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लखनऊ की टुंडे कबाब में बड़े यानि भैंस के कबाब बंद, अब केवल मटन-चिकन कबाब

लखनऊ की कुछ मशहूर दुकानें भी इससे प्रभावित हुईं। इसमें टुंडे कबाब की दुकान भी है, जो 1905 में लखनऊ में अकबरी गेट इलाके में शुरू हुई थी।

Updated on: 24 Mar 2017, 07:14 AM

highlights

  • अवैध बूचड़खाने बंद कराने को लेकर लखनऊ में प्रशासन चला रहा है अभियान
  • बीफ की सप्लाई पूरी तरह से ठप होने के कारण बुधवार को दुकानें बंद करनी पड़ी

 

नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश में अवैध बूचड़खाने बंद करने के फरमान के बाद इसका असर लखनऊ की पहचान माने जाने वाले टुंडे कबाबी पर पड़ा है। बीफ बैन का असर न सिर्फ टुंडे कबाबी पर बल्कि बीफ से बने कई अन्य सामनों पर भी देखा जा रहा है।

लखनऊ की कुछ मशहूर दुकानें भी इससे प्रभावित हुईं। इसमें टुंडे कबाब की दुकान भी है, जो 1905 में लखनऊ में अकबरी गेट इलाके में शुरू हुई थी। इस दुकान में अब भी सिर्फ कबाब और परांठा मिलता है।

दुकान पर देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं लेकिन इतिहास में पहली बार इस दुकान को कच्चे माल की कमी की वजह से बुधवार को बंद करनी पड़ी।

बीफ की सप्लाई पूरी तरह से ठप होने के कारण बुधवार को दुकानें बंद करनी पड़ी। एक कर्मचारी ने बताया कि बीफ के कबाब की जगह चिकन के कबाब ग्राहकों को दिया जा रहा है।

कर्मचारी ने बताया कि दुकान में इसके लिए अलग से स्टीकर भी चिपका दिए गए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि अगर यही स्थिति रही तो धंधा बंद भी करना पड़ सकता है।

वैसे बात ये भी है कि सरकार की सख्ती केवल अवैध बूचड़खानों पर है लेकिन असर मीट की कमी के रूप में दिख रहा है। बीजेपी ने अपने चुनावी वादों में ऐसे बूचड़खानों को बंद करने का वादा किया था और 15 मार्च को शपथ ग्रहण के बाद से कार्यवाही शुरू हो गई है।

अवैध बूचड़खाने बंद कराने को लेकर लखनऊ में पिछले दो दिन से इस अभियान में तेजी देखने को मिली है। नगर निगम, पुलिस और प्रशासन ने घूम-घूमकर अवैध दुकानें बंद करवा दी।

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इस कारण सबसे ज्यादा असर भैंसे के मीट पर पड़ा क्योंकि ये मीट सस्ता होता है इसीलिए इसकी खपत भी ज्यादा थी। प्रशासन की सख्ती के बाद ये मीट उपलब्ध नहीं हुआ और कई दुकानें नहीं खुलीं।

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