नागेश्वर राव को CBI का अंतरिम निदेशक नियुक्त किए जाने को सुप्रीम कोर्ट में मिली चुनौती
संगठन ने नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट तंत्र को हटाने के निर्देश देने की भी गुहार लगाई है.
नई दिल्ली:
एम. नागेश्वर राव की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अंतरिम निदेशक के रूप में नियुक्ति का विरोध करते हुए गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) कॉमन कॉज ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. संगठन ने नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट तंत्र को हटाने के निर्देश देने की भी गुहार लगाई है. एनजीओ का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने एक रिट याचिका में कहा है कि उन्होंने 10 जनवरी की तारीख वाले आदेश को रद्द करने की मांग की है, क्योंकि यह गैरकानूनी, मनमाना, बदनीयती से व दिल्ली पुलिस विशेष प्रतिष्ठान (डीपीएसई) अधिनियम और आलोक वर्मा व विनीत नारायण मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का उल्लंघन है. आदेश में आलोक वर्मा को हटाए जाने के बाद राव को अंतरिम प्रमुख नियुक्त किया गया है.
एनजीओ ने तर्क दिया कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के लिए उच्चस्तरीय चयन समिति को केंद्र सरकार द्वारा पूर्ण रूप से किनारे कर 10 जनवरी को राव की अंतरिम निदेशक के रूप में नियुक्ति कर दी गई, जो कि मनमाना और उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है.
संगठन ने कहा, 'नागेश्वर राव की अंतरिम सीबीआई निदेशक के रूप में नियुक्ति उच्चस्तरीय चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर नहीं हुई है. 10 जनवरी, 2019 की तारीख वाले आदेश में कहा गया है कि कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने पहले की व्यवस्थाओं के अनुसार नागेश्वर राव की नियुक्ति को मंजूरी दी है.'
संगठन ने कहा है, 'हालांकि राव को अंतरिम निदेशक बनाने वाले 23 अक्टूबर, 2018 के पहले के आदेश को इस अदालत द्वारा 8 जनवरी, 2019 को रद्द कर दिया गया था, क्योंकि इसने डीपीएसई अधिनियम में परिभाषित सीबीआई निदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया का उल्लंघन किया था.'
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संगठन ने जिक्र किया कि सरकार ने अभी भी अपने पहले वाले आदेश को लागू किया हुआ है, जिससे राव को फिर से सीबीआई का अंतरिम निदेशक बना दिया गया है, जबकि वह आदेश रद्द कर दिया गया था. संगठन ने कहा कि सरकार नियुक्ति के लिए सक्षम प्राधिकारी नहीं है और न ही उसके पास इसकी शक्तियां हैं.
याचिका में यह भी कहा गया है कि उच्चस्तरीय समिति पर्याप्त रूप से संतुलित है और उसके पास सीबीआई निदेशक की कार्यात्मक स्वायत्तता की रक्षा के लिए भी प्रावधान मौजूद हैं. याचिका के मुताबिक, सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में पारदर्शिता की कमी है, जो सरकार को नियुक्ति प्रक्रिया में 'अनुचित प्रभाव' का इस्तेमाल करने की अनुमति देता है, विशेषकर उम्मीदवारों के चयन वाले चरण में.
याचिका में कहा गया है, 'भारत सरकार ने मनमाने व गैरकानूनी तरीके से सीबीआई निदेशक की नियुक्ति कर सीबीआई जैसे संस्थान की आजादी का गला घोटने का प्रयास किया है. नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी सार्थक सार्वजनिक जांच को रोकती है और सरकार को नियुक्ति प्रक्रिया में 'अनुचित प्रभाव' का इस्तेमाल करने की अनुमति देती है, विशेषकर उम्मीदवारों के चयन वाले चरण में.'
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