लिए आश्वस्त करने की कोशिश की कि अयोध्या में मूर्ति रखे जाने/ वहांमंदिर स्थापित होने से बहुत पहले से हीश्रीराम की पूजा होती रही है.किसी जगह को मंदिर के तौर पर मानने के लिए वहाँ मूर्ति होना ज़रूरी नहीं है. हिन्दू महज किसी एक रूप में ईश्वर की आराधना नहीं करते. अब केदारनाथ मंदिर को ही ले लो, वहाँ कोई मूर्ति नहीं है( वहाँ शिला की पूजा होती है). के परासरन ने कहा कि पहाड़ो की भी देवरूप में पूजा होती है.
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के परासरन ने चित्रकूट में होने वाली परिक्रमा का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि पूरा जन्मस्थान ही पूज्य है. इस जगह पर विवादित ढांच बन जाने के बाद भी जन्मस्थान को लेकर हिंदू आस्था अटूट रही. रामलला की ओर से दूसरे वकील वैद्यनाथन ने दलील दी कि अयोध्या में रामनवमी मनाई जाती रही है.कार्तिक महीने में पंचकोसी- चौदह कोसी परिक्रमा की जाती है.श्रद्धालु सरयू नदी में स्नान करते थे. स्नान के बाद रामजन्मभुमि और दूसरे मंदिरों के दर्शन की परंपरा रही है.
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जब रामलला की ओर से श्री रामजन्मस्थान को लेकर असंख्य भक्तों की श्रद्धा का हवाला दिया जा रहा था, तो बेंच के सदस्य जस्टिस एस ए बोबड़े ने एक दिलचस्प सवाल किया. जस्टिस बोबडे ने पूछा कि क्या दुनिया में कहीं और किसी और धार्मिक हस्ती के जन्म स्थान का मसला दुनिया की किसी कोर्ट में उठा है? क्या कभी इस बात पर बहस हुई कि जीसस क्राइस्ट का जन्म बेथलेहम में हुआ था या नहीं?
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परासरन ने जवाब दिया कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है, जानकारी मिलने और वो कोर्ट को अवगत कराएंगे. दिलचस्प ये रहा कि जहाँ एक और हिंदू पक्षकारों ने हिन्दू आस्था का हवाला दिया, वही इस्लामिक नियमो का हवाला देकर ये साबित करने की कोशिश कि विवादित ढांचा मस्जिद नहीं हो सकती..उनकी ओर से कहा गया कि इस्लामिक विद्वान इमाम अबु हनीफा का कहना था कि अगर किसी जगह पर दिन में कम से कम दो बार नमाज़ पढ़ने के अज़ान नहीं होती तो वो जगह मस्ज़िद नहीं हो सकती.विवादित इमारत में 70 साल से नमाज नहीं पढ़ी गई है. उससे पहले भी वहां सिर्फ शुक्रवार को नमाज हो रही थी."
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श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति की ओर से पीएन मिश्रा ने कहा कि पैगंबर मोहम्मद ने कहा था कि किसी का घर तोड़ कर वहां मस्जिद नहीं बनाई जा सकती. अगर ऐसा किया गया तो जगह वापस उसके हकदार को दे दी जाए. ये एक तरह से उनका वचन था. उनके अनुयायियों पर भी ये वचन लागू होता है.
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