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युवा दिवस: मेहमानों की सेवा में भूखे रहकर ठंड में सो जाते थे स्वामी विवेकानंद, उनके जीवन ने करोड़ों जीवन को संवार दिया

25 की उम्र में ही स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस से प्रेरणा ली और मोह-माया त्याग कर वे संन्यासी बन गए.

Updated on: 10 Jan 2020, 11:01 AM

नई दिल्ली:

स्वामी विवेकानंद की आज 156वीं जयंती है, उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था. बचपन से ही वेद और दर्शन शास्त्र में रूचि रखने वाले स्वामी विवेकानंद आगे चलकर दुनिया भर के युवाओं के लिए मार्गदर्शक बन गए. यही वजह है कि आज के दिन को हम युवा दिवस के तौर पर मनाते हैं. महान दार्शनिक स्वामी विवेकानंद का नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था, जो आज भी दुनिया के करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत बने हुए हैं.

स्वामी के पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट में वकालत करते थे, जबकि उनकी माताजी भुवनेश्वरी देवी धार्मिक महिला थीं. 1884 में पिता विश्वनाथ दत्त का निधन हो गया, जिसके बाद परिवार की सभी जिम्मेदारियां विवेकानंद के कंधों पर आ गईं. स्वामी विवेकानंद के अंदर कुछ विशिष्ट गुण थे, जो उन्हें महाने बनाते थे. विवेकानंद में अतिथियों का सम्मान करने की काफी अच्छी आदत थी. वे अपने अतिथियों की सेवा में खुद को भूल जाते थे. अतिथि भूखे न रहें इसलिए वे उन्हें भोजन कराते थे और खुद भूखे पेट सो जाते थे.

25 की उम्र में ही स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस से प्रेरणा ली और मोह-माया त्याग कर वे संन्यासी बन गए. 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो में हुई धर्म संसद में उनके ओजपूर्ण और बेबाक भाषण ने पूरी दुनिया को अपना दीवाना बना दिया. खासतौर पर दुनियाभर के युवा उन्हें अपना गुरू मानने लगे. ये दिन भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण था, जो इतिहास में दर्ज हो गया.

1 मई 1897 को स्‍वामी विवेकानंद ने कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. अगले ही साल उन्होंने 9 दिसंबर 1898 को बेलूर स्थित गंगा नदी के तट पर रामकृष्ण मठ की भी स्थापना की. विवेकानंद का निधन उनकी शुगर की बीमारी की वजह से हुआ, 39 साल की उम्र में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. 4 जुलाई 1902 को उन्होंने बेलूर में आखिरी सांसें लीं.