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लोकतांत्रिक तरीकों से ख़त्म करेंगे तीन तलाक बिल: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

लोकसभा ने गुरुवार को तीन तलाक को आपराधिक करार देते हुए इसका इस्तेमाल करने वाले मुस्लिम पतियों को तीन साल की सजा के प्रावधान वाले विधेयक को पारित कर दिया।

Updated on: 28 Dec 2017, 10:40 PM

नई दिल्ली:

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने तीन तलाक बिल का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि वह लोकतांत्रिक तरीके से इस विधेयक में 'संशोधन और सुधार' के लिए ज़रूरी कदम उठाएंगे।

एआईएमपीएलबी प्रवक्ता मौलाना खलील-उर-रहमान सज्जाद नोमानी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'इस विधेयक में सुधार, संशोधन और हटाने के लिए लोकतांत्रिक तरीसे जो भी कदम उठाए जा सकेंगे, हम उठाएंगे। फिलहाल हम कोर्ट जाने पर कोई विचार नहीं कर रहे हैं। यह विधेयक जल्दबाजी में लाया गया है।'

लोकसभा ने गुरुवार को तीन तलाक को आपराधिक करार देते हुए इसका इस्तेमाल करने वाले मुस्लिम पतियों को तीन साल की सजा के प्रावधान वाले विधेयक को पारित कर दिया।

नोमानी ने कहा, 'कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विधेयक को पेश करते हुए बोर्ड का जिक्र किया। इसके अलावा सत्ता पक्ष की एक महिला सांसद ने भी अपने भाषण में बोर्ड की ओर से उठाए गए सवालों का जवाब दिया। यह सवाल बोर्ड ने पीएम को लिखे पत्र में उठाए थे। इससे पता चलता है कि सरकार बोर्ड की मान्यता को स्वीकार करती है। ऐसे में उसे इस मसले पर बोर्ड को भी विश्वास में लेना चाहिए था।'

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एआईएमपीएलबी ने कहा है कि इस विधेयक के विरोध में वह सुप्रीम कोर्ट का रुख़ कर सकते हैं।

एक टीवी चैनल से बातचीत में जिलानी बोले, 'सुप्रीम कोर्ट के फैसले और संविधान के विपरीत कोई भी विधेयक यदि संसद से पारित होता है तो उसे शीर्ष अदालत ने में चुनौती देने का विकल्प हमेशा खुला रहता है। हमारी लीगल कमिटी ने भी सुझाव दिया है कि इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है। हालांकि हम इस विधेयक के पारित होने के बाद कानून लागू होने पर ही अदालत जाने का फैसला करेंगे।'

वहीं शिया वक्फ बोर्ड ने तीन तलाक विधेयक का स्वागत करते हुए कहा है कि ऐसा करने वाले लोगों के लिए और भी कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए।

बता दें कि प्रस्तावित विधेयक के अनुसार अगर कोई पुरुष तीन तलाक का दोषी पाया जाता है तो उसे तीन साल के जेल का प्रावधान है।

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कानून व न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विधेयक को लोकसभा में पेश किया और इस मामले में सरकार के पक्ष की अगुआई की। प्रसाद ने कहा कि आज इतिहास बन रहा है।

प्रसाद ने कहा कि यह धर्म या विश्वास का मुद्दा नहीं, बल्कि लैंगिक समानता व लैंगिक न्याय का मुद्दा है। उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से राजनीतिक सोच व वोटबैंक की राजनीति से ऊपर उठने की अपील की।

प्रसाद ने चर्चा को समेटते हुए कहा, 'महिलाएं देख रही हैं कि उनके साथ न्याय किया जाएगा। आइए हम एक स्वर में कहें कि हम लैंगिक न्याय व लैंगिक समानता के लिए हैं और विधेयक को सर्वसम्मति से पारित करते हैं।'

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उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस साल तीन तलाक को असंवैधानिक ठहराये जाने के फैसले के बावजूद तलाक के मामले जारी रहे।

इस विधेयक में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के मद्देनजर मुस्लिम पतियों द्वारा तलाक-ए-बिद्दत (एक ही बार में तीन तलाक) को गैरकानूनी घोषित करने और इसे आपराधिक कृत्य बनाने का प्रस्ताव है।

प्रसाद ने कहा कि तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रोहिंग्टन नरीमन व यू.यू.ललित ने अपने फैसले में इसे असंवैधानिक ठहराया था व सरकार द्वारा कानून लाने की बात कही थी। न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने कहा कि इस्लामिक कानून में जो एक पाप है, वह वैध नहीं हो सकता।

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मंत्री ने कहा कि विधेयक को स्थायी समिति को भेजने की मांग न्यायोचित नहीं है और कहा कि प्रभावित मुस्लिम महिलाएं न्याय मांग रही और इसे पूरा समर्थन दे रही हैं। उन्होंने कहा कि सदस्यों के विधेयक को स्थायी समिति को भेजने और फिर यह भी कहने में विरोधाभास है कि इसे पहले ही क्यों नहीं लाया गया।

विधेयक में कहा गया है कि तलाक-ए-बिद्दत गैरकानूनी व दंडनीय अपराध होगा। इसमें पति से आजीविका के लिए गुजारा भत्ता व पत्नी व आश्रित बच्चों की रोजमर्रा की जरूरतों के लिए दैनिक सहायता की व्यवस्था भी शामिल है। इसमें पत्नी के पास नाबालिग बच्चों की निगरानी का अधिकार भी होगा।

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