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प्रमोशन की लालची पुलिस की 'हैवान' कथा !

जुलाई 2009 में देहरादून के लाडपुर जंगल में एक एमबीए के छात्र रणवीर का एनकाउंटर कर दिया गया. पुलिस ने रणवीर को अपराधी मनाते हुए उसकी जान ले ली थी.

Updated on: 01 Oct 2018, 09:25 AM

नई दिल्ली:

एनकाउंटर शब्द सुनते ही आंखों के सामने पहली तस्वीर जो उभरती है वो है खाकी वर्दी और भागता अपराधी. लेकिन अब इस तस्वीर की स्थिति बदलने लगी है. खाकी वर्दी तो है लेकिन सामने भागता अपराधी है या फिर कोई निर्दोष ये कहा नहीं जा सकता. प्रमोशन की चाहत और अफसरों की वाह-वाही लूटने के लिए पुलिस का एक अलग ही चेहरा सामने आने लगा है. लखनऊ में विवेक तिवारी के हुए शूटआउट ने एक बार फिर से पुलिस के उसी चेहरे को लाकर खड़ा कर दिया है.

ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी बेगुनाह की मौत पुलिस की गोली से हुई है. इससे पहले 6 जुलाई 2009 में देहरादून के लाडपुर जंगल में एक एमबीए के छात्र रणवीर का एनकाउंटर कर दिया गया. पुलिस ने रणवीर को अपराधी मनाते हुए उसकी जान ले ली थी.

लेकिन जब जांच रिपोर्ट सामने आई तो खाकी वर्दी का एक हैरान करने वाला सच लोगों के सामने आया. पुलिस ने रणवीर को उठाकर ले गई थी और उसे मारकर एनकाउंटर का नाम दे दिया.
3 जुलाई 2009 की दोपहर को रणवीर दो साथियों के साथ मोहिनी रोड पर बाइक लिए खड़ा था. इस दौरान दारोगा जीडी भट्ट ने संदिग्ध मानते हुए उनसे सवाल-जवाब किया. संदिग्ध सुनकर रणवीर दारोगा से बहस करने लगा. जिसके बाद दारोगा उसे उठाकर थाने ले गया. थाने में उसे थर्ड डिग्री टॉर्चर दिया गया. जब हालत बिगड़ गई तो पुलिस उसे उठाकर लाडपुर जंगल ले गई और फर्जी मुठभेड़ की कहानी गढ़कर उसकी हत्या कर दी.

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इस मामले में 17 पुलिसकर्मी को दोषी करार दिया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.

ऐसा ही एक चर्चित फेक एनकाउंटर (fake encounter) दिल्ली के दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस में हुई थी, दिन और साल था 31 मार्च 1997 का. कनॉट प्लेस में जब लोग अपने रोजमर्रा के काम को अंजाम दे रहे थे इस दौरान वर्दी को दागदार करे के लिए कुछ पुलिसकर्मी ने फर्जी एनकाउंटर को अंजाम दिया.बताया जाता है कि जैसे ही नीले रंग की मारूति कार बैंक से रुपए निकालकर निकली, आउटर सर्जिकल की लाल बत्ती पर खड़े पुलिसकर्मियों ने उन्हें गैंगस्टर यासीन समझकर अंधाधुंध गोलियां चला दी. जिसमें दो बिजनेसमैन जगजीत सिंह और प्रदीप गोयल की मौत हो गई.

इस मामले में कोर्ट ने 24 अक्टूबर 2007 को तत्कालीन एसीपी और तब के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट एसएस राठी और अन्य नौ पुलिसकर्मियों को दोषी मानते हुए उम्रकैद सुनाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने भी निचली अदालत के इस फैसले को बरकरा रखा.

फर्जी एनकाउंटर की लिस्ट बहुत लंबी है, अफसरों की वाहवाही और प्रमोशन के लालच में फर्जी एनकाउंटर को कुछ पुलिसकर्मी अंजाम देते हैं. सिटीजन्स अंगेस्ट हेट नाम के मानवाधिकार संगठन ने इसी साल उत्तर प्रदेश और हरियाणा में पुलिस मुठभेड़ मामले में एक रिपोर्ट पेश की थी. जिसमें यूपी में 16 और हरियाणा में 12 फर्जी एनकाउंटर की बात कही गई थी.

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