इंडिया बोले: चुनावी जीत का आधार क्या- विकास या आस्था?
यही समझने के लिए मेरे साथ देखिए 'इंडिया बोले' इस सोमवार शाम 6 बजे सिर्फ न्यूज़ नेशन टीवी पर।
नई दिल्ली:
आज के सियासी माहौल को देखकर हर कोई कह सकता है कि सियासत का ये भक्ति काल है। 2019 के महासंग्राम की आहट के बीच तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में इसकी तपिश महसूस की जा रही है। संघ, बीजेपी नेता राम मंदिर निर्माण के बयान दे रहे हैं तो कांग्रेस नेता भी मंदिर-मंदिर दर्शन कर अपनी सेकुलर सियासी तस्वीर को बदलने में जुटे हैं।
चुनावी जीत के आगे अदालती आदेश बेमानी!
हैरानी की बात है कि ये सब कुछ तब हो रहा है, जबकि बीते साल ही सुप्रीम कोर्ट चुनाव में धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगने को गैर-कानूनी और भ्रष्ट तरीका करार दे चुका है। अदालत के मुताबिक ऐसा करने पर सिर्फ उम्मीदवार ही नहीं बल्कि दूसरे नेता, चुनाव एजेंट और धर्म गुरु भी इसके दायरे में होंगे। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 (3) की व्याख्या करते वक्त सात सदस्यीय संविधान पीठ ने 4—3 के मुकाबले ये फैसला दिया था।
कांग्रेस का ''सॉफ्ट हिन्दुत्व''
2014 में मिली करारी चुनावी हार के बाद एके अंटोनी की सॉफ्ट हिन्दूत्व की सिफारिश पर मानों पार्टी आगे बढ़ चुकी है। तभी तो मध्य प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ हर गांव में गौशाला बनाने का वादा कर चुके हैं। पार्टी ने राम गमन वन पथ यात्रा भी शुरू की है। चुनाव से पहले मानसरोवर की यात्रा कर चुके कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चित्रकूट, दतिया और ग्वालियर के मंदिरों के दर्शन कर चुके हैं तो जबलपुर में नर्मदा आरती भी।
प्रचार के दौरान पोस्टरों में राहुल कभी शिवभक्त के तौर पर नजर आ रहे हैं तो कभी राम भक्त के रूप में। गुजरात चुनाव में 25 और कर्नाटक में 19 मठ और मंदिरों का दर्शन करने वाले राहुल गांधी एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनाव में भी मंदिर के रास्ते सत्ता की उम्मीद में हैं।
धर्म पर टिकी सियासत!
वैसे हिन्दुत्व का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के लिए मुफीद साबित होता रहा है। धर्म पर टिकी राजनीति का चुनावी असर ही था कि 1984 के लोकसभा चुनाव में 2 सीट जीतने वाली बीजेपी 1991 में राम मंदिर आंदोलन की बदौलत 119 सीट पाकर मुख्य विपक्षी दल बन गई। शायद तभी छत्तीसगढ़ में 15 साल से मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह अपने पर्चा दाखिल करने के वक्त योगी आदित्यनाथ को बुलाते हैं।
इंडिया बोले — चुनावी जीत का आधार क्या — विकास या आस्था?
— News State (@NewsStateHindi) October 28, 2018
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समझना होगा कि योगी को बुलाने की वजह बतौर सीएम योगी का डेढ़ साल का अनुभव नहीं बल्कि बड़ी वजह योगी का हिन्दुत्व का लोकप्रिय चेहरों होना है। मुमकिन है सूबे के धर्मांतरण का आरोप झेलने वाले इलाकों में योगी के हिंदूवादी चेहरा पार्टी को फायदा पहुंचाए। वैसे चुनाव से पहले धर्म आधारित बयानों की शुरूआत भी हो चुकी है। राजस्थान में अवैध घुसपैठियों का मसला उठा चुका है तो मध्य प्रदेश में नर्मदा की आस्था का।
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह बता रहे हैं कि मुल्क के मुसलमान बाबर की नहीं, राम की औलाद हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत सरकार को कानून बनाकर मंदिर निर्माण करने की नसीहत दे चुके हैं। वैसे अयोध्या मामले में अहम सुनवाई इस सोमवार यानि 29 अक्टूबर को होनी है।
कुल मिलाकर चुनावों में धर्म की गूंज के बीच सवाल विकास और रोजगार जैसे दूसरे जरूरी मुद्दों का है। सवाल है कि क्या विधानसभा चुनाव मुद्दों पर लड़ा जाएगा या फिर आस्था के नाम पर? यही समझने के लिए मेरे साथ देखिए 'इंडिया बोले' इस सोमवार शाम 6 बजे सिर्फ न्यूज़ नेशन टीवी पर।
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