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जम्मू-कश्मीर: SC में धारा 35 A पर दिवाली बाद होगी सुनवाई

जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने जम्मू-कश्मीर सरकार की दिवाली बाद सुनवाई वाली याचिका स्वीकार कर लिया है।

Updated on: 25 Aug 2017, 01:12 PM

highlights

  • SC 35ए के ख़िलाफ़ याचिका पर दिवाली बाद करेगा सुनवाई 
  • धारा 35ए को संविधान में राष्ट्रपति के आदेश पर 1954 में जोड़ा गया
  • इसके तहत जम्मू एवं कश्मीर के लोगों को विशेष अधिकार और सुविधाएं दी गई हैं

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट जम्मू एवं कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 35ए के ख़िलाफ़ याचिका पर दिवाली बाद सुनवाई के लिए तैयार हो गई है।

जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने जम्मू-कश्मीर सरकार की उस याचिका को स्वीकार कर लिया है जिसमें यह कहा गया था कि अनुच्छेद 35ए के ख़िलाफ़ दायर याचिका की सुनवाई दिवाली बाद की जाए।

सीनीयर अधिवक्ता राकेश द्विवेदी और अधिवक्ता शोएब आलम ने इस मामले को बेंच के सामने रखते कहा कि केंद्र सरकार को भी दिवाली बाद सुनवाई होने को लेकर कोई एतराज़ नहीं है। बता दें कि जस्टिस दीपक मिश्रा और डीवाई चंद्रचूड़ बी इस बेंच में शामिल हैं।

जिसके बाद बेंच ने कहा, 'सभी याचिका पर सुनवाई दीपावली के बाद की जाएगी।'

इससे पहले 14 अगस्त को कोर्ट ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के विशेष अधिकारों से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 35A को चुनौती देने वाली याचिका पर तीन सदस्यीय पीठ सुनवाई कर रही है और ज़रुरत पड़ने पर पांच सदस्यीय बेंच भी सुनवाई कर सकती है।

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कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 35ए और अनुच्छेद 370 की जांच सैंविधानिक रुप से जांच करेगी। और इसके तहत मिलने वाला स्पेशल स्टेटस का दर्जा का भी रिव्यू होगा।

क्या है अनुच्छेद 35ए?

धारा 35ए को संविधान में राष्ट्रपति के आदेश पर 1954 में जोड़ा गया। इसके तहत जम्मू एवं कश्मीर के लोगों को विशेष अधिकार और सुविधाएं दी गई हैं और इसकी विधायका को कोई भी कानून बनाने का अधिकार है, जिसे चुनौती नहीं दी जा सकती।

इस प्रावधान के तहत जम्मू एवं कश्मीर के लोगों को छोड़कर सभी भारतीयों को राज्य में अचल संपत्ति खरीदने, सरकारी नौकरी पाने व राज्य प्रायोजित छात्रवृत्ति योजनाओं का लाभ पाने से रोका गया है।

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क्या है मामला?

इस धारा को साल 2014 में दिल्ली के एनजीओ वी द सिटिजन्स ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, जिस पर केंद्र सरकार ने बीते महीने कहा कि इस धारा को असंवैधानिक घोषित करने के लिए इस मुद्दे पर पर्याप्त बहस करने की जरूरत है।

यह केस काफी समय से सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग थी। लेकिन इस याचिका पर अगले महीने अंतिम सुनवाई होनी थी।

एनजीओ ने दलील दी है कि राष्ट्रपति 1954 के आदेश से संविधान में संशोधन नहीं कर सकते और इसे एक अस्थायी प्रावधान माना जाना चाहिए। इसकी सुनवाई तीन न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ कर रही है।

जम्मू एवं कश्मीर राज्य सरकार अनुच्छेद 35ए आर्टिकल को हटाए जाने के खिलाफ है। सीएम महबूबा मुफ्ती ने पिछले महीने ही अनुच्छेद 35ए आर्टिकल के खिलाफ विवादित बयान दिया था।

उन्होंने ने कहा था,' अगर राज्य के कानूनों से छेड़छाड़ हुई तो कश्मीर में तिरंगा थामने वाला कोई नहीं होगा।' उनके इस बयान का देशभर में लोगों ने काफी विरोध किया गया था।

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