logo-image

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री माओवादियों की साजिश, केरल CM और सीपीएम ने की मदद: BJP

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री को लेकर बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) नेता वी मुरलीधरन ने आरोप लगाते हुए कहा है कि यह पूरी तरह से सुनियोजित प्लान था जिसके तहत दो माओवादी महिलाओं को पुलिस की देख रेख में मंदिर के अंदर ले जाया गया.

Updated on: 03 Jan 2019, 11:20 AM

नई दिल्ली:

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री को लेकर बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) नेता वी मुरलीधरन ने आरोप लगाते हुए कहा है कि यह पूरी तरह से सुनियोजित प्लान था जिसके तहत दो माओवादी महिलाओं को पुलिस की देख रेख में मंदिर के अंदर ले जाया गया. मुरलीधरन ने कहा, 'बुधवार को दो महिलाएं सबरीमाला मंदिर के अंदर गयीं लेकिन वो श्रद्धालु नहीं बल्कि माओवादी थीं. सीपीएम ने कुछ चुने हुए पुलिसवालों की मदद से महिलाओं को मंदिर ले जाने के लिए एक सुनियोजित प्लान बनाया. यह पूरी तरह से एक षडयंत्र है जो माओवादियों ने केरल सरकार और सीपीएम के संरक्षण में तैयार किया है.'  

इससे पहले मोदी सरकार में मंत्री अनंत हेगड़े ने कहा, 'वामपंथियों के पूर्वाग्रहों के बजाय केरल के सीएम का पूर्वाग्रह लोगों में भ्रम पैदा कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर निर्देश दिया. हां, मैं उससे सहमत हूं लेकिन कानून-व्यवस्था, जोकि राज्य सरकार के अधीन आती है उसका काम है कि बिना जनभावनाओं को ठेस पहुंचाए व्यवस्था को किस तरह संभाला जाए, यह काफी अहम होता है. हालांकि, केरल सरकार इसमें बुरी तरह से विफल साबित हुई है. यह हिंदू लोगों का दिनदहाड़े रेप है.'

गौरतलब है कि केरल की दो महिलाओं ने बुधवार को सबरीमाला मंदिर में प्रार्थना व दर्शन किया. ये महिलाएं उसी आयु वर्ग की हैं, जिस पर अब तक प्रतिबंध लगा हुआ था. हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश करने पर लगी रोक को हटा दिया है, लेकिन इसके बावजूद कुछ संगठनों द्वारा न्यायालय के इस फैसले का विरोध किया जा रहा है.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को दिए अपने फैसले में कहा था कि सभी उम्र की महिलाओं (पहले 10-50 वर्ष की उम्र की महिलाओं पर बैन था) को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश मिलेगी. वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर 48 पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए 22 जनवरी की तारीख मुकर्रर की गई है.

कोर्ट ने क्या कहा था

अदालत ने कहा था कि महिलाओं का मंदिर में प्रवेश न मिलना उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. अदालत की पांच सदस्यीय पीठ में से चार ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया जबकि पीठ में शामिल एकमात्र महिला जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग राय रखी थी.

और पढ़ें- बुलंदशहर हिंसा : बजरंग दल का संयोजक योगेश राज गिरफ्तार, भीड़ को उकसाने का है आरोप

पूर्व मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने जस्टिस एम.एम. खानविलकर की ओर से फैसला पढ़ते हुए कहा, 'शारीरिक या जैविक आधार पर महिलाओं के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता. सभी भक्त बराबर हैं और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता.'