logo-image

इस देश में अनिवार्य है मतदान का नियम, अगर नहीं किया मतदान तो कोर्ट में हो सकती है पेशी

कभी भी इस देश में वोटिंग प्रतिशत 91 प्रतिशत से नीचे कभी नहीं आया. शोध के मुताबिक पता चला है कि इसके बाद से वहां के नागरिकों ने और भी ज्यादा बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया.

Updated on: 17 May 2019, 02:30 PM

highlights

  • 1924 में पहली बार लागू किया गया नियम
  • इस नियम की वजह से आम नागरिक राजनीति से जुड़े रहते हैं
  • 1993 में सीनेट चुनावों में 95% से ज्यादा वोट पड़े थे

नई दिल्ली:

दुनियाभर के लोकतांत्रिक देशों में वोटिंग की प्रक्रिया जनता की भागीदारी पर निर्भर होती है. भारत में आम चुनाव जारी हैं जहां 6 चरण की वोटिंग हो चुकी है सातवें और अंतिम चरण की वोटिंग रविवार को होगी वहीं ऑस्ट्रेलिया में भी शनिवार को आम चुनाव होने हैं. ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया भर के कुल 23 देशों में अनिवार्य वोटिंग का प्रावधान है. यानी इन देशों में नागरिकों के लिए मतदान करना आवश्यक है अगर इन देशों में कोई भी नागरिक वोट नहीं करता है और अपने वोट न कर पाने का उचित कारण नहीं बता पाता है तो उसे जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है या जुर्माना या फिर दोनों ही लगाए जा सकते हैं.

साल 1924 में पहली बार ऑस्ट्रेलिया में अनिवार्य मतदान के नियम बनाए गए थे, जिसक बाद से कभी भी इस देश में वोटिंग प्रतिशत 91 प्रतिशत से नीचे कभी नहीं आया. शोध के मुताबिक पता चला है कि इसके बाद से वहां के नागरिकों ने और भी ज्यादा बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया.

अगर वोट नहीं दिया तो लगाने पड़ सकते हैं कोर्ट के चक्कर
ऑस्ट्रेलिया में मतदान के लिए रजिस्ट्रेशन और वोटिंग करना दोनों ही कानूनी कर्तव्यों में शामिल है, जिसका मतलब 18 साल से ऊपर किसी भी व्यक्ति का वोट करना जरूरी है, मतदान नहीं कर पाने पर सरकार मतदाता से जवाब मांग सकती है अगर मतदाता सरकार को संतोषजनक जवाब नहीं दे पाता है तो उस पर 20 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (लगभग 1000 भारतीय रुपये) का जुर्माना लगाया जा सकता है या फिर उसे कोर्ट के चक्कर भी लगाने पड़ सकते हैं.

यहां खास बात यह है कि नागरिक भी वोटिंग की अहमियत को समझते हैं और इसे गंभीरता से लेते हैं, जिसके कारण यहां अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव (55%) और यूके (70%) के मुकाबले ऑस्ट्रेलिया में मतदान का प्रतिशत बहुत ही बेहतर रहता है. साल 1994 में तो देश का वोटर टर्नआउट 96.22% तक जा चुका है. 95 सालों के इतिहास में ऑस्ट्रेलिया में वोटर टर्नआउट कभी 91% के नीचे नहीं गया.

इस व्यवस्था को आजादी के खिलाफ मानते हैं विरोधी
वहीं लोकतंत्र के विरोधी अनिवार्य वोटिंग को आजादी के खिलाफ मानते हैं. विरोधियों का कहना है कि यह लोकतंत्र के मूलभूत आधार आजादी के खिलाफ है, यानी इसमें नागरिक की मर्जी नहीं चलती. हालांकि, इस सिस्टम के समर्थक कहते हैं कि नागरिकों को देश के राजनीतिक हालात से जरूर परिचित होना चाहिए. इसके अलावा सरकार चुनने में जनता की भागीदारी भी काफी अहम है.

मतदाताओं की व्यवस्थाओं में भी सबसे आगे है ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया में अनिवार्य वोटिंग के मायनों को देखते हुए अलग-अलग सरकारों ने भी समय-समय पर मतदाताओं के लिए सुविधाओं में बढ़ोतरी की है। मसलन जिनके पास घर नहीं है वह मतदाता यात्री वोटर के तौर पर खुद को रजिस्टर करा सकता है। इसके अलावा दिव्यांग, दिमागी बीमारी से पीड़ित या अन्य दिक्कतों से जूझ रहे लोगों के लिए भी अलग-अलग इंतजाम किए जाते हैं। अपने मतदान केंद्र से दूर या किसी बीमारी की वजह से अस्पताल में भर्ती वोटर्स पोस्टल बैलट और अर्ली वोटिंग (समय पूर्व मतदान) जैसी सुविधाओं के जरिए भी वोट डाल सकते हैं।