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रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट बढ़ने-घटने से ऐसे पड़ती हैं आपकी ज़िंदगी पर असर

रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट क्या होता हैं इसके घटने और बढ़ने से आम लोगों के ऊपर क्या प्रभाव पड़ेगा आइए जानते हैं-

Updated on: 01 Aug 2018, 05:12 PM

नई दिल्ली:

महंगाई की मार झेल रही जनता को आरबीआई (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) ने झटका दिया है। मौद्रिक समीक्षा RBI ने रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बढ़ोतरी कर दी है। आरबीआई ने रेपो रेट में 0.25 फीसदी बढ़ोतरी की है और अब ये 6.25 प्रतिशत हो गया है। वहीं रिवर्स रेपो रेट में भी 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी की है और अब ये 6 फीसदी पर पहुंच गया है। रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट क्या होता हैं इसके घटने और बढ़ने से आम लोगों के ऊपर क्या प्रभाव पड़ता है आइए जानते हैं।

रेपो रेट क्या है और कैसे आम लोगों पर डालता है असर ?
जिस तरह बैंकों से हम कर्ज लेते हैं, ठीक उसी तरह रोजमर्रा के कामकाज के लिए बैंकों को भी बड़ी रकम की जरूरत पड़ती है। ये रकम उसे आरबीआई से कर्ज के रूप में मिलती है। बैंक आरबीआई से जिस दर से कर्ज लेते हैं उसे रेपो रेट कहते हैं। यानी जितना ब्याज बैंक आरबीआई को चुकाएगा उतना वो अपने ग्राहक से वसूलेंगे।

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अब आप इसे इस तरह समझे कि जब बैंकों को कम दर पर कर्ज मिलेगी तो वे भी ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अपनी ब्याज दरों को कम कर सकते हैं, ताकि कर्ज लेने वाले ग्राहकों में ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ोतरी की जा सके और ज़्यादा रकम कर्ज पर दी जा सके।

अगर आरबीआई रेपोट रेट में बढ़ोतरी करती हैं तो बैकों को कर्ज लेना महंगा पड़ेगा और वे अपने ग्राहकों से वसूल करने वाले ब्याज दर में इजाफा कर देंगे।

रिवर्स रेपो रेट का क्या है मतलब ?
रिवर्स रेपो रेट का मतलब है बैंक अपने बचे हुए रकम को जिस दर पर आरबीआई में जमा कराते हैं। यानी जब बैंकों के पास दिन-भर के कामकाज के बाद बड़ी रकम बच जाती हैं तो वो उस रकम को रिजर्व बैंक में रख दिया करते हैं। जिस पर आरबीआई उन्हें ब्याज (इंटरेस्ट) दिया करता है।

रिवर्स रेपो रेट बाज़ारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है। जब भी बाज़ारों में बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज़्यादा ब्याज कमाने के लिए अपने रुपए उसके पास जमा करा दें। जिससे बैंक के पास बाजार में छोड़ने के लिए कम रकम रह जाए।

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