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अयोध्या केस: मुस्लिम पक्ष का दावा-1949 तक बाबरी मस्ज़िद में पढ़ी गई नमाज़

अयोध्या मामले की सुनवाई का शुक्रवार को 23 वां दिन था. 23 वें दिन सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की ओर से ज़फरयाब जिलानी और राजीव धवन ने दलील दी. अभी तक मुस्लिम पक्ष 7 दिन दलील रख चुका है.

Updated on: 13 Sep 2019, 08:09 PM

नई दिल्ली:

अयोध्या मामले की सुनवाई का शुक्रवार को 23 वां दिन था. 23 वें दिन सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की ओर से ज़फरयाब जिलानी और राजीव धवन ने दलील दी. अभी तक मुस्लिम पक्ष 7 दिन दलील रख चुका है. ज़फरयाब जिलानी ने कहा कि 1934 में बैरागियों ने विवादित इमारत पर हमला किया. उसके बाद मस्जिद के ट्रस्टी ने सरकार से इसे लेकर मुआवजा मांगा. चूंकि हर्जाने के लिए सिर्फ मुसलमानों ने ऑथोरिटी का रुख किया था, ये दर्शाता है कि मुसलमान उसे मस्जिद के तौर पर इस्तेमाल कर रहे थे. जिलानी ने ये भी कहा कि मस्जिद के अंदर अल्लाह शब्द लिखा हुआ था.

1934 से 1949 तक नमाज़ पढ़ी गई
जिलानी ने कई दस्तावेजी सबूतों और गवाहों के बयान का हवाला दिया, जिससे साबित हो सके कि 1934 और 1949 के बीच बाबरी मस्ज़िद पर नमाज पढ़ी जाती रही है. जिलानी ने अपनी दलीलों के समर्थन में मोहम्मद हाशिम और हाजी महबूब के बयान का हवाला दिया जिसके मुताबिक उन्होंने 22 दिसंबर 1949 को आखिरी बार नमाज़ पढ़ी थी. जिलानी ने कहा कि 1954 में हाशिम फिर वहां नमाज के लिए गए. लेकिन अंदर जाने की इजाज़त न होने के चलते उन्हें गिरफ्तार किया गया था. इसलिए ये नहीं कहा जा सकता कि 1949 के बाद मुसलमानों ने जगह पर दावा करने की कोशिश नहीं की.

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राजीव धवन ने रखी दलील
सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से राजीव धवन दलीले रख रहे है. धवन ने कहा कि निर्मोही अखाड़े के पास ऐसे सबूत नहीं, जिससे साबित हो सके कि उनका शास्वत काल से सेवादार का हक़ रखा है. निर्मोही अखाड़े ने भी सिर्फ सेवादार/ प्रबंधन का अधिकार मांगा है, उन्होंने ज़मीन के मालिकाना हक़ को लेकर दावा नहीं किया गया.

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श्री रामजन्मभूमि स्थान को न्यायिक व्यक्ति का दर्जा देने का जिक्र भी सबसे पहले 1989 में आया. इससे पहले ऐसी कोई बात नहीं थी. रामलला की दलील थी कि हिंदू नदियों, पहाड़ो को पूजा करते आये है तो रामलला की तरह पूरा श्री रामजन्मस्थान भी वंदनीय है. मेरा कहना है कि हिन्दू सूरज की पूजा करते है, पर उस पर मालिकाना हक़ तो नहीं जताते.
सोमवार को भी राजीव धवन की ओर से दलीले जारी रहेगी.