logo-image

क्या है Rafale Deal विवादः 8 प्वाइंट्स में जानें कब क्या हुआ

ड़ोसी देशों की ओर से भविष्य में मिलने चुनौतियों को लेकर वाजपेयी सरकार ने 126 लड़ाकू विमानों को खरीदने का प्रस्ताव रखा था.

Updated on: 24 Sep 2018, 01:34 PM

नई दिल्ली:

राफेल डील (Rafale Deal) को लेकर सरकार और विपक्ष अब पूरी तरह से आमने-सामने आ चुकी है. फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के खुलासे के बाद इस मामले में वहां की सरकार और डसॉल्ट एविएशन ने बयान जारी कर अपना पक्ष रखा है. फ्रांस सरकार और कंपनी दोनों ने ओलांद के बयान से किनारा कर लिया है. फ्रांस की सरकार ने कहा है कि इस सौदे के लिए भारतीय औद्योगिक साझेदारों को चुनने में हमारी कोई भी भूमिका नहीं है. वही दूसरी ओर राफेल विमानों की निर्माता डसॉल्ट एविएशन ने कहा है कि कंपनी ने खुद रिलायंस ग्रुप के साथ साझीदारी करने का फैसला किया था.

बता दें कि इससे पहले फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने एक फ्रेंच अखबार को दिए इंटरव्यू में बताया था कि डसॉल्ट एविएशन के साथ करार के लिए रिलायंस का नाम खुद भारत सरकार ने सुझाया था. ओलांद के इस बयान के बाद विपक्ष सरकार पर हमलावर हो गया है. जानिए क्या है राफेल डील की पूरी कहानी.

1. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में लड़ाकू विमान खरीदने की बात चली थी. पड़ोसी देशों की ओर से भविष्य में मिलने चुनौतियों को लेकर वाजपेयी सरकार ने 126 लड़ाकू विमानों को खरीदने का प्रस्ताव रखा था.

2. काफी विचार-विमर्श के बाद अगस्त 2007 में यूपीए सरकार में तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटोनी की अगुवाई में 126 एयरक्राफ्ट को खरीदने की मंजूरी दी गई. फिर बोली लगने की प्रक्रिया शुरू हुई और अंत में लड़ाकू विमानों की खरीद का आरएफपी जारी कर दिया गया.

3. बोली लगाने की रेस में अमेरिका के बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, फ्रांस का डसॉल्‍ट राफेल, ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्‍कन, रूस का मिखोयान मिग-35 जैसे कई कंपनियां शामिल हुए लेकिन बाजी डसाल्ट एविएशन के हाथ लगी.

इसे भी पढ़ेंः ओलांद के बयान पर सरकार को कांग्रेस ने घेरा, राफेल सौदे पर तथ्यों को छिपा रहा फ्रांस

4. जांच-परख के बाद वायुसेना ने 2011 में कहा कि राफेल विमान पैरामीटर पर खरे हैं. जिसके बाद अगले साल डसाल्ट ए‍विएशन के साथ बातचीत शुरू हुई. हालांकि तकनीकी व अन्य कारणों से यह बातचीत 2014 तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची.

5. काफी दिनों तक मामला अटका रहा। नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद राफेल (Rafale Deal) पर फिर से चर्चा शुरू हुई. 2015 में पीएम मोदी फ्रांस गए और उसी दौरान राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर समझौता किया गया. समझौते के तहत भारत ने जल्द से जल्द 36 राफेल लेने की बात की.

6. नए समझौतों के मुताबिक भारत को तय समय सीमा (18 महीने) के भीतर विमान मिलेंगे. विमानों के रख-रखाव की जिम्मेदारी भी फ्रांस की होगी. आखिरकार सुरक्षा मामलों की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के बीच 2016 में आईजीए हुआ.

7. नए समझौतों के बाद कांग्रेस सरकार पर हमलावर है. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यूपीए ने 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये में सौदा किया था लेकिन मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ रुपये रही है.

8. कांग्रेस का आरोप है कि नए समझौते के तहत एक राफेल विमान 1555 करोड़ रुपये का पड़ रहा है. जबकि कांग्रेस ने 428 करोड़ रुपये में डील तय की थी. कांग्रेस का इस डील में रिलायंस डिफेंस को शामिल करने का भी विरोध कर रही है. इस मुद्दे पर राहुल गांधी भी सरकार को घेर रही है.