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समलैगिंकता को अपराध करार देने वाली धारा 377 पर आज आएगा 'सुप्रीम फैसला'

समलैगिंकता को अपराध करार देने वाली IPC 377 के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट आज इस पर अपना फैसला सुनाएगी।

Updated on: 06 Sep 2018, 12:05 AM

नई दिल्ली:

समलैगिंकता को अपराध करार देने वाली IPC 377 के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट आज इस पर अपना फैसला सुनाएगी। इससे पहले कोर्ट ने सभी संबंधित पक्षों से कहा था कि वो समलैंगिकता मामले में अपने दावों के समर्थन में लिखित में दलीलें पेश करें।

धारा 377 के खिलाफ याचिकाओं में 2 वयस्कों के बीच आपसी सहमति से एकांत में बने समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करने की मांग की गई थी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट संकेत दे चुका है कि वो समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर रहने के पक्ष में है।

दरसअल सबसे पहले एनजीओ नाज फाउंडेशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में यह कहते हुए धारा 377 की वैधता पर सवाल उठाया था कि अगर दो वयस्क आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं तो उसे धारा 377 के प्रावधान से बाहर किया जाना चाहिए। 2009 में हाईकोर्ट ने इसे अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था, लेकिन 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए धारा 377, यानी समलैंगिकता को फिर अपराध करार दे दिया था।

2016 में तत्कालीन चीफ़ जस्टिस टी एस ठाकुर ने 2013 के फैसले के खिलाफ दायर क्यूरेटिव याचिका को स्वीकार करते हुए कहा था कि मामले पर फिर से विचार करने की जरूरत है, क्योंकि इसमें संवैधानिक मुद्दे जुड़े हुए हैं। 2018 में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में 5 जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की। सभी पक्षों को सुनने के बाद 17 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था।

इस मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा था कि अगर कोई कानून मूल अधिकारों  के खिलाफ है, तो हम इसका इंतजार नहीं करेंगे कि बहुमत की सरकार इसे रद्द कर दे। हम जैसे ही आश्वस्त हो जायेगे कि कानून मूल अधिकारों के खिलाफ है, हम ख़ुद फैसला लेंगे, सरकार पर नहीं छोड़ेंगे।

जस्टिस नरीमन ने कहा था कि अगर वेश्यावृति को कानूनन अनुमति दे दी जाती है तो इसमे शामिल लोगो को स्वास्थय सेवा दी जा सकती है। लेकिन अगर वेश्यावृति को अवैध करार देकर छिपा कर रखा जाए तो कई तरह की दिक्कते सामने आती है।

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जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस बात पर असहमति जताई थी कि IPC 377 को रद्द करना एड्स जैसी बीमारियों को बढ़ावा देगा। उन्होनें कहा कि बल्कि समलैंगिक सम्बन्धों को कानूनी मान्यता पब्लिक हेल्थ सेक्टर में जागरूकता लाएगी।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने साफ किया था कि अगर हम समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर भी करते हैं, तब भी किसी से जबरन समलैंगिक संबंध बनाना अपराध ही रहेगा।

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सुनवाई के दौरान ईसाई समुदाय के तरफ से वकील मनोज जॉर्ज ने कहा कि समलैंगिकता अप्राकृतिक है। सेक्स का मकसद सिर्फ बच्चा पैदा करने के लिए होता है।