CBI vs CBI: सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने बताया कारण, क्यों देना पड़ा दखल, पढ़ें कोर्ट में किसने क्या दी दलील
छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अभी और इंतज़ार करना होगा.सुप्रीम कोर्ट में उनकी अर्जी पर सुनवाई 5 दिसंबर को भी जारी रहेगी
नई दिल्ली:
छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अभी और इंतज़ार करना होगा.सुप्रीम कोर्ट में उनकी अर्जी पर सुनवाई 5 दिसंबर को भी जारी रहेगी. आज की सुनवाई ख़त्म करते हुए कोर्ट ने कहा कि अभी आलोक वर्मा को लेकर पेश की गई सीवीसी की रिपोर्ट को हमने अदालती कार्रवाई का हिस्सा नहीं बनाया है. 5 दिसंबर को ही तय करेंगे कि इस रिपोर्ट पर गौर किया जाए या नही. अगर ऐसा ज़रूरी लगा तो इस रिपोर्ट पर सरकार से जवाब तलब किया जाएगा. कोर्ट की आज की सुनवाई निदेशक को छुट्टी पर भेजे जाने की वैधता पर ही सीमित रही. आज सीवीसी की रिपोर्ट पर चर्चा नहीं हुई.
आज किस-किस ने दलीलें रखी
आज आलोक वर्मा की ओर से वरिष्ठ न्यायविद फली नरीमन, कॉमन कॉज एनजीओ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे, कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर से कपिल सिब्बल, सीबीआई अधिकारी ए के बस्सी की ओर से राजीव धवन ने दलील रखी. वही केंद्र सरकार का पक्ष अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने रखा
आलोक वर्मा के वकील फली नरीमन की दलील
आलोक वर्मा की ओर से वरिष्ठ न्यायविद फली नरीमन ने कहा- सुप्रीम कोर्ट चाहे तो किसी केस की मीडिया रिपोर्टिंग कुछ समय स्थगित रखने का आदेश दे सकता है. नरीमन ने अपनी दलीलो के समर्थन में 1997 के विनीत नारायण मामले में दिए गए फैसले, सीवीसी एक्ट 2003 और DSPE ( दिल्ली पुलिस स्पेशल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट ) में किये गए संशोधन का हवाला दिया. कहा- इनके मुताबिक सीबीआई डायरेक्टर के कार्यकाल की सीमा दो साल तय है और उसके ट्रांसफर के लिए उन्हें चुनने वाले पैनल की मंजूरी ज़रूरी है. केवल सीवीसी के आदेश पर आलोक वर्मा को छुट्टी पर नहीं भेजा जा सकता है. इसके लिए डायरेक्टर की नियुक्ति करने वाली कमेटी से मंज़ूरी लेनी चाहिए थी
क़ानून में सीबीआई डायरेक्टर के अधिकार को हल्का करने का कोई जिक्र ही नही है. उन्होंने कहा, जब आप फिक्स टर्म के कार्यकाल वाले सीबीआई डायरेक्टर का खुद ट्रांसफर तक नहीं कर सकते, आप सेलेक्शन पैनल की अनुमति के कैसे उनके पंख कतर सकते हैं. मैंने पंख कतरने जैसे शब्द का इस्तेमाल इसलिये किया क्योंकि सरकार की मंशा ऐसी ही लगती है.
कॉमन कॉज की ओर पेश हुए दुष्यंत दवे की दलील
दुष्यंत दवे ने भी DSPE एक्ट के सेक्शन 4 A और 4 b का हवाला दिया. सीबीआई डायरेक्टर के ट्रांसफर के लिए भी उनको नियुक्त करने वाले पैनल की मंजूरी ज़रूरी है. सीबीआई डायरेक्टर को छुट्टी पर भेजे जाने का फैसला इस एक्ट में तय प्रकिया को नजरअंदाज कर के सरकार ने लिया.
मल्लिकार्जुन खड़गे के वकील कपिल सिब्बल की दलील
कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर से कपिल सिब्बल ने दलील रखी. सिब्बल ने कहा सीबीआई पर सीवीसी की निगरानी सिर्फ करप्शन के मामलों को लेकर है लेकिन ये सीवीसी को ये अधिकार नहीं देता कि वो सीबीआई डायरेक्टर का ऑफिस सीज करे या उसे छुट्टी पर भेजे. CBI डायरेक्टर की एक पैनल द्वारा नियुक्ति का अधिकार ही पैनल को उनको निलंबित या बर्खास्त करने का अधिकार भी देता है. ये ही प्रकिया आलोक वर्मा के केस में भी अपनायी जानी चाहिये. उन्हें छुट्टी पर भेजने का फैसला पैनल की मंजूरी से ही लिया जाना चाहिए. आज ये सीबीआई डायरेक्टर के साथ हो रहा है, कल कैग और खुद सीवीसी के साथ भी हो सकता है, क्योंकि प्रावधान एक जैसे हैं. उन्होंने कहा सीबीआई की निगरानी का सीवीसी का अधिकार DSPE एक्ट के सेक्शन 4 A और 4B को अनदेखा नहीं कर सकता.
सीबीआई अधिकारी बस्सी के वकील राजीव धवन की दलील
सीबीआई अधिकारी ए के बस्सी की ओर से राजीव धवन पेश हुए. धवन ने कहा- कोई भी नियम सीबीआई डायरेक्टर के दो साल के तय कार्यकाल की अवहेलना नहीं नहीं कर सकता. सीवीसी या सरकार को किसी भी तरह से उन्हें छुट्टी पर भेजने का अधिकार हासिल नहीं है. आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने का फैसला इसलिये लिया गया क्योंकि कुछ खास मामलों की जांच से वो जुड़े थे. अगर नियम में कोई खामी भी है तो उसे सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही दुरस्त कर सकता है, सीवीसी या सरकार को ये अधिकार नहीं है
केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल की दलील
फली नरीमन, दुष्यत दवे, कपिल सिब्बल, राजीव धवन की दलीलों के बाद अब सरकार की ओर से अटॉनी जनरल के के वेणुगोपाल पक्ष ने दलीलें रखी. अटॉनी जनरल ने कहा चयन कमेटी और नियुक्त करने वाली कमेटी दोनों अलग-अलग है. अगर किसी शख्स को चुन भी लिया जाता है, तो भी उसे नियुक्त करने का अधिकार सरकार के पास है. सेलेक्शन पैनल का रोल सिर्फ कुछ नामों में से एक को चुनकर केंद्र को आगे बढ़ाने तक ही सीमित है, कैबिनेट कमेटी ऑन अपॉइंटमेंट ही सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति करती है.लिहाजा सरकार को दखल देने का अधिकार है. सीवीसी के पास सीबीआई की पूरी निगरानी का अधिकार है. और ये अधिकार सिर्फ करप्शन के मामलों तक सीमित नहीं है. एक्ट कहता है कि सारे मामलों में सीवीसी को ये अधिकार हासिल है.
सरकारी वकील ने कहा, सरकार की सबसे बड़ी चिंता सीबीआई में लोगों के विश्वास को कायम करने की थी. सीबीआई के दोनों बड़े अधिकारियो के बीच गंभीर टकराव चल रहा था ,इसलिए सरकार को दख़ल देना पड़ा ताकि एजेंसी में लोगों के विश्वास को कायम रखा जा सके. आलोक वर्मा दिल्ली में सरकारी आवास में ही हैं. सभी सुविधाएं अभी भी उन्हें हासिल है, ऐसे में कैसे ये कहा जा सकता है कि उनका ट्रांसफर हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट के अहम सवाल
फली नरीमन से जस्टिस केएम जोसेफ का सवाल - मान लीजिए की सीबीआई डायरेक्टर घूस लेते हुए रंगे हाथों पकड़े जाते हैं तब क्या होगा? क्या उन पर भी किसी एक्शन के लिए लिए हाई पावर कमेटी की इजाजत लेनी होगी. लेकिन क्या ऐसे शख्स को एक मिनट के लिए भी पद पर रहने की इजाजत दी जा सकती है.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की टिप्पणी
सुनवाई इस पर भी केंद्रित रहेगी कि क्या आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने से पहले हाई पावर कमेटी की इजाज़त ज़रूरी है या नहीं. कोर्ट आलोक वर्मा या राकेश अस्थाना के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप में नहीं जाएगा. कोर्ट में सीवीसी पर आरोप लगा रहे सिब्बल और अस्थाना पर आरोप लगा रहे दुष्यंत दवे को टोका. चीफ जस्टिस ने नसीहत दी कि सिर्फ क़ानूनी बिंदु पर ही बहस करें. चीफ जस्टिस ने पूछा क्या क़ानूनी प्रावधान ऐसे हैं कि बिना हाई पॉवर कमेटी की मंजूरी के सीबीआई डायरेक्टर के खिलाफ कोई भी एक्शन नहीं लिया जा सकता. सिब्बल, दुष्यंत दवे, नरीमन सब ने जवाब में कहा- ऐसा ही है.
जस्टिस के एम जोसेफ ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि सीबीआई डायरेक्टर को छुट्टी पर भेजे जाने का फैसला लेने से पहले राकेश अस्थाना के उन पर लगे आरोपों पर सरकार या कैबिनेट सेक्रेटरी ने गौर किया. अटॉर्नी जनरल ने जवाब दिया- सरकार को किसी व्यक्ति विशेष से कोई मतलब नहीं है.
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