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रिश्वत मामला: दो जजों की बेंच का फैसला पलटा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- चीफ जस्टिस 'मास्टर ऑफ रॉल्स' हैं

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने मामले में आदेश जारी करते हुए उच्च न्यायलय के 1998 के आदेश का उदाहरण दिया।

Updated on: 10 Nov 2017, 10:58 PM

highlights

  • जस्टिस चेलामेश्वर की बेंच ने दिया था संविधान पीठ बनाने का आदेश
  • उड़ीसा हाई कोर्ट के एक रिटायर जज से जुड़ा है मामला
  • दूसरी याचिका पर भी सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी

नई दिल्ली:

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने शुक्रवार को एक आसाधरण आदेश में रिश्वत के एक मामले में उड़ीसा हाई कोर्ट के अवकाश प्राप्त जज की कथित संलिप्तता की जांच की मांग पर सुनवाई को लेकर पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन करने संबंधी न्यायमूर्ति चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ के आदेश को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चीफ जस्टिस 'मास्टर ऑफ रॉल्स' होते हैं और सुनवाई के लिए मामले निर्दिष्ट करते हैं।

यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया चीफ जस्टिस की पीठों की संरचना करते हैं। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने मामले में आदेश जारी करते हुए उच्च न्यायलय के 1998 के आदेश का उदाहरण दिया।

चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 1998 के फैसले के विपरीत जारी कोई भी आदेश प्रभावी नहीं होगा और उसे मानने की बाध्यता नहीं होगी।

चीफ जस्टिस ने कहा, 'क्या आपने कभी देखा है कि दो जजों की बेंच ऐसे निर्देश दे रही है। दो जजों का बेंच किसी केस को इस तरह संविधान पीठ को नहीं भेज सकता। यह मेरा अधिकार है।'

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हालांकि, याचिकाकर्ता के एनजीओ के वकील प्रशांत भूषण ने जब यह दलील दी कि चीफ जस्टिस को इस केस की सुनवाई से अलग हो जाना चाहिए क्योंकि उनका नाम भी सीबीआई के एक एक एफआईआर में है, एडिशनल सॉलिस्टिर जनरल पी एस नरसिंहा ने कहा कि कोई भी पार्टी यह फैसला नहीं कर सकती किसे किसी मामले को सुनना चाहिए और किसे नहीं।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला चीफ जस्टिस के बाद सबसे वरिष्ठ जस्टिस चेलामेश्वर की ओर से रिश्वत के एक मामले में उड़ीसा हाई कोर्ट के जज आई एम कुदुशी की संलिप्तता की जांच की मांग पर सोमवार को सुनवाई करने के लिए पांच न्यायाधीशों की पीठ का गठन करने के आदेश के एक दिन बाद आया है।

साल 2004-2010 के दौरान उड़ीसा हाई कोर्ट के जज रहे कुदुशी पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद एक निजी मेडिकल कॉलेज को एमबीबीएस कोर्स में छात्रों का प्रवेश स्वीकार करने में मदद करने का आरोप है।

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मामले में जस्टिस कुदुशी को सितंबर में गिरफ्तार किया गया था और इस समय वह तिहाड़ जेल में बंद हैं। केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई ने इनके ऊपर निजी मेडिकल कॉलेज का निर्देशन करने और उसके प्रबंधन को सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमों के पक्ष में निपटारा करने का भरोसा दिलाने का आरोप लगाया है।

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कामिनी जायसवाल ने गुरुवार को मामले की जांच न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल यानी एसआईटी से करवाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी।

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