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Pulwama Attack के बाद धारा 370 के विरोध में उतरे राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह, कहा इससे देश की एकता-अखंडता को खतरा

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी को सीआरपीएफ के काफिल पर हुए कायराना हमले में 40 जवानों के शहीद होने के बाद कश्मीर को लेकर राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने बड़ा बयान दिया है.

Updated on: 20 Feb 2019, 06:22 PM

नई दिल्ली:

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी को सीआरपीएफ के काफिल पर हुए कायराना हमले में 40 जवानों के शहीद होने के बाद कश्मीर को लेकर राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने बड़ा बयान दिया है. कल्याण सिंह ने कहा, अब समय आ गया है कि धारा 370 को अब पूरी तरह खत्म कर दिया जाए. इस धारा 370 की वजह से अलगाववादियों को प्रोत्साहन मिलता है जो देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है. गौरतलब है कि सीआरपीएफ पर हुए हमले के बाद कई नेता और देश की जनता जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाने की मांग कर रही है. ऐसे में यह जानना बेहद जरूर है कि आखिर धारा 370 है क्या और इससे वहां के लोगों को वो कौन सा विशेष फायदा मिलता है जो देश के बाकी हिस्सों में रहने वालों नागरिकों को नहीं मिलता है.

क्या है धारा 370

गौरतलब है कि धारा 370 जम्मू-कश्मीर को स्वायत्ता का अधिकार देता है और जम्मू-कश्मीर के लोगों को विशेषाधिकार प्रदान करता है, इस धारा के तहत राज्य विधानसभा को कोई भी कानून बनाने का अधिकार है, जिसकी वैधता को चुनौती नहीं दी जा सकती. यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर के लोगों को छोड़कर बाकी भारतीय नागरिकों को राज्य में अचल संपत्ति खरीदने, सरकारी नौकरी पाने और राज्य सरकार की छात्रवृत्ति योजनाओं का लाभ लेने से रोकता है. इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद-370 के तहत मिले जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा एक अस्थाई प्रावधान नहीं है.

धारा 370 को लेकर नेहरू और पटेल में थे मतभेद

माना जाता है कि संविधान में दर्ज कुछ आर्टिकल को लेकर तत्कालीन देश के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल सहमत नहीं थी. आर्टिकल 370 को लेकर पंडित जवाहर लाल नेहरू और लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की दोस्ती में दरार की खबर भी उस वक्त आई थी. यह सच है कि आर्टिकल 370 के जरिए जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने के खिलाफ सरदार पटेल थे. इतना ही नहीं संविधान निर्माता भीम राव अंबेडकर भी इस आर्टिकल को संविधान में नहीं चाहते थे.

धारा 370 को लेकर सरदार नहीं चाहते थे कि नेहरू की अनुपस्थिति में कुछ ऐसा हो कि नेहरू को नीचा देखना पड़े. इसलिए उन्होंने इस धारा के विरोध के बावजूद अपने आपको बदला और लोगों को इस धारा के लिए समझाया. यह कार्य उन्होंने इतनी सफलता से किया कि संविधान-सभा में इस अनुच्छेद की बहुत चर्चा नहीं हुई और न इसका विरोध हुआ.

धारा 370 को संविधान में जुड़वाने के बाद सरदार ने नेहरू को 3 नवंबर 1949 को पत्र लिखकर इसके बारे में सूचित किया- ‘काफी लंबी चर्चा के बाद में पार्टी (कांग्रेस) को सारे परिवर्तन स्वीकार करने के लिए समझा सका.’

गौरतलब है कि देश में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले इस अनुच्छेद को खत्म किए जाने की मांग उठती रही है। हालांकि जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल इस मांग का पुरजोर विरोध करते रहे हैं