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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, दिशा-निर्देश के साथ इच्छा मत्यु को दी मंजूरी

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने शुक्रवार को इच्छा मृत्यु को दिशानिर्देशों के साथ मंजूरी दे दी। कोर्ट ने कहा कि मनुष्यों को सम्मान के साथ मरने का हक है।

Updated on: 09 Mar 2018, 06:55 PM

highlights

  • सुप्रीम कोर्ट ने इच्छा मृत्यु को दी मंजूरी, कहा- मानव को है सम्मान के साथ मरने का हक
  • एनजीओ 'कॉमन कॉज़' ने 2014 में इस मसले पर याचिका दाखिल की थी

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने शुक्रवार को लिविंग विल और इच्छा मृत्यु को दिशानिर्देशों के साथ मंजूरी दे दी। कोर्ट ने कहा कि मनुष्यों को सम्मान के साथ मरने का हक है। 

सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि किसी शख़्स को ये अधिकार दिया जा सकता है जिसमे वो ये वसीयत कर सके कि लाइलाज़ बीमारी से पीड़ित होने पर/ कोमा जैसी स्थिति में पहुचंने पर उसे लाइफ सपोर्ट सिस्टम के जरिये जबरन जिंदा ना रखा जाए।

इच्छा मृत्यु  को भी कुछ शर्तों के साथ इजाजत दे दी गई। इसमे कोमा में पड़े लाइलाज मरीज़ को वेंटिलेटर जैसे लाइफ स्पोर्ट सिस्टम से निकाल कर मरने दिया जाता है। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिविंग विल को परिवार के सदस्यों और डॉक्टर्स की एक टीम, जिसका मानना हो कि इलाज संभव नहीं है की अनुमति से ही लिखा जा सकता है। 

11 अक्टूबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 

कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने की  बेंच में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस ए के सीकरी, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भवन शामिल हैं।

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कानून बनने तक जारी रहेंगे ये दिशा-निर्देश

कोर्ट ने कहा कि इस फैसला का दुरूपयोग रोकने के लिए लिविंग विल को कैसे बनाया जाएगा और कैसे पैसिव युथ नेशिया को इजाजत दी जाएगी, इसके लिए हमने गाइड लाइन बनाई है।

कोर्ट ने कहा जब तक सरकार इसे लेकर कानून नहीं लाती, तब तक ये गाइड लाइन लागू रहेगी। 

साथ में कोर्ट ने ये कहा है कि अगर कोई व्यक्ति मरणासन्न हालात में, लिविंग विल देने की स्थिति में नही है, तो ऐसी सूरत में उसके घरवाले हाइकोर्ट जा सकते है, उसके बाद कोर्ट मेडिकल बोर्ड का गठन करेगा। बोर्ड की राय और अथॉरिटी परमिशन की के बाद लिविंग विल को बनाया जा सकता है।

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एनजीओ 'कॉमन कॉज़'  के दायर की थी याचिका

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि इच्छा मृत्यु भी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए 'जीने के अधिकार' के हिस्से में ही आता है।

एनजीओ 'कॉमन कॉज़' ने 2014 में इस मसले पर याचिका दाखिल की थी। कॉमन कॉज़ के वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में दलील दी कि गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों को 'लिविंग विल' का हक होना चाहिए।

प्रशांत भूषण ने कहा था कि 'लिविंग विल' के जरिये एक शख्स ये कह सकेगा कि जब वो ऐसी स्थिति में पहुँच जाए, जहां उसके ठीक होने की उम्मीद न हो, तब उसे जबरन लाइफ सपोर्ट पर न रखा जाए।

पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि अगर इस बात की मंजूरी दे दी जाती है तो इसका दुरुपयोग होगा।

क्या होती है लिविंग विल और इच्छामृत्यु

'लिविंग विल' एक लिखित वसीयत होती है जिसमें कोई मरीज पहले से यह निर्देश देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने या रजामंदी नहीं दे पाने की स्थिति में पहुंचने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाए। इच्छामृत्यु वह स्थिति है जब किसी मरणासन्न व्यक्ति की मौत की तरफ बढ़ाने की मंशा से उसे इलाज देना बंद कर दिया जाता है।

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