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नाबालिग पत्नी के साथ सेक्स रेप है या नहीं, SC करेगा फैसला

सुप्रीम कोर्ट आज ये फैसला करेगा कि क्या 15 साल से 18 साल की उम्र की नाबालिग पत्नी से यौन संबंध बनाना, रेप के दायरे में आएगा या नहीं।

Updated on: 11 Oct 2017, 09:42 AM

highlights

  • 15 साल से ज़्यादा की विवाहित लड़की के साथ उसके पति का संबंध बनाना बलात्कार नहीं माना जाता
  • याचिकाकर्ता ने कोर्ट में आईपीसी की धारा 375(2) को रद्द करने की मांग की है
  • केंद्र सरकार का कहना है कि भारत की सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए ही ये कानून बनाया गया

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट बुधवार को यह फैसला करेगा कि क्या 15 साल से 18 साल की उम्र की नाबालिग पत्नी से यौन संबंध बनाना, रेप के दायरे में आएगा या नहीं।

दरअसल भारतीय कानून के मुताबिक यौन संबंध के लिए सहमति की उम्र 18 साल है। इस वजह से 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ उसकी मर्जी से बने संबंध को भी बलात्कार माना जाता है।

लेकिन 15 साल से ज़्यादा की विवाहित लड़की के साथ उसके पति का संबंध बनाना बलात्कार नहीं माना जाता। आईपीसी की धारा 375 में दिए गए अपवाद(2) के तहत ये तहत रेप नहीं माना जाता, सिर्फ अगर पत्नी 15 साल से कम की है, तभी रेप माना जाता है।

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता की क्या मांग है?

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में नाबालिग पत्नी के साथ शारीरिक सम्बन्ध को रेप ना मानने वाली आईपीसी की धारा 375(2) को रद्द करने की मांग की गई है। ये याचिका 'इंडिपेंडेंट थॉट' नाम की संस्था ने दायर की है।

याचिका में कहा गया है कि 15 साल से 18 साल नाबालिग लड़की की शिकायत पर पति पर रेप केस का केस दर्ज होना चाहिए।

दलील दी गई है कि जब भारतीय कानून के मुताबिक 18 से कम उम्र की लड़की के साथ उसकी मर्जी से बने संबंध को भी बलात्कार माना जाता है, तो कानून ये मानकर चलता है 18 साल से कम उम्र की लड़की शारीरिक और मानसिक तौर पर संबंध बनाने की सहमति देने के लिए परिपक्व नहीं है, तब कैसे 15 से 18 साल की शादीशुदा लडकी के साथ उसके पति के बनाये फिजिकल रिलेशन को रेप के दायरे से बाहर रखा जा सकता है।

याचिका कर्ता के मुताबिक बच्चों के यौन शोषण के लिए पॉक्सो जैसा कानून बना है लेकिन रेप की परिभाषा में दिए गए इस अपवाद के चलते नाबालिग पत्नी के साथ सेक्सुअल रिलेशन के ऐसे मामलों को भी पॉक्सो के तहत दर्ज नहीं किया जाता।

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केंद्र सरकार का इस मसले को लेकर अदालत में क्या कहना है

केंद्र सरकार का कहना है कि भारत की सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए ही ये कानून बनाया गया है। बाल विवाह अब काफी कम हो गए हैं। फिर भी समाज के कुछ हिस्सों में बाल विवाह का चलन है।

इसलिए, संसद ने काफी सोच विचार कर 15 से 18 साल की पत्नी के साथ यौन संबंध को अपराध के दायरे से बाहर रखा है। सरकार का यह भी कहना है कि इस कानून में अगर कोई संशोधन कर सकता है, तो ये सिर्फ संसद ही कर सकती है।

केन्द्र सरकार के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट को इसमे दख़ल देने से बचना चाहिये, यानि सरकार ने एक तरह से आईपीसी की धारा 375 में दिए गए इस अपवाद को बनाये रखने की पैरवी की है।

सुप्रीम कोर्ट का अब तक का क्या रुख रहा है

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और याचिकाकर्ता से सवाल पूछे। कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि जब संसद ने खुद सेक्सुअल रिलेशन की सहमति से लेकर तमाम दूसरी चीजों के लिए उम्रसीमा 18 साल रखी है, तो फिर ये अपवाद (375 में सेक्शन 2 के तहत) क्यों रखा गया है। जो 15 से 18 साल की लड़की के साथ सेक्सुअल रिलेशन को रेप की कैटेगरी में नहीं रखता।

कोर्ट ने ये भी कहा कि आजादी के 70 साल बाद भी बाल विवाह जैसी परम्परा प्रचलन में है और ये कड़वी सच्चाई है कि हम इसे खत्म नहीं कर पाए हैं।

इसी तरह सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कई अहम सवाल पूछे। कोर्ट ने सवाल किया कि अगर 18 साल से कम उम्र की लड़की अपनी शादी से खुश है और ऐसी सूरत में कोई पड़ोसी नाबालिग के साथ पति के रहने की शिकायत पुलिस में कर दे तो क्या होगा? क्या ऐसे मामलों में किसी को भी शिकायत करने की छूट दी जा सकती हूं?

इस पर याचिकाकर्ता के वकील गौरव अग्रवाल ने कहा कि उनका मकसद पारिवारिक ढांचे को नुकसान पहुंचाना नहीं है, लेकिन कम से कम लड़की को शिकायत का मौका मिलना चाहिये।

इसलिए बेहतर होगा कि कोर्ट आईपीसी के सेक्शन 375 की नए सिरे से व्याख्या कर दे। साथ ही ये भी साफ कर दे कि पॉक्सो के तहत भी मामला दर्ज हो सकता है।

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