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'यूएनएचसीआर ने रोहिंग्या को जम्मू में संभावित खतरे को लेकर चेताया'

जिन शरणार्थियों ने अपना घर, खेत और जिंदगी भर की कमाई छोड़ दी, उनका कहना है कि एक और विस्थापन सहने के लिए तैयार नहीं हैं।

Updated on: 03 Dec 2017, 08:56 PM

नई दिल्ली:

दिल्ली से जम्मू पहुंचे संयुक्त राष्ट्र के दो अधिकारी आठ नवंबर को एक घर में लगभग दो दर्जन रोहिंग्या शरणार्थियों के इंतजार में थे। वे उन्हें आगाह करना चाहते थे कि जम्मू उनके लिए संभवत: सुरक्षित नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने रोहिंग्या मुसलमानों को जम्मू में रहने को लेकर चेताया। कई शरणार्थियों ने बताया, 'आपको जम्मू में समस्याएं या खतरा हो सकता है, यहां से चले जाइए, यदि आप चाहें तो हम आपको सहायता राशि मुहैया कराएंगे।'

म्यांमार में सेना द्वारा रोहिंग्याओं के खिलाफ सैन्य अभियान के बाद रोहिंग्या बांग्लादेश से होते हुए पश्चिम बंगाल की सीमा पार कर वहां से भाग खड़े हुए और जम्मू पहुंच गए। इन्होंने शरणार्थी शिविरों में शरण ली।

लेकिन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जम्मू एंड कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी (जेकेएनपीपी) के सदस्यों द्वारा इनके खिलाफ शुरू किए गए प्रदर्शनों ने जम्मू में उनके प्रवास को लेकर अनिश्चितता पैदा कर दी। ये प्रदर्शनकारी रोहिंग्याओं को अवैध बताते हुए इन्हें जम्मू से खदेड़ने की मांग कर रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (यूएनएचसीआर) के अधिकारियों ने यूएनएचसीआर के साझेदार संगठन के साथ मिलकर बाद में जम्मू में शरणार्थी शिविरों का दौरा किया। इन्होंने भी शरणार्थियों को इसी तरह जम्मू से जाने को कहा।

दक्षिण कश्मीर के चन्नी राम में अपने झुग्गी के बाहर इमान शेरिफ (22) ने कहा, 'वे यहां आए और उन्होंने कहा कि हमें जम्मू में परेशानी हो सकती है और अगर हम दिल्ली, हैदराबाद या मेवात जाना चाहते हैं तो वे हमें पैसे देंगे।'

शरणार्थियों के मुताबिक, यूएनएचसीआर की मदद में यात्रा का खर्चा, नए स्थान पर रैन बसेरा बनाने में सहयोग और एक महीने का निशुल्क राशन जैसी सहायता शामिल हैं।

दुनियाभर में शरणार्थियों को संरक्षण देने और उनकी समस्याओं को सुलझाने वाले यूएनएचसीआर से जब जम्मू से शरणार्थियों के स्थानांतरण के बारे में पूछा गया तो उन्होंने आईएएनएस को बताया कि उन्होंने जम्मू में कुछ ऐसे शरणार्थियों की मदद की है, जो अन्य स्थानों पर जाना चाहते हैं।

यूएनएचसीआर के प्रवक्ता ने ईमेल के जरिए बताया कि ऐसा सुरक्षा कारणों से किया गया, लेकिन उन्होंने इस बारे में विस्तार से कुछ नहीं बताया। प्रवक्ता ने कहा कि फिलहाल, हम सिर्फ इतनी ही जानकारी दे सकते हैं।

यह पूछने पर कि क्या उन्होंने यूएनएचसीआर से कोई स्पष्टीकरण मांगा? अनवर हुसैन (26) ने कहा, 'वे बड़े लोग हैं और हम अशिक्षित हैं। हम उनसे सवाल कैसे कर सकते हैं?' लेकिन बहुत कम लोग इस प्रस्ताव से सहमत हैं।

आईएएनएस ने कई शरणार्थियों से बात की, लेकिन उनका कहना है कि वे विरोध प्रदर्शनों के बावजूद जाने के लिए तैयार नहीं हैं। अनवर ने कहा, 'हम जम्मू के आदी हैं। हम यहां सभी को जानते हैं तो ऐसे में हमें क्यों जाना चाहिए?'

जिन शरणार्थियों ने अपना घर, खेत और जिंदगी भर की कमाई छोड़ दी, उनका कहना है कि एक और विस्थापन सहने के लिए तैयार नहीं हैं।

एक अन्य शरणार्थी ने पूछा, 'फिर क्या होगा, जब संयुक्त राष्ट्र हमें बाद में बोले कि दिल्ली भी सुरक्षित नहीं है, कोलकाता जाइए? फिर क्या होगा, जब वे हमें म्यांमार जाने के लिए कहेंगे।'

कूड़ा बीनने वाले शेरिफ कहते हैं, 'मैं यहां से जाने वाला आखिरी शख्स होऊंगा।' उन्होंने आगे कहा, 'उन्होंने कहा कि वे हमारे लिए झुग्गी बनाएंगे, लेकिन हम कहां खाएंगे? यहां हम सभी सड़कों को जानते हैं और खुद कमा सकते हैं। मैं नई जगह पर क्या करूंगा? मेरे बुजुर्ग माता-पिता की देखरेख कौन करेगा?'

म्यांमार ने अल्पसंख्यक रोहिंग्या को देश में नागरिकता देने से इनकार कर दिया गया है। यह विश्व के सर्वाधिक सताए हुए अल्पसंख्यक हैं। वे म्यांमार की सेना के हाथों बर्बरता का सामना कर रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों को निशाना बनाकर शुरू किए गए अभियान को सितंबर में 'जातीय सफाए का उदाहरण' बताया था और देश से इस बर्बर सैन्य अभियान को खत्म करने का आग्रह किया था।

संयुक्त राष्ट्र ने बताया कि उन्हें सुरक्षाबलों द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों के गांव जलाने, उनकी हत्या आदि की कई रपटें मिली हैं।

यूएनएचसीआर के मुताबिक, हिंसा की वजह से पिछले पांच वर्षो में 800,000 से अधिक रोहिंग्या म्यांमार से भाग खड़े हुए हैं। भारत में लगभग 21,500 रोहिंग्या शरणार्थी हैं।

जम्मू और दिल्ली की झुग्गियों में मिले रोहिंग्या से जब आईएएनएस ने बात की तो उन्होंने कहा कि उनके संबंधियों से दुष्कर्म सहित सेना की बर्बरता की यादें उनके जहन में रहेंगी।

जम्मू में शरणार्थी बशीर अहमद (30) ने कहा, 'एक दिन जब मेरी पत्नी घर में अकेली थी तो कुछ जवानों ने हमारे घर में घुसने की कोशिश की, जिसके बाद हम घर छोड़कर भाग खड़े हुए।'

जम्मू में पिछले साल नवंबर से प्रदर्शनों के शुरू होने से इन रोहिंग्या शरणार्थियों के प्रवास को लेकर अनिश्चितता है।

भाजपा और जेकेएनपीपी दोनों ही रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को बाहर निकालने की मांग को लेकर मुखर रहे हैं। जेकेएनपीपी ने जम्मू से रोहिंग्या को बाहर निकालने का आग्रह करते हुए शहर में बिलबोर्ड भी लगाए थे।

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जेकेएनपीपी के अध्यक्ष हर्षदेव सिंह ने रोहिंग्या मुसलमानों को सांस्कृतिक चुनौती बताते हुए आईएएनएस से कहा, 'हम रोहिंग्याओं को बाहर निकालने के लिए रैलियां निकाल रहे हैं, संगोष्ठियों का आयोजन कर रहे हैं और जन जागरूकता बैठकें कर रहे हैं।'

बीजेपी की जम्मू इकाई के कानूनी प्रकोष्ठ के सदस्य हुनर गुप्ता ने जम्मू से रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों की पहचान करने और उन्हें निर्वासित करने को लेकर फरवरी में जनहित याचिका दायर की थी।

सितंबर में एक शरणार्थी के घर के पास मृत गाय मिलने के बाद पुलिस ने लगभग 12 शरणार्थियों को हिरासत में लिया था। भाजपा और शिवसेना के प्रदर्शनों के बाद पुलिस हरकत में आई थी।

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जम्मू के पुलिस महानिरीक्षक एस.डी. सिंह ने आईएएनएस को बताया कि ये प्रदर्शन राजनीतिक लाभ के लिए थे, लेकिन ये प्रदर्शन शांतिपूर्ण ढंग से हुए थे।

केंद्र सरकार ने अगस्त में रोहिंग्या को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए राज्यों से रोहिंग्या शरणार्थियों की पहचान कर उन्हें निर्वासित करने को कहा था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्वासन पर रोक लगा दी थी। इस मामले पर पांच दिसंबर को सुनवाई हो सकती है।

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